केंद्र सरकार ने देशभर में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के आतंकी गतिविधियों में एक्टिव होने के सबूत मिलने के बाद बड़ा एक्शन लेते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को 5 साल के लिए बैन कर दिया है. उनका आधिकारिक ट्विटर हैंडल भी बैन कर दिया गया है. भारत सरकार द्वारा संगठन को प्रतिबंधित किए जाने के बाद ट्विटर ने यह कार्रवाई की है.


केंद्रीय एजेसियों का आरोप है कि इस संस्थान ने बाबरी विध्वंस और गुजरात दंगे के वीडियो का सहारा लेते हुए देश के युवा वर्ग को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश की है. केंद्रीय जांच एजेंसी के अनुसार इस संगठन पर अब तक 1400 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. ये मामले गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम-1967, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत देश भर में दर्ज किए गए हैं. 


22 सितंबर को हुई छापेमारी में PFI के 45 नेताओं को गिरफ्तार किया गया था. छापेमारी के दौरान तीन ऐसे लोगों की भी गिरफ्तारी हुई जिन्होंने साल 1992 में PFI के मूल संगठन नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) की स्थापना और संचालन किया था. ये तीनों हैं पी कोया, ई अबूबकर और ईएम अब्दुल रहिमन. इन तीनों नेताओ में एक लाइब्रेरियन, एक प्रोफेसर और एक अरबी भाषा के शिक्षक हैं. 


ऐसे में PFI के कुछ शीर्ष नेताओं के बारे में जानते हैं. जिनकी गिरफ्तारी 22 सितंबर को छापेमारी के दौरान हुई. आइये जानते हैं कि PFI संगठन के गिरफ्तार ये नेता कौन हैं और किस व्यवसाय से जुड़े हैं. 


पी कोया
पकड़े गए तीन बड़े नेताओं में एक पी कोया केरल के कोझिकोड के एक गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में प्रोफेसर है. वह 1978-79 के दौरान SIMI का सदस्य थे. SIMI एक प्रतिबंधित इस्लामिक छात्र संगठन है जिसकी स्थापना 25 अप्रैल 1977 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई थी. साल 2001 इस संगठन को आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया था. 


इसके बाद पी कोया साल 1980 में इस्लामिक यूथ सेंटर के डायरेक्टर चुने गए. 1986 में वे एक निजी फर्म में काम करने के लिए ओटार गए. 1989 में, वे वापस लौटे और कोझीकोड में एक लेक्चरर के रूप में काम करने लगे.  उन्होंने NDF के गठन में के.एम अशरफ और अबुबकर के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी 


अब्दुल रहिमन
गिरफ्तार किए जाने वाले दूसरे बड़े नेता का नाम था ईएम अब्दुल रहिमन है. वह केरल के एर्नाकुलम के रहने वाले हैं. अब्दुल रहिमन एक रिटायर्ड लाइब्रेरियन है. रहिमन 70 के दशक में SIMI में शामिल हुए थे जिसके बाद में इसके ऑल इंडिया अध्यक्ष बने. 1990 के दशक में उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय विकास मोर्चा की स्थापना की गई. साल 2007 में जब पीएफआई को बेंगलुरु के एक सम्मेलन में बनाया गया था, वह संगठन के संस्थापक और छाया प्रमुख बने. रहिमन की भूमिका पीएफआई के साथ अन्य संगठनों के गठन में मानी जाती है. 


अनीस अहमद
'द हिंदू' के मुताबिक इस छापेमारी में पकड़ा गया तीसरा नेता अनीस अहमद है. अनीस अहमद PFI का जनरल सेक्रेटरी है. जब पीएफआई ने साइबर स्पेस में अपनी गतिविधियों का विस्तार किया तो उन्होंने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी. PFI के राष्ट्रीय महासचिव पद पर रहे अनीस अहमद ने हाल ही में निकाले जाने से पहले छह महीने तक बेंगलुरू के एरिक्सन में ग्लोबल टेक्निकल मैनेजर के रूप में काम किया था. वह सोशल मीडिया पर भी काफ़ी एक्टिव रहते थे. उन्हें समय-समय कई मुद्दों पर अपनी बात रखते हुए भी देखा गया है. 


अबु बकर


अबूबकर अरबी भाषा के शिक्षक हैं. उसने एनडीएफ की स्थानीय स्तर की इकाइयों के निर्माण के लिए पूरे केरल की यात्रा की. जब कई छोटे मुस्लिम संगठन बाबरी मस्जिद के लिए धन इकट्ठा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब अबु बकर ने संगठन को मजबूत करने के लिए अलग-अलग राज्यों में यात्राएं की और लोकल मुस्लिम संगठनों को साथ लाने की कोशिश की.


पीएफआई का इतिहास


पिछले कुछ दिनों से पीएफआई एक बार फिर चर्चा में आ गया है. ऐसे में आइये जानते हैं कि पीएफआई कैसा संगठन है, यह कैसे और कब अस्तित्व में आया और इस पर अक्सर कट्टरता फैलाने के क्यों आरोप लगते रहे हैं.


पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टर विचारधारा वाला संगठन माना जाता है. इसकी शुरुआत साल 2006 में दक्षिण भारतीय राज्य केरल में हुई. वर्ष 2006 में तीन मुस्लिम संगठनों का विलय हुआ जिसके बाद पीएफआई अस्तित्व में आया.


तीनों संगठनों में राष्ट्रीय विकास मोर्चा, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु की मनिथा नीति पासारी थे. दरअसल, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद दक्षिण में इस तरह के कई संगठन सामने आए थे. उनमें से कुछ संगठनों को मिलाकर पीएफआई का गठन किया गया. तब से ही यह संगठन देशभर में कार्यक्रम आयोजित करवाता है.  


पिछले 16 साल से चल रहा पीएफआई दावा करता है कि उसकी देश के 23 राज्यों में इकाइयां है. यह संगठन देश में मुसलमानों और दलितों के लिए काम करता है और मध्य पूर्व के देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है जिससे उसे अच्छी-खासी फंडिंग मिलती है. पीएफआई का मुख्यालय कोझीकोड में था, लेकिन लगातार विस्तार के कारण इसका सेंट्रल ऑफिस राजधानी दिल्ली में खोल दिया गया. 


27 राजनीतिक हत्याओं में शामिल 


पीएफआई पर आरोप है कि जब देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इसके ज्यादातर नेताओं ने पीएफआई का दामन थाम लिया. पीएफआई शुरुआत से ही विवादों में रहा, उस दौरान भी उसपर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और नफरत फैलाने के आरोप लगते रहे. 


बता दें कि 2014 में केरल हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने एक हलफनामा दायर किया, जिसके मुताबिक पीएफआई के कार्यकर्ता केरल में 27 राजनीतिक हत्याओं के जिम्मेदार थे. वहीं हलफनामें में यह भी कहा गया है कि यह संगठन केरल में हुई 106 सांप्रदायिक घटनाओं में किसी न किसी रूप में शामिल था.       


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