नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नाबालिग बच्चों के साथ दुष्कर्म के अपराधियों के लिए दया याचिका का दरवाजा बंद करने की वकालत की है. राजस्थान में एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि पोक्सो (बाल यौन शोषण संरक्षण कानून) के तहत सज़ा पाने वालों को दया का अधिकार नहीं होना चाहिए.


सामाजिक परिवर्तन के लिए महिला सशक्तिकरण के विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए देश के प्रथम नागरिक ने कहा कि "बेटियों पर होने वाले आसुरी प्रहारों की वारदातें देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख देती हैं. लड़कों के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना मजबूत करने की ज़िम्मेदारी हर माता-पिता की है, हर नागरिक की है, मेरी है, आपकी है."


नाबालिग बालिकाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं पर बढ़ी चिंताओं के बीच राष्ट्रपति ने कहा कि "इस तरह के जो अपराधी है उनको संविधान में दया याचिका का अधिकार मिला है. मैंने कहा है कि आप इसपर पुनर्विचार करिए. पोक्सो एक्ट के तहत सज़ा पाने वाले अपराधियों को दया याचिका का अधिकार न मिले. उन्हें इस प्रकार के किसी अधिकार की ज़रूरत नहीं है. अब यह सब संसद पर निर्भर करता है. इसके लिए एक संविधान संशोधन की ज़रूरत है और इस दिशा में हम सबकी सोच आगे बढ़ रही है."


महत्वपूर्ण है कि अगस्त 2019 तक पोक्सो कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है जिसमें नाबालिग बच्चों के यौन शोषण पर मृत्युदंड का प्रावधान है. इसके अलावा जुलाई 2018 में संसद से पारित अपराध संशोधन अधिनियम के तहत 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले को मृत्युदंड का प्रावधान भी किया जा चुका है. हालांकि कानून में मौजूद गलियारों का फायदा उठाकर अपराधी कई बार अपनी ज़िंदगी बचाने में कामयाब हो जाते हैं. इसमें राष्ट्रपति के पास दया याचिका जैसा रास्ता भी मौजूद है.


हालांकि हाल में सामने आई दुष्कर्म की घटनाओं ने एक बार फिर इस बात को उभार दिया है कि कानूनी प्रावधानों और नियम संशोधनों के बावजूद ऐसी वारदातों पर पूरी तरह लगाम नहीं लग पा रही है. देश के विभिन्न भागों में आए दिन नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म की वारदातें दर्ज होती हैं.


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