नई दिल्ली: जहां एक तरफ पूरे देश पर आईपीएल का खुमार चढ़ा हुआ है, वहीं पाकिस्तान से सटी एलओसी पर कश्मीर के जंगल में अलग क्रिकेट का बुखार चढ़ा है. यहां पिछले दो हफ्तों से स्थानीय गांवों के नौजवान सेना द्वारा आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. लेकिन खास बात ये है कि इस हफरूदा जंगल को कभी कश्मीर में आंतकियों का ‘रिस्पेशन-एरिया’ माना जाता था. पिछले दो दशक में इस जंगल में करीब 1000 आतंकियों का एनकाउंटर हो चुका है, लेकिन अब इस जंगल को आतंकियों के कश्मीर घाटी के ‘रूट’ के लिए नहीं क्रिकेट ग्राउंड के रूप में जाना जाने लगा है.


सेना की राष्ट्रीय राईफल्स की 15वीं यूनिट (15आरआर) के तत्वाधान में इन दिनों एलओसी से सटे कुपवाड़ा के हफरूदा जंगलों में क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित किया गया (15-31 अक्टूबर). इस टूर्नामेंट में हफरूदा के जंगलों के आसपास के गांवों की 25 टीमों सहित करीब 300 नौजवानों ने हिस्सा लिया. लीग मैच तीनों जगह पर खेले गएं—हफरूदा, भेनीपुरा और विलगाम में. इस दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पूरा ध्यान रखा गया. स्थानीय कश्मीरी युवाओं में इस टूर्नामेंट के बाद इतना जोश और उमंग था कि बाद में उन्होनें ब्लड डोनेशन कैंप में रक्त-दान भी किया.


सेना मुख्यालय में तैनात एक सैन्य अफसर के मुताबिक, इस क्रिकेट टूर्नामेंट की सफलता बताती है कि कश्मीर के नौजवान हथियार और हिंसा का रास्ता छोड़कर अपना सुनहरा भविष्य देखना चाहते हैं. अफसर के मुताबिक, कुपवाड़ा के नौजवानों ने क्रिकेट जर्सी पहन और हाथों में क्रिकेट बैट उठाकर पूरी कश्मीर घाटी के लिए एक मिसाल पेश की है.



आपको बता दें कि 90 के दशक से ही हफरूदा जंगल आतंकियों का गढ़ माना जाता था. करीब 50 वर्ग किलोमीटर के इस जंगल में ना केवल पाकिस्तान बल्कि अफगानिस्तान, मिश्र (ईज्पिट) और सूडान से भी लड़ाके (आतंकी) कश्मीर घाटी पहुंचते थे. पाकिस्तान से एलओसी पार कर ये जंगल इन आंतकियों के लिए ‘रिस्पेशन-एरिया’ का काम करता था. जंगल में पहुंचकर यहां सक्रिय ‘गाईड’ इन्हें कश्मीर घाटी के अलग-अलग इलाकों में बंटने का रास्ता बताते थे और ये आतंकी पूरी घाटी में हथियारों के दम पर आतंक मचाते थे. यहां तक की इस जंगल को कश्मीर के ‘रेप’ का रूट तक कहा जाने लगा. क्योंकि ये विदेशी आतंकी आसपास के गांव में अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे. जो भी स्थानीय नागरिक इनका आदेश नहीं मानता था, उसे ये अपहरण कर टॉर्चर करते थे या मार देते थे. महिलाओं तक को नहीं बख्शा जाता था और उनसे भी बदसलूकी की जाती थी.



सेना के अधिकारी के मुताबिक, आतंकियों के खात्मे के लिए फिर सेना ने कमान संभाली और उसका ही नतीजा है कि पिछले दो-तीन दशक में अकेले इस जंगल में ही 1000 से भी ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया. पिछले कई सालों से अफगानिस्तान या फिर किसी दूसरे देश के लड़ाके का यहां आने की घटना सामने नहीं आई है, पाकिस्तान के आतंकी जरूर घुसपैठ की ताक में लगे रहते हैं. पाकिस्तानी आतंकियों की घुसपैठ के लिए पाकिस्तानी सेना भी उनकी मदद करने की जुगत में लगी रहती है. लेकिन भारतीय सेना ने साफ कर दिया है कि कश्मीर के अमन-शांति में खलल डालने में पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के मंसूबों को किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं होने दिया जाएगा.


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