Railway Land Encroachment: हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का मामला काफी सुर्खियों में हैं. उत्तराखंड की हाई कोर्ट की ओर से अतिक्रमण हटाए जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल के लिए रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इस जमीन पर रहे लोगों को बड़ी राहत मिली है. मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी. यह कोई पहला मामला नहीं है जब रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण को लेकर मामला कोर्ट में पहुंचा है.
इससे पहले गुजरात और हरियाणा में भी ऐसा ही मामला सामने आया था. केंद्र सरकार के हवाले से इंडिया टुडे ने जानकारी दी कि देशभर में रेलवे की 800 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर अतिक्रमण है.
रेलवे की इतनी जमीन पर है अतिक्रमण
रेलवे मंत्रालय की ओर से 31 मार्च 2019 को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रेलवे पास के 4.78 लाख हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है. इसमें 821.46 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है. रेलवे की जमीनों पर कितना अतिक्रमण है, इसे जानने के लिए राज्य सरकार और रेलवे ने मिलकर जॉइंट सर्वे किया था. 2017 में हुए सर्वे में सामने आया था कि भारतीय रेलवे की 821.46 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण है.
कैसे हटाया जाता है अतिक्रमण?
रेल मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि अतिक्रमण को हटाने के लिए स्थानीय स्तर पर रेलवे सर्वे करता है. सर्वे में रेलवे की जमीन पर बने अवैध निर्माण को रेलवे पुलिस और स्थानीय पुलिस की मदद से हटवाया जाता है. रेल मंत्रालय के मुताबिक, जहां कोई एक पार्टी अतिक्रमण के लिए उत्तदायी नहीं है वहां पर पब्लिक प्रिमाइसेस एक्ट 1971 के तहत अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाती है.
हल्द्वानी मामले पर क्या फैसला लिया?
हल्द्वानी में रेलवे जमीन से अतिक्रमण हटाने पर फिलहाल के लिए रोक लगाते हुए कोर्ट ने कहा, "आप सिर्फ 7 दिनों में खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं? हमें कोई प्रैक्टिकल समाधान ढूंढना होगा. समाधान का ये यह तरीका नहीं है. जमीन की प्रकृति, अधिकारों की प्रकृति, मालिकाना हक की प्रकृति आदि से उत्पन्न होने वाले कई कोण हैं, जिनकी जांच होनी चाहिए." कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से पूछा, "लोग 50 सालों से रह रहे हैं, उनके पुनर्वास के लिए भी कोई योजना होनी चाहिए."
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