नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद का नाम अचानक चर्चा में आया और छा गया. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जेहन में ये नाम काफी पहले से था. कोविंद मोदी के करीबी हैं. मुश्किल वक्त में भी कोविंद मोदी का साथ दिया था. शायद उसी का इनाम अब उन्हें मिला है.


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साल 2002 के दंगो के बाद चली जांच में रामनाथ गोविंद लगातार तब के गुजारात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव करते रहे, लगातार उनके साथ खड़े रहे. साल 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बने और कोविंद को मोदी से इसी करीबी का इनाम मिला  और 17 अगस्त 2015 उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया गया. तब प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें दलितों के लिए सारी जिंदगी काम करने वाला बताया था.


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पीएम मोदी से नजदीकियों का नतीजा है कि संसदीय बोर्ड की मीटिंग के बाद रामनाथ कोविंद को एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया.


पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ‘’श्री रामनाथ कोविंद एक किसान के बेटे हैं,. वो विनम्र पृष्णभूमि से आते हैं. उन्होंने अपनी जिंदगी गरीबों, अधिकारहीन और आम लोगों की सेवा में लगा दिया. मैं आश्वस्त हूं कि श्री रामनाथ कोविंद एक अप्रतिम राष्ट्रपति बनेंगे और गरीबों, वंचितों और हाशिये पर खड़े समाज की मजबूत आवाज बने रहेंगे.’’


 


राज्यपाल बनने के बाद भी रामनाथ कोविंद लगातार पीएम मोदी के संपर्क में रहे. आखिरी बार चार जनवरी को गुरुपर्व के दौरान पटना में पीएम मोदी और रामनाथ कोविंद की मुलाकात हुई थी और जानकार मानते हैं कि आज की पृष्ठभूमि वहीं से तय होना शुरू हो गई थी.


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पीएम मोदी ने दलित नेता को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर एक तीर से दो निशाना लगाया है. बीजेपी के इस दांव से दलितों में साफ संदेश जाएगा कि बीजेपी ही उनकी सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है और इससे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी को और मजबूती मिलेगी.


पूरे देश में करीब 20.14 फीसदी दलित आबादी है.  यानि देश में करीब 21 करोड़ लोग दलित समुदाय से आते हैं. रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले हैं. संख्या के लिहाज से सबसे ज्यादा दलित उत्तर प्रदेश में रहते हैं, जो करीब 20 फीसदी हैं.


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एक हिसाब से देखा जाए तो राष्ट्रपति पद के लिए ये दलित दांव बीजेपी ने साल 2019 के लोकसभा के चुनाव में विरोधियों को चित करने के लिए चला है. पीएम मोदी को साल 2014 की तरह प्रचंड बहुमत लाना है तो दलितों को अपने खेमे में करना होना बेहद जरूरी है.