Public Transport For Disabled: देशभर में करोड़ों लोग रोजाना अपने काम पर निकलते हैं और इसके लिए किसी न किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं. इसमें कुछ वो लोग भी शामिल होते हैं, जो शारीरिक तौर पर सक्षम नहीं होने के बावजूद संघर्ष कर बाहर निकलते हैं और खुद मेहनत कर पैसा कमाते हैं. देश में हजारों ऐसे दिव्यांग हैं, जो किसी तरह घर से निकलकर काम पर जाते हैं. इसके लिए आम लोगों की तरह वो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि ये उनका सौभाग्य होता है कि उनके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कोई सुविधाएं मिलें.


चौंकाने वाली रिपोर्ट आई सामने
इसे लेकर एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है. जिसमें बताया गया है कि देशभर में चलने वाली 1.4 लाख से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन बसों में महज 6 फीसदी ही ऐसी बसें हैं जिनमें दिव्यांगों के लिए पूरी सुविधाएं हैं. सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है. इसमें बताया गया है कि देश में चलने वाली कुल पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बसों (1.4 लाख) में 42 हजार यानी करीब 29 फीसदी दिव्यांगों के लिए आंशिक तौर पर सुलभ हैं. वहीं महज 8,695 को पूरी तरह सुलभ बताया गया. 


हर बार बढ़ाई जा रही डेडलाइन
चौंकाने वाली बात ये है कि हर बार दिव्यागों के लिए तमाम सुविधाओं वाले पब्लिक ट्रांसपोर्ट की डेडलाइन तय की जाती है, लेकिन इसे कभी भी पूरा नहीं किया जा सका. हर बार इस डेडलाइन को बढ़ा दिया जाता है. सुगम्य भारत अभियान (एआईसी) के तहत तय की गई डेडलाइन के मुताबिक देश  में सरकार की तरफ से चलाई जाने वाले 25 फीसदी सार्वजनिक परिवहन की बसों को जून 2022 तक पूरी तरह से दिव्यांगों के लिए सुलभ बनाया जाना था, लेकिन बाद में इसे 2024 तक बढ़ा दिया गया. यानी दिव्यांगों के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करना अब भी बेहद मुश्किल और खतरनाक है. 


सरकारी भवनों में भी सुविधाएं देने का काम
बता दें कि दिव्यागों को सुविधाएं देने और उनके हितों को लेकर सुगम्य भारत अभियान (AIC) की दिसंबर 2015 में शुरुआत की गई थी. एआईसी की रिपोर्ट के मुताबिक इसके लक्ष्यों की डेडलाइन को 2024 तक बढ़ा दिया गया है, इसके मुताबिक 30 सितंबर 2022 तक केंद्र सरकार के 1100 भवनों को दिव्यांगों के लिए सुलभ बनाया गया है. हालांकि राज्यों की हालत इसमें खराब है. राज्यों में सैकड़ों सरकारी दफ्तरों में दिव्यांगों के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. इनके लिए केंद्र सरकार की तरफ से फंड दिया जा रहा है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि काम कछुए की चाल से हो रहा है. 


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