Mokama By-Election: बिहार (Bihar) की मोकामा विधानसभा सीट (Mokama assembly Seat) पर हुआ उपचुनाव (Mokama Bypoll) राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और बीजेपी (BJP) के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई भी था. इस सीट पर छह उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे थे लेकिन मुख्य मुकाबला आरजेडी और बीजेपी के बीच ही था. इस सीट पर पिछले पांच बार (2005 में दो बार, 2010, 2015 और 2020) से बाहुबली नेता अनंत सिंह (Anant Singh) विधायक बन रहे थे. घर में हैंड ग्रेनेड और एके-47 असॉल्ट राइफल रखने के जुर्म में इस साल 21 जून को उनकी विधानसभा सदस्यता चली गई थी और उन्हें दस साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. 


इस उपचुनाव में उनकी पत्नी और आरजेडी नेता नीलम देवी (Neelam Devi) की जीत हुई है. उन्होंने दूसरे बाहुबली ललन सिंह (Lalan Singh) की पत्नी और बीजेपी नेता सोनम देवी (Sonam Devi) को 16,000 से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया है. नीलम देवी को 79,744 वोट मिले जबकि सोनम देवी ने 63,003 मत हासिल हुए. आइए जानते हैं कि मोकामा सीट पर आरजेडी के सामने कैसे बीजेपी ने करारी शिकस्त खाई है?


1. प्रतिष्ठा की लड़ाई में व्यक्तित्व रहा हावी


मोकामा को आरजेडी का गढ़ कह सकते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी से ही बाहुबली नेता अनंत सिंह जीते थे. उनकी विधायकी जाने बाद ही यहां उपचुनाव कराया गया, इसलिए आरजेडी के लिए यह प्रतिष्ठा का चुनाव था. अनंत सिंह भूमिहार परिवार से आते हैं और उन पर हत्या, अपहरण समेत कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, बावजूद इसके मोकामा के ज्यादातर मतदाता पिछले 17 वर्षों से उन पर भरोसा जताते आए हैं. अब उनकी पत्नी ने उपचुनाव जीत लिया है, इसका मतलब है कि चुनाव आरजेडी की प्रतिष्ठा से इतर अनंत सिंह के व्यक्तित्व पर लगा दांव भी था, जो उन्होंने जेल में रहते हुए भी जीत लिया है. 


इसे व्यक्ति आधारित जीत इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि इस सीट से लगातार पांच बार की जीत में अनंत सिंह दो बार निर्दलीय विधायक भी रह चुके हैं. वह मार्च 2005 में निर्दलीय, नवंबर 2005 में जेडीयू, 2010 में जेडीयू, 2015 में निर्दलीय और 2020 में आरजेडी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीते थे. बीजेपी के लिए मोकामा प्रतिष्ठा की लड़ाई इसलिए था क्योंकि यहां वह पहली बार अपने बूते चुनाव में उतरी थी. इससे पहले बीजेपी यह सीट अन्य दलों के लिए छोड़ती आई थी. 


2. बीजेपी ने इस परीक्षा के लिए सोचा नहीं था!


नीतीश कुमार के साथ छोड़कर जाने के बाद बीजेपी को मोकामा की परीक्षा की तैयारी करने के लिए तीन महीने से भी कम समय मिला. तीन महीने पहले बीजेपी ने इस तैयारी के लिए शायद ही सोचा हो. ज्यादातर समय तो हाल के मिले जोर के झटके की समीक्षा में चला गया होगा. वहीं, बाकी बचा समय सीट पर डेब्यू करने जा रही पार्टी के लिए नाकाफी रहा. यह भी माना जा रहा था कि नीतीश के महागठबंधन में चले जाने के बाद उनकी छवि प्रभावित हुई है और इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा. दरअसल, बिहार बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद ने महागठबंधन सरकार पर जनता विरोधी और गरीब विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा था कि मतदाता राज्य में जंगल राज की वापसी नहीं चाहते हैं, इसलिए महागठबंधन को हार मिलेगी. मोकामा में ऐसा नहीं हुआ और बीजेपी हार गई.


