आगामी विधानसभा चुनाव और अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपनी नई टीम बना ली है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी की सबसे सबसे ताकतवर समिति का गठन कर लिया है. इस समिति में 39 लोगों को शामिल किया गया है. इस लिस्ट में पार्टी के आसंतुष्ट माने जाने वाले G-23 समूह के नेताओं को भी जगह मिली है. 


कांग्रेस कार्य समिति की लिस्ट में सचिन पायलट, शशि थरूर, नसीर हुसैन, अलका लांबा, सुप्रिया श्रीनेत, प्रणीति शिंदे, पवन खेड़ा, गणेश गोदियाल, यशोमती ठाकुर शामिल हैं. इसके अलावा मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, एके एंटनी, अंबिका सोनी, अधीर रंजन चौधरी, दिग्विजय सिंह, चरणजीत सिंह चन्नी, आनंद शर्मा, समेत कुल 39 नेता शामिल हैं.


विशेष आमंत्रित सदस्यों में पवन खेड़ा, सुप्रिया श्रीनेत और अलका लांबा के नाम शामिल हैं. शशि थरूर का नाम इस लिस्ट में शामिल होना दिलचस्प माना जा रहा है. थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए खरगे को चुनौती दी थी. 


गांधी परिवार के तीन सदस्य, मनमोहन भी शामिल 


कांग्रेस की कार्यसमिति में कुल 84 लोगों को जगह दी गई हैं. इनमें 15 महिलाएं हैं. कार्यसमिति के 39 अहम सदस्यों में खरगे, गांधी परिवार के तीनों सदस्यों सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, और राहुल गांधी का नाम शामिल है.


पूर्व पीएम मनमोहन सिंह भी शामिल हैं. दीपा दासमुखी और गौरव गोगोई को भी जगह दी गई है. इस कमेटी में कई ऐसे दिग्गज नेताओं का नाम नहीं है जिन्हें जरूरी समझा जा रहा था. 


प्रमोद, पुनिया और लल्लू बाहर
राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी को इस कमेटी से बाहर रखा गया है. विशेष आमंत्रित सदस्य पीएल पुनिया और अजय कुमार लल्लू को भी इस बार जगह नहीं मिली है. यूपी के अन्य नेताओं में राजीव शुक्ला को इंचार्ज बनाया गया है. 


मुख्यमंत्रियों को नहीं मिली जगह, पूर्व सीएम की भरमार 
नई गठित कांग्रेस की कार्यसमिति में मुख्यमंत्रियों को जगह नहीं मिली है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इससे बाहर रखा गया है. सचिन पायलट को जगह दी गई है.


इसमें छत्तीसगढ़, हिमाचल और कर्नाटक के मुख्यमत्रियों को भी हिस्सा नहीं बनाया गया है. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्रियों और पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों की भरमार है.


टीम में जगह पाने वाले दो पूर्व मंत्रियों में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, चरणजीत सिंह चन्नी, और हरीश रावत शामिल हैं. वहीं सक्रिय राजनीति से सन्यास की घोषणा के बावजूद केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एके एंटनी को पार्टी की सबसे ताकतवर संस्था में शामिल किया गया है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिंदबरम, जयराम रमेश, सलमान खुर्शिद भी इसका हिस्सा हैं. 


संतुलन साधने की कोशिश 
नई टीम में एससी, एसटी, ओबीसी अल्पसंख्यक, महिला और युवा वर्ग को जगह दी गई है. टीम में नए और पुराने चेहरों को तरजीह दी गई है. पार्टी में करीब करीब सभी चर्चित चेहरे हैं. समिति में अजय माकन को प्रमोशन देकर मुख्य समिति में जगह दी है. पवन खेड़ा, देवेन्द्र यादव, मनीष चित्ररथ, जैसे नेताओं को भी शामिल किया गया है. 


यूपी नदारद, जीत कैसे तय होगी


वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने एबीपी न्यूज को बताया कि कांग्रेस की नई वर्किंग कमेटी में सबसे बड़ी कमी ये है कि कई बड़े राज्यों को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है. ऐसा लग रहा है कि यूपी के बारे में सोचा भी नहीं गया है. 


कमेटी में यूपी से प्रमोद तिवारी को कोई जगह नहीं दी गई है. शुक्ला ने कहा कि किसी भी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यूपी ही है. अगर पार्टी ने यूपी को ही दरकिनार रखा है तो इंडिया वर्सेज एनडीए कैसे माना जा सकता है. 


शुक्ला ने कहा कि इंडिया ने जिस तरह से यूपी को तरजीह नहीं दी है उससे ये माना जा सकता है कि वो समाजवादी पार्टी के दम पर यूपी में लड़ाई लड़ना चाहती है. या पार्टी को यूपी पर भरोसा नहीं है, पार्टी यहां पहले ही हार माने हुई है. 


शुक्ला ने कहा कि जी -23 के सदस्यों को लेकर पार्टी ने एक चुनावी मैसेज जरूर दिया है, लेकिन अगर पार्टी यूपी नहीं जीत पाएगी तो पार्टी की जीत मुश्किल है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने अजय राय को यूपी कांग्रेस अध्यक्ष बनाया है. राय 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बनारस से नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कांग्रेस प्रत्याशी थे. यहां पर उनकी जमानत भी जब्त हो गयी थी. 


गांधी परिवार का दबदबा, लेकिन कामयाबी तय नहीं


वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया कि कांग्रेस की वर्किंग कमेटी का पुनर्गठन में कुछ की छुट्टी तो कुछ की एंट्री कितना कारगर होगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि गांधी परिवार का दबदबा इस बार भी कायम है. गांधी परिवार के तीन सदस्य तो हैं ही, बाकी भी उनके कट्टर समर्थक हैं.


पहले लोकसभा चुनाव के वक्त जो सीडब्ल्यूसी थी, उसके तीन ही सदस्य चुनाव जीत पाए थे. इसलिए कमेटी जैसी भी हो, कांग्रेस और उसके नेतृत्व को जब तक जनस्वीकृति नहीं मिलती, तब तक इसे सिर्फ औपचारिकता माननी चाहिए. राहुल गांधी आजमाए जा चुके हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में परखी जा चुकी हैं.


इसलिए इस बदलाव का लाभ तभी दिखेगा, जब कांग्रेस को कर्नाटक की तरह इस साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसे सफलता मिले. 


वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने बताया कि पार्टी ने नई कांग्रेस कमेटी में संतुलन साधने की कोशिश की है, नामों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि कुछ वफादारों को कमेटी में शामिल किया गया है तो कुछ गांधी परिवार के वफादारों को अछूता छोड़ दिया गया. ऐसा कहा जा सकता है कि कमेटी में जो नाम शामिल किए गए हैं, उसे लेकर एक बार और सोचा जा सकता था.


सैनी ने कहा कि कमेटी पर गौर करने से पता चलता है कि इंडिया आने वाले विधानसभा चुनावों पर ज्यादा ध्यान दे रही है. पार्टी ये मान कर चल रही है कि अगर विधानसभा चुनावों में जीत मिलती है तो 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी कम नुकसान होगा. पार्टी के सामने एनडीए सबसे बड़ी चुनौती है और कांग्रेस अपना वजूद बनाए रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है. 


सैनी ने कहा कि पार्टी ने कमेटी में जिताऊ उम्मीदवारों को तरजीह दी है. पार्टी एनडीए को हराना चाह रही है. इंडिया अभी से ये कहने लगी है कि एनडीए को हराने के लिए कांग्रेस अपने आप में बदलाव लाने की कोशिश कर रही है. इंडिया गठबंधन इसी का नतीजा है.