देश के न्यायालयों में 4.4 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग पड़े हैं लेकिन जजों की संख्या दिन प्रतिदिन कम ही हो रही है. इसलिए न्याय की आस में बाट जोह रहे आम लोगों को दशकों का इंतजार करना पड़ रहा है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक देश के 25 हाईकोर्ट में से 11 हाईकोर्ट में जजों की संख्या 40 प्रतिशत से कम है. देश के सभी हाईकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 1080 है लेकिन इनमें से 430 पद खाली हैं. देश में 25 हाईकोर्ट हैं.


बिहार में जजों की सबसे ज्यादा कमी
बिहार में जजों की सबसे ज्यादा कमी है. पटना हाईकोर्ट में जजों के स्वीकृत पदों की संख्या 53 है जबकि वर्तमान में सिर्फ 20 जज ही वहां कार्यरत हैं. केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय के डाटा के अनुसार 1 जून तक पटना हाईकोर्ट में 62 प्रतिशत जजों के पद खाली थे. इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट का दूसरा स्थान है. यहां 56 प्रतिशत जजों की कमी है. कलकत्ता हाईकोर्ट में स्वीकृत 72 जजों के मुकाबले मात्र 31 जज है.


वहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान में जजों के 53 प्रतिशत पद खाली है. मध्य प्रदेश में स्वीकृत 53 में से 24 जबकि राजस्थान में स्वीकृत 50 में से सिर्फ 23 जज कार्यरत हैं. आंध्र प्रदेश और दिल्ली में जजों के 48 प्रतिशत पद खाली हैं. आध्र प्रदेश में जजों के स्वीकृत पद 37 हैं जबकि वहां 19 जज ही काम कर रहे हैं. दिल्ली में भी स्वीकृत 60 जज के बदले 31 जज ही कार्यरत हैं.


पांच हाईकोर्ट में 40 से 44 प्रतिशत जजों के खाली पद
अन्य हाईकोर्ट में जजों की 40 प्रतिशत से ज्यादा खाली वाले राज्यों में गुजरात, ओडिशा, पंजाब और हरियाणा, तेलंगाना और झारखंड शामिल हैं. गुजरात, ओडिशा, पंजाब और हरियाण हाईकोर्ट में जजों 44 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं. वहीं तेलंगाना में 41 प्रतिशत और झारखंड में जजों के 40 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं. सिर्फ मणिपुर, मेघालय और सिक्किम हाईकोर्ट में जजों के पद पूरे भरे हुए हैं. मणिपुर में 5, मेघालय में 4 और सिक्किम हाईकोर्ट में जजों के स्वीकृत पद हैं. 


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