3. छोटे सरकार ने बिगाड़ दिया बीजेपी का जातीय समीकरण 


मोकामा विधानसभा सीट भूमिहार बाहुल्य मानी जाती है. बिहार में खेती-किसानी से जुड़े किसानों को भूमिहार कहा जाता है. इसके बाद यहां ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी, पासवान और रविदास जातियों का नंबर आता है. माना जाता है कि सवर्ण वोट यानी भूमिहार-ब्राह्मण और राजपूत जिसके पाले में जाता है, उसकी जीत होती है. आरजेडी और बीजेपी दोनों ने ही इसे देखते हुए भूमिहार उम्मीदवार उतारे लेकिन जीत आरजेडी की हुई. भूमिहार परिवार से आने वाले अनंत सिंह की जाति आधारित वोट पर पहले से खासी पकड़ है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भूमिहार बाहुल्य इस इलाके की राजनीति में अनंत सिंह को छोटे सरकार का रुतबा हासिल है. अपने वोट बैंक को साधने के लिए वह लगातार उससे संपर्क में बने रहते हैं. 


सजा होने के बाद भी अनंत सिंह इलाके की खबर लेते रहते हैं और वहीं से निर्देश देते हैं. उनका एक्टिव रहना उन्हें प्रासंगिक बनाए रखता है. इस चीज की बढ़त उनकी पत्नी के पास थी. बीजेपी ने सोनम देवी को टिकट दिया था, जोकि भूमिहार समाज से आती है लेकिन उनके पति ललन सिंह, अनंत सिंह से अब तक हुए मुकाबलों में पीछे ही रहे हैं. हालांकि, पासवान वोटरों को खींचने के लिए बीजेपी ने लोकजन शक्ति पार्टी के चिराग पासवान का साथ लिया लेकिन उसमें बहुत देर कर दी. पासवान वोटर खिंचकर बीजेपी के पाले में नहीं आ सके. वहीं, नीलम देवी के लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार में उतरे, इससे उन्हें फायदा हुआ. माना जा रहा है कि तेजस्वी के चुनाव प्रचार में कूदने से यादव वोट में सेंध नहीं लग पाई. 
  
4. अनंत सिंह के जेल जाने के बाद पत्नी रहीं एक्टिव


अनंत सिंह को सजा होने के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लेकर तमाम सवाल उठने लगे थे. इस पर उनकी पत्नी नीलम देवी ने देर न करते हुए खुद तमाम अटकलों और कयासों पर विराम लगा दिया था. उन्होंने मीडिया से कह दिया था कि पति की विरासत वही संभालेंगी और चुनाव में उतरकर इलाके की जनता की सेवा करेंगी. उम्मीदवारी के सवाल पर उन्होंने कहा था कि पार्टी भावनाओं का खयाल जरूर रखेगी. 


नीलम देवी को सियासत के रण में नई योद्धा मालूम हो सकती है लेकिन उनके अनुभव के आधार पर उन्हें राजनीति की पुरानी खिलाड़ी माना जा सकता है. इसके कई कारण हैं. पहला यह के राजनीति से जुड़े घर के लोगों में सियासत के गुण आ ही जाते हैं, दूसरा यह कि जब 2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने आरजेडी से नामांकन दाखिल किया तो नीलम देवी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर्चा भर दिया था. यह दरअसल, राजनीति में एक कूटनीतिक पैतरा था कि अगर विवाद में फंसे अनंत सिंह का नामांकन रद्द हो जाए तो उनकी पत्नी दावेदार बनी रहें. हालांकि, अनंत सिंह का पर्चा रद्द नहीं हुआ और फिर नीलम देवी ने नाम वापस ले लिया. 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त अनंत सिंह जेल में थे. ऐसे में चुनाव प्रचार की कमान नीलम देवी ने ही संभाली थी. कांग्रेस ने उन्हें मुंगरे से लोकसभा का चुनाव लड़ाया था, जिसमें वह दूसरे स्थान पर रही थीं. साफ है कि अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी का सक्रिय राजनेता के तौर पर मैदान में बने रहना बीजेपी के लिए घाटा साबित हुआ.  


5. नीतीश की गैर-मौजूदगी का लाभ नहीं ले पाई बीजेपी 


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होने के बावजूद उपचुनाव में प्रचार से दूरी बनाए रखी. मोकामा में उनकी गैर मौजूदगी को बीजेपी ने मुद्दा बनाया. बीजेपी ने नीतीश वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की लेकिन इसमें सफल नहीं हुई. नीतीश वहां भले ही नहीं पहुंचे हों लेकिन जनता मन में विश्वास रहा होगा कि उनका नेता मुख्यमंत्री बना बैठा है. आम तौर पर सत्तारूढ़ व्यक्ति से लोगों का लगाव बना रहता है. बीजेपी इस लगाव में सेंध लगाने में असफल रही लेकिन जिस तरह से कम मार्जिन से बीजेपी इस सीट पर हारी है, उसने उसके लिए आगे दरवाजा बड़ा कर दिया है. बीजेपी का दावा है कि मोकामा में अब तक हारने वालों में उसका प्रदर्शन सबसे बेहतर है.


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