नई दिल्ली: डोकलाम विवाद की कड़वाहट को पीछे छोड़ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 27 और 28 अप्रैल को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेजबानी करेंगे. यह पहला मौका होगा जब चीनी राष्ट्रपति अपने मुल्क में किसी विदेशी मेहमान के साथ ऐसी अनौपचारिक मुलाकात करेंगे. दोनों नेताओं की यह बातचीत कई मायनों में खास होगी, क्योंकि इसमें न कोई लिखित भाषण होगा और न ही मेज पर कोई समझौता. यहां तक की भारत औऱ चीन के नेताओं की इस मुलाकात के दौरान कोई नोट लेने वाला तक नहीं होगा. यानी मोदी और शी जिनपिंग बेलाग बातचीत के जरिए एक-दूसरे को समझने और रिश्तों के उलझे ताने-बाने को सुलझाने का मौका निकाल सकेंगे.


24 घंटे में कई बार मिलेंगे दोनों नेता

निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक, पीएम मोदी अपनी इस दूसरी चीन यात्रा में 26 अप्रैल की रात वुहान पहुंचेंगे, जो मध्य-चीन के हुबई प्रांत की राजधानी है. हालांकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी मुलाकात दूसरे दिन यानी 27 अप्रैल की दोपहर होगी. दोनों नेता 24 घंटे के दौरान भोज से लेकर चाय की चुस्की और झील किनारे साथ चहल-कदमी तक कई मौकों पर साथ होंगे.

हालांकि द्विपक्षीय मुलाकात की स्थापित परंपराओं से परे हो रही इस बैठक के बाद बाद न तो कोई साझा बयान जारी होगा और ही नेताओं की तरफ से कोई एलान. वुहान में 28 अप्रैल को दोपहर का भोज करके पीएम मोदी रवाना हो जाएंगे.

मुलाकात के लिए चुनी खास जगह

दोनों नेताओं की इस मुलाकात के लिए जो जगह चुनी गई है उसके भी कई मायने निकाले जा रहे हैं. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खास मेहमान बनकर पहुंच रहे पीएम मोदी से मुलाकात के लिए चीन के पूर्व सुप्रीम लीडर माओ त्सेतुंग के ग्रीष्मकालीन आवास परिसर को चुना है. यह जगह वुहान के वुचांग इलाके में ईस्ट लेक के करीब है.

सूत्रों के मुताबिक, दोनों नेता झील के किनारे चहल-कदमी करते हुए भी समय बिताएंगे. साथ ही इस मीलिंग रीट्रीट परिसर की अन्य इमारत में अनौपचारिक सेटिंग के साथ मुलाकातों के विभिन्न कार्यक्रम रखे गए हैं. इसे संयोग कहिए या सोचा समझा संदेश, मगर अक्टूबर 2017 में हुई 19वीं पार्टी कांग्रेस की बैठक के बाद शी जिनपिंग को माओ के बराबर ही मजबूत नेता माना जा रहा है, जो हालिया संवैधानिक बदलावों के चलते अब आजीवन राष्ट्रपति रह सकेंगे.

मतभेदों को मिटाने और सहमति के बिंदू बढ़ाने की जुगत

यांग्त्जे किनारे इस अनौपचारिक मुलाकात के पीछे मंशा वो हासिल करने की होगी जो साबरमति के तट पर झूले से नहीं मिल पाया. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मई 2014 में सत्ता संभालने की पहली तिमाही में बड़े मेहमान को तौर पर शी जिनपिंग भारत आए थे. साबरमति के किनारे पर झूला झूलने से लेकर गांधी आश्रम में सूत कातने तक कई तस्वीरें सामने आई थी. मगर शी जिनपिंग के भारत में रहते रहते ही रिश्तों के ताने-बाने का तार नियंत्रण रेखा के कांटों में उलझ गया था.

शी जिनपिंग के चीन लौटने के करीब एक हफ्ते बाद चुशूल इलाके में दोनों देशों के सैनिकों के बीच आमने-सामने की स्थिति सुलझाने का फार्मूला निकल पाया. इस यूएन में मसूद अजहर जैसे आतंकी के खिलाफ प्रतिबंध से लेकर एनएसजी की सदस्यता तक कई मोर्चों पर भारत के विरोध में चीन खड़ा नजर आया. इसके अलावा मालदीव, नेपाल, श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों में भी चीन विषम कोण बनाता नजर आया. रही सही कसर भूटान के साथ लगी सीमा पर डोकलाम इलाके में 70 दिनों तक चले सैन्य तनाव ने पूरी कर दी थी. लिहाजा 29 अगस्त को सैन्य गतिरोध खत्म करने पर बनी सहमति के बाद से ही शीर्ष स्तर पर बेहतर संवाद और तालमेल की जरूरत महसूस की जा रही थी.

किसी एक मुद्दे पर चर्चा की संभावना भी धुंधली

सूत्रों के मुताबिक, दोनों पक्ष से यह महसूस किया जा रहा था कि नेताओं के बीच रणनीतिक संवाद की जरूरत है. ताकि दोनों प्रमुख एक-दूसरे के मुद्दों और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लिए गए फैसलों के पीछे मंशा को समझ सकें. इससे आपस में बेहतर तालमेल की गुंजाइश बढ़ती है. बैठक का वैसे तो कोई एजेंडा नहीं रखा गया है. किसी एक मुद्दे पर चर्चा हो इसकी भी संभावना धुंधली है. हालांकि जानकारों के मुताबिक इस मुलाकात के दौरान डोकलाम जैसे मुद्दों पर बात होती भी है तो भारत को यह कहने में कतई नहीं झिझक नहीं होगी कि जून 2017 में चीन की तरफ से बनाई गई सड़क से त्रिपक्षीय सीमा स्थिति बदलने की आशंका थी. इसके मद्देनदर ही भारत ने कार्रवाई की. हालांकि सैनिकों की वापसी के बाद जमीनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. भारत चाहेगा कि सीमा पर शांति बनी रहे जो बेहतर संबंधों के लिए जरूरी है.

