संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधेयकों पर फैसला लेने के लिए अदालत राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर सकती है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्यपाल की तरफ से फैसला लेने में देरी को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट बिल को अपनी तरफ से मंजूरी नहीं दे सकता.

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कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर, 2025) को प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर अपनी राय देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200/201 के तहत कोर्ट बिल पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित नहीं कर सकता है. उन्होंने कहा कि विधेयक पर फैसला लेने के लिए उन्हें समय सीमा में बांधना संविधान की भावना के विपरीत होगा. 

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत व्यवस्था है कि राज्यपाल विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं, विधानसभा को दोबारा भेज सकते हैं या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं. अगर विधानसभा किसी बिल को वापस भेजे तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होती है. बेंच ने 10 दिन मामला सुनने के बाद 11 सितंबर को इस पर अपनी राय सुरक्षित रख ली थी.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के फैसले में कोर्ट दखल नहीं दे सकता, लेकिन अगर वह अनिश्चित समय तक विधेयक को अपने पास लंबित रखें तो यह कोर्ट के सीमित दखल का आधार बन सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास लंबित विधेयक पर कोर्ट विचार नहीं कर सकता. किसी कानून के बनने के बाद ही कोर्ट उस पर विचार कर सकता है.

कोर्ट ने कहा कि वह बिल पर फैसले में देरी के कारण जानने के बाद राज्यपाल को सीमित निर्देश दे सकता है. अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के खिलाफ कोई अदालती कार्रवाई नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसलों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती. बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति नहीं देता कि वह राज्यपाल की मंजूरी के बिना विधेयक को अपनी तरफ से मंजूर घोषित कर दे.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'राज्यपाल विधेयक पर फैसला लेने के लिए मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. वह अपने विवेक से बिल को विधानसभा को दोबारा भेज सकते हैं या राष्ट्रपति को विचार के लिए भेज सकते हैं. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि संविधान राज्यपाल को असीमित शक्ति देता है. उन्हें मंत्रिमंडल की सलाह को भी ध्यान में रखना चाहिए.'

(निपुण सहगल के इनपुट के साथ)