SC On Decriminalising Politics: बिहार चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित न करने का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 8 पार्टियों को अवमानना का दोषी माना है. 6 पार्टियों पर 1-1 लाख रुपए और 2 पार्टियों पर 5-5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है.


पिछले साल जनवरी के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था सभी राजनीतिक दल किसी प्रत्याशी को टिकट देने के 48 घंटे के भीतर अखबार और टीवी में उसके आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी प्रकाशित करें. पार्टी अपनी वेबसाइट पर भी प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड डाले. अगर अपराध के किसी आरोपी को टिकट दिया है तो चुनाव को यह बताएं कि उसी उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया गया. इसके कुछ महीनों बाद हुए चुनाव में ज़्यादातर पार्टियों ने इन निर्देशों का पालन नहीं किया. इसके बाद 2 याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग और अलग-अलग पार्टियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा दाखिल किया.


आज इस मामले पर जस्टिस रोहिंटन नरीमन और बी आर गवई की बेंच ने फैसला दिया. कोर्ट ने माना कि कुछ पार्टियों ने आदेश का आंशिक रूप से पालन किया. उन्होंने आपराधिक छवि के लोगों को टिकट दिया. इसकी कोई संतोषजनक वजह आयोग को नहीं बताई. कम पहचाने अखबारों में प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड छपवा कर औपचारिकता पूरी की. जबकि 2 पार्टियों ने आदेश का बिल्कुल पालन नहीं किया. कोर्ट के नोटिस के जवाब में उन्होंने इसके लिए अपनी राज्य इकाई के भंग होने का बहाना बनाया.


कोर्ट ने इस बहाने को स्वीकार नहीं किया और सीपीआई (एम) और एनसीपी पर 5-5 लाख का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने जेडीयू, आरजेडी, एलजेपी, कांग्रेस, बीजेपी और सीपीआई को भी अवमानना का दोषी माना है. हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि यह उसके आदेश के बाद हुआ पहला चुनाव है. इसलिए, वह कठोर दंड नहीं देना चाहता. ऐसे में इन पार्टियों पर 1-1 लाख का जुर्माना लगाया गया है.


भविष्य के लिए कोर्ट ने निर्देश दिया है कि :-


* राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड डालें


* चुनाव आयोग विशेष मोबाइल ऐप बनाए. जहां मतदाता ऐसी जानकारी देख सके


* मतदाताओं को जागरूक बनाने के लिए अभियान चलाए जाएं


* चुनाव आयोग इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए विशेष सेल बनाए


* पार्टी प्रत्याशी चुनने के 48 घंटे के भीतर आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित करे. ऐसा प्रकाशन नामांकन दाखिल करने की पहली तिथि से 2 हफ्ते से ज़्यादा पहले न हो


* अगर कोई राजनीतिक दल आदेश का पालन नहीं कर रहा, तो चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी दे


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