justice Jagmohan Lal Sinha Verdict on Indira Gandhi: भारतीय राजनीतिक इतिहास में कई ऐतिहासिक मौके रहे हैं जिनकी चर्चा आजतक होती है. ऐसा ही एक किस्सा है जब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ इलिहाबाद हाई कोर्ट अपना फैसला सुनाने वाला था. तारीख थी, 12 जून 1975...इंदिरा गांधी के सबसे वरिष्ठ निजी सचिव नेवुलणे कृष्ण अय्यर शेषण घबराए हुए थे. हर तरफ टेलीफोन की घंटियां बज रही थी.


यह वही दिन था जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा अपना फैसला सुनाने वाले थे. यह फैसला उस याचिका पर आने वाला था जिसे  राज नारायण ने 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ दाखिल किया था.


इस फैसले से पहले कई तरह से जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को 'मनाने' की कोशिश की गई. इन बातों का जिक्र कुलदीप नैयर की किताब ' इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' में है. कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं-


''श्रीमती इंदिरा गांधी के गृह राज्य उत्तर प्रदेश से एक सांसद इलाहाबाद गए. उन्होंने अनायास ही सिन्हा से पूछ लिया था कि क्या वे पांच लाख रुपये में मान जाएंगे. सिन्हा ने कोई जवाब नहीं दिया. बाद में उस बेंच में उनके एक साथी ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि 'इस फैसले के बाद' सिन्हा को सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया जाएगा.''


जगमोहन लाल सिन्हा को 'मनाने' की कोशिश यहीं नहीं रुकी. ' इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' में लिखा है-


'गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव प्रेम प्रकाश नैयर ने देहरादून में उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मुलाकात की थी और उनसे कहा था कि संभव हो तो इस फैसले को टाल दें. चीफ जस्टिस ने अनुरोध को सिन्हा तक पहुंचा दिया.सिन्हा इस बात से इतने नाराज हुए कि उन्होंने कोर्ट के रजिस्ट्रार को फोन घुमाया और कहा कि वो घोषित कर दे कि फैसला 12 जून को सुनाया जाएगा.'


सब आने वाले फैसले को लेकर लगा रहे थे कयास


इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा क्या फैसला सुनाने वाले हैं इसको लेकर कयास लगाए जा रहे थे. कई लोगों का कहना था कि फैसला क्या आने वाला है इसकी जानकारी दो लोगों थी. एक खुद जगमोहन लाल सिन्हा को और दूसरा उनके स्टेनोग्राफर को. इस फैसले को लेकर इंटेलिजेंस ब्यूरो को भी कुछ पता नहीं था. हालांकि इंटेलिजेंस ब्यूरो के कुछ लोग दिल्ली से इलाहाबाद आए थे और उन्होंने सिन्हा के स्टेनोग्राफर नेगी राम निगम से राज उगलवाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. कहा जाता है कि 11 जून की रात यानी फैसले से एक दिन पहले नेगी राम निगम अपने घर से पत्नी के साथ गायब हो गए. 


बता दें कि इंदिरा गांधी पर के खिलाफ दायर की गई इस याचिका पर चार साल तक सुनवाई चली थी. 23 मार्च 1975 को सुनवाई पूरी हुई और इसके बाद से ही जस्टिस सिन्हा ने लोगों के फोन उठाने बंद कर दिए थे.


कमरा नंबर 24 में सुनाया गया फैसला


यह ऐतिहासिक फैसला कमरा नंबर 24 में सुनाया गया था. 258 पेज के फैसले के साथ सिन्हा कोर्ट रूम में मौजूद थे. उस दिन कोर्ट रूम में सिन्हा ने फैसला सुनाते हुए कहा- 'याचिका स्वीकार की जाती है.' पूरे कोर्ट रूम में अचानक से हर्षध्वनि सुनाई देने लगी. 


उधर जैसे ही फैसले की खबर इंदिरा गांधी के सबसे वरिष्ठ निजी सचिव नेवुलणे कृष्ण अय्यर शेषण तक पहुंची वो भागकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कमरे की तरफ उनको बताने निकले. रास्ते में उन्हें  राजीव गांधी मिले..उन्होंने बताया कि इंदिरा जी को अपदस्थ कर दिया गया है...


राजीव गांधी ने यह खबर अपनी मां इंदिरा को दी. हालांकि इंदिरा गांधी के चेहरे के भाव ज्यादा नहीं बदले. लेकिन जब उन्होंने यह खबर सुनी कि उन्हें 6 सालों तक किसी निर्वाचित पद पर बने रहने से भी वंचित कर दिया गया है तो वो थोड़ी चिंतित दिखी थीं.


किन आरोपों में दोषी साबित हुई थीं इंदिरा गांधी


जस्टिस सिन्हा ने उन्हें दो आरोपों में दोषी करार दिया था. पहला दोष यह कि उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय में आफिसर ऑन सोशल ड्यूटी यशपाल कपूर का इस्तेमाल चुनाव में अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए किया था. 


दूसरी अनियमितता यह थी कि इंदिरा गांधी ने जिन मंचों से चुनावी रैलियों को संबोधित किया था, उन्हें बनाने के लिए यूपी सरकार के अधिकारियों की मदद ली थी. उन अधिकारियों ने ही लाउडस्पीकरों और बिजली का बंदोबस्त किया था.