मैसूर दशहरा समारोह का उद्घाटन लेखिका बानू मुश्ताक से करवाने के खिलाफ दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. याचिकाकर्ता ने मुस्लिम महिला से हिंदू धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत करवाने का विरोध किया था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह एक सरकारी कार्यक्रम है. कोर्ट ने 2017 में कवि निसार अहमद से इस कार्यक्रम का उद्घाटन करवाए जाने का उदाहरण भी दिया.

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जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि यह एक सरकारी कार्यक्रम है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. सरकार धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती. उसने एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को बुलाया है. ध्यान रहे कि बानू मुश्ताक पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित एक जानी-मानी लेखिका हैं.

याचिकाकर्ता एच एस गौरव ने दलील दी थी कि इस समारोह की शुरुआत चामुंडेश्वरी देवी की परंपरागत पूजा से होती है. राज्य सरकार एक मुस्लिम महिला को मंदिर में आमंत्रित कर उनसे कार्यक्रम का उद्घाटन करवाने जा रही है. यह धार्मिक मामलों में दखल है. याचिकाकर्ता ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 यानी धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक मामलों के प्रबंधन के मौलिक अधिकार से जोड़ा था.

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जजों के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अगर कोई रिबन आदि कटवा कर कार्यक्रम का उद्घाटन करवाना हो तो कोई आपत्ति नहीं की जा सकती, लेकिन मंदिर के भीतर होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में गैर हिंदू को प्रमुखता देना सही नहीं है. कोर्ट सरकार से यह कहे कि वह मंदिर के कार्यक्रम से अपने मुख्य अतिथि को दूर रखे, लेकिन जजों ने कोई आदेश देने से मना कर दिया.

इससे पहले 15 सितंबर को कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी मामले में दखल देने से मना कर दिया था. हाई कोर्ट में भी याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि राज्य सरकार का यह कदम लाखों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है, लेकिन हाई कोर्ट ने कहा था कि मामले में याचिकाकर्ता के किसी अधिकार का हनन नहीं हो रहा है.