इस बैठक से उम्मीदों के बारे में एबीपी न्यूज से बातचीत में राषट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल(रि.) एसएल नरसिंहन कहते हैं कि ऐसी मुलाकात से किसी बड़े नतीजे या ऐलान की अपेक्षा बेमानी है. इस मुलाकात से दोनों पक्ष अपनी असहमतियां कम करने का प्रयास करेंगे. इसके बाद उम्मीद की जा सकती है कि सीमा पर चीन की ओर से तनाव और ट्रांसग्रेशन की घटनाओं में कमी आए. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत और चीन के बीच कई मुद्दों पर अधिक सक्रिय तालमेल देखने को मिल सकता है. इसके अलावा भारत की अपेक्षा होगी कि चीन एनएसजी में उसकी सदस्यता और मसूद अजहर जैसे आतंकी को लेकर अपनी रुख में नरमी दिखाए. भारतीय खेमा आपसी कारोबार में एकतरफा तरीके से चीन की ओर झुके पलड़े को संतुलित करने के उपायों पर भी चीन से ठोस रियायतों की अपेक्षा करेगा. हालांकि यह सब फिलहाल उम्मीदें हैं. इन उम्मीदों का भविष्य मोदी-जिनपिंग मुलाकात के नतीजों से तय होगा.

क्या नीरव मोदी के समर्पण और भारत वापसी पर भी होगी बात?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति की मुलाकात की तैयारियों के बीच यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या इसके बाद हांगकांग में छुपे नीरव मोदी की वापसी का रास्ता साफ हो सकेगा? मामले पर विदश मंत्रालय आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने को तैयार नहीं है. इस बीच उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि बातचीत के दौरान किसी एक निर्धारित मुद्दे पर बात तो नहीं होगी. लेकिन, आपसी संबंधों और विश्वास बहाली के उपायों में अगर इस मामले में चीन से सकारात्मक और जल्द सहयोग मिलता है तो यह स्वागत योग्य ही होगा. ध्यान रहे कि बीते हफ्ते अपने लंदन दौरे में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात में प्रमुखता से आर्थिक अपराधियों का मुद्दा भी उठाया था. ऐसे में उम्मीद की ज सकती है कि पीएम चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात में एक-दूसरे के अपराधियों और आर्थिक भगोड़ों के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा उठा सकते हैं.

ध्यान रहे कि विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने संसद में दिए एक लिखित जवाब में बताया था कि पीएनबी बैंक घोटाले का मुख्य आरोपी हीरा कारोबारी नीरव मोदी हांगकांग में है. उसकी वापसी के लिए भारत ने द्विपक्षीय समझौते के आधार पर एक आधिकारिक आवेदन भेजा है. मगर, इस आवेदन के करीब एक माह बाद भी भारत को इस मामले में ठोस कार्रवाई का इंतजार है.

आतंकवाद पर चीन की मदद से कसी जा सकती हैं पाक की चूड़ियां

आतंकवाद के मुद्दे पर चीन के रवैये ने भारत के लिए परेशानी बढ़ाई है. मसूद अजहर जैसे आतंकवादी का नाम संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधित सूची में डलवाने की मुहिम बीते दो सालों में इसलिए परवान नहीं चढ़ पाई क्योंकि चीन सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर अडंदा लगाता रहा. हालांकि बीते कुछ महीनों में पर्दे के पीछे चले संवाद के बाद पाक-पोषित आतंकवाद के मुद्दे पर चीन के रवैये में बदलाव के निशान दिखाई दिए हैं. आतंकवाद की आर्थिक रसद काट्ने के उपाय करने वाली आंतरराष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ की फरवरी २०१८ में हुई बैठक के दौरान शुरुआती अडचनों के बाद अंत में चीन ने भी पाकिस्तान के खिलाफ पेश प्रस्ताव का समर्थन किया.

हालांकि मोदी और शी जिनपिंग की अनौपचारिक मुलाकात के बाद पाकिस्तान से उठी चिंताओं और सवालों के बीच चीनी विदेश मंत्रालय ने इस्लामाबाद को भरोसा जरूर दिया है कि इससे दोनों मुल्कों की हर मौसम दोस्ती पर फर्क नहीं पड़ेगा. मगर, यह पाकिस्तान को भी पता है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के मंच पर चीन आतंकवाद की खुलकर हिमायत करते नजर नहीं आना चाहेगा.

2018 में दो बार चीन जाएंगे मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महज दो महीने में फिर चीन यात्रा करेंगे. शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में शिरकत के लिए जाएंगे. जून में निर्धारित बहुपक्षीय बैठक से पहले अनौपचारिक द्विपक्षीय मुलाकात को तरजीह इसलिए भी दी गई ताकि दोनों नेता बेहतर तरीके से संवाद कर सकें. सूत्रों के मुताबिक बहुपक्षीय मुलाकात के दौरान समय की कमी के चलते दोनों पक्ष इस बात पर राजी थे कि अनौपचारिक मुलाकात बातचीत का बेहतर अवसर होगा.

परंपरा भी बन सकती है ऐसी मुलाकातें

इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा कि दोनों नेताओं के बीच इस तरह की मुलाकात एक परंपरा की शक्ल ले ले. हालांकि सूत्रों का कहना है कि इस बारे में किसी निर्णय से पूर्व वूहान में होने जा रही बैठक का इंतजार किया जाना चाहिए.