राजौरी: एलओसी पर पाकिस्तान की तरफ से लगातार युद्धविराम का उल्लंघन जारी है और आतंकियों के घुसपैठ की कोशिश के लिए भी नापाक साजिश जारी है. ऐसे में भारतीय सैनिक एलओसी पर अपनी बादशाहत कैसे कायम रखते हैं, उसके लिए एबीपी न्यूज़ की टीम पहुंची एलओसी के राजौरी सेक्टर के कोर बैटल स्कूल (सीबीएस) में. यहां आईईडी ब्लास्ट से लेकर घुसपैठ रोकने और आतंकियों को ढेर करने की ट्रेनिंग जाती है.


'वी ट्रेन टू विन' यानी हम जीतने के लिए ट्रेनिंग देते हैं, वाले आदर्श-वाक्य के साथ कोर बैटल स्कूल में एलओसी पर तैनाती से पहले सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है. सीबीएस के सैन्य अधिकारियों के मुताबिक, हाल के दिनों में एलओसी पर आईईडी की कई घटनाएं सामने आई हैं. पाकिस्तानी ‌सेना की बैट यानी बॉर्डर एक्शन टीम चोरी छिपे एलओसी पार कर भारतीय सेना की चौकियों के करीब या फिर पैट्रोलिंग के रूट पर आईईडी को प्लांट कर देती है. इसलिए एलओसी पर तैनाती से पहले भारतीय सैनिकों को आईईडी ब्लास्ट के खतरों से निपटने की खास ट्रेनिंग दी जाती है.


सीबीएस, जम्मू के करीब नगरोट स्थित 16वीं कोर यानी वाइट नाइट कोर का एक बेहद ही महत्वपूर्ण ट्रेनिंग सेंटर है. 16वीं कोर के अंतर्गत आनै वाले अखनूर, राजौरी, सुंदरबनी, नौसेरा, मेंढर, कृष्णा घाटी से लेकर पूंछ तक जितने भी सैनिक एलओसी या फिर हिंटरलैंड में तैनात होते हैं उनकी पहले यहां ट्रेनिंग होती है.


सैनिकों को यहां अलग-अलग तरह की आईईडी से वाकिफ कराया जाता है. ये आईईडी किसी कुत्तै जैसे जानवर से लेकर थर्मस और एम्युनिशेन बॉक्स तक में हो सकती है. इसके अलावा पैट्रौलिंग रूट पर बेहद ही बारीक तार से बांधकर फिट कर दी जाती है. ऐसे में सैनिकों को सिखाया जाता है कि पैट्रोलिंग के वक्त किसी भी अनजान वस्तु को ना छुएं. इसके अलावा रास्ते में फूंक-फूंककर कदम रखें.


आतंकी किसी आईईडी से सेना के काफिले इत्यादि को निशाना ना बना सकें, उ‌सके लिए खास उपकरण दिए जाते हैं, आईईडी को डिटेक्ट करने के लिए. ये उपकरण किसी भी आईईडी को डिटेक्ट करते ही एक्टिवेट हो जाते हैं और अलार्म बज जाता है. अलार्म बजते ही सैनिक अलर्ट हो जाते हैं. इसके अलावा भारतीय सेना ने आईईडी को जाम करने के लिए एक खास जैमर तैयार किया है. इस जैमर का नाम है, 'एशी मार्क-3'. ये क्योंकि व्हीकल-माउंटेड है, इसलिए इसे गाड़ी में रखकर काफिले के साथ चलाया जा सकता है. एशी मार्क-3 की रेंज में जो भी आईईडी होगी वो जाम हो सकती है. आपको बता दें कि पुलवामा हमले के बाद से ही सड़क पर सेना और सुरक्षाबलों के काफिले पर मूविंग-आईईडी का खतरा काफी बढ़ गया है. इसलिए इस तरह के जैमर का इस्तेमाल भारतीय सेना करती है.


जानकारी के मुताबिक, सीबीएस में हर साल 29-30 हजार सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है. क्योंकि यहां पर वे सैनिक आते हैं जो पहले से ही सेना का हिस्सा होते हैं, इसलिए सैनिकों को 14 दिन की एलओसी-ट्रेनिंग दी जाती है. इन 14 दिनों में आईईडी ट्रेनिंग के अलावा आतंकियों की घुसपैठ रोकने की ट्रेनिंग दी जाती है. साथ ही अगर आतंकी नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पार कर भारतीय सीमा में दाखिल हो जाते हैं तो फिर जंगल में कैसे उन्हें न्यूट्रेलाइज़ किया जा सकता है उसक प्रशिक्षण दिया जाता है.


अगर आतंकी जंगल का एरिया पारकर शहरी इलाके में घुसने में कामयाब हो जाता है तो उसके लिए अर्बन-शूटिंग फायरिंग यानी हाउस-इंटरवेंशन ट्रेनिंग दी जाती है. इस ट्रेनिंग में किसी घर में छिपे आतंकियों को घेरकर कै‌से खात्मा किया जाता है, उसका प्रशिक्षण दिया जाता है.


जानकारी के मुताबिक, कोर बैटल स्कूल का मकसद सैनिकों को फिजीकिल, ऑपरेशनल और साईक्लोजिकल ट्रेनिंग देना है. साईक्लोजिकल ट्रेनिंग देना इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि पाकिस्तान के युद्धविराम उल्लंघन और आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए सैनिकों को शारारिक तौर से मजबूत होने के साथ साथ मानसिक तौर से भी मजबूत होना बेहद जरूरी है.


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