मुंबईः कोरोना संकट काल में पालघर से सटे धानु जिले के खड़खड़ गांव की सैकड़ों आदिवासी महिलाएं डॉक्टर्स के लिए पीपीई किट बना रही हैं. इसके साथ ही अपने परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी भी उठा रही हैं. ग्रामीण आदिवासी महिलाओं को स्वालंबी बनाने के लिए आईआईटी बॉम्बे प्रशिक्षण दे रहा है. मिशन से जुड़ी 220 आदिवासी महिलाएं दिन रात एक कर पीपीई किट बनाने का काम कर रही हैं.


मुंबई से कई किलोमीटर दूर धानु में बसे खड़खड़ गांव की आदिवासी महिलाएं आज समाज के लिए बेहतरीन उद्धरण पेश कर रही हैं. आज कोरोना संकट काल में घर के काम के साथ देश सेवा में भी अपना योगदान दे रही हैं. सिलाई का काम जानने के कारण हमारे डॉक्टर्स के लिए पीपीई किट बना रही हैं. इन्ही आत्मनिर्भर आदिवासी महिलाओं से मिलने एबीपी न्यूज की टीम इन तक पहुंची थी.


खड़खड़ गांव की रहने वाली 23 साल की संध्या रोज चार से पांच घंटे सिलाई मशीन की मदद से पीपीई किट बनाती है. वह पहले घर का खत्म करती हैं फिर केंद्र पहुंच कर देशसेवा के काम में जुट जाती हैं. संध्या का दस लोगों का परिवार है. पति दिहाड़ी मजदूरी करता हैं. यहीं कारण है कि यहां काम कर रही महिलाएं अपने पति का हाथ बटाने के लिए लॉकडाउन में पीपीई किट बना रही हैं.


इस सहरानीय काम में लगी आदिवासी महिलाओं का संचालन करने वाले प्रशांत बताते हैं कि इस प्रकल्प की शुरुआत आईआईटी बॉम्बे और आदिवासी विभाग द्वारा की गई है. ताकि ग्रामीण आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना सके. इसके लिए सभी को ट्रेनिंग दी गई है.


प्रशांत बताते हैं कि धानु के खड़खड़ गांव में 220 आदिवासी महिला पीपीई किट बनाने के काम में लगी हैं. सभी कुछ घंटे सुबह और कुछ घंटे शाम को काम करती हैं. जिससे कुछ पैसे मिलते हैं और वे अपना घर चलाती हैं. पीपीई किट तैयार होने के बाद सभी को आईआईटी बॉम्बे भेजा जाता है. जहां से उन्हें डॉक्टर्स तक पहुंचाया जाता है.


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