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भारतीय सेना ने अभी तक कई खुफिया ऑपरेशनों को अंजाम दिया है, जो कि सफल भी रहे हैं. देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऑपरेशन की जानकारी को गुप्त रखा जाता है. भारतीय सेना की ओर से एक इसी तरह का ऑपरेशन 1988 में किया गया था. नाम था ऑपरेशन लीच, जिसके तहत हथियार तस्करों को गिरफ्तार किया गया था.

बात फरवरी 1998 की है. पूर्वोत्तर राज्यों में अस्थिरता फैलाने की साजिश रची जा रही थी. इसमें कुछ विदेशी ताकतों का भी हाथ था. 1990 के दशक में म्यांमार के विद्रोही समूह हथियारों की तस्करी का बड़ा नेटवर्क बना चुके थे. ये हथियार पूर्वोत्तर तक भी पहुंचने वाले थे. इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने ऑपरेशन लीच चलाया. हालांकि इसको लेकर कभी भी आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई.

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हथियार तस्करों से भारत को क्या हो सकता था नुकसान

'द गार्जियन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सेना ने ऑपरेशन लीच के दौरान फरवरी 1998 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हथियारों और गोला-बारूद के भंडार को पकड़ा था. इसके साथ-साथ कई तस्कर भी गिरफ्तार हुए थे. ये हथियार भारत में अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर में पहुंचने वाले थे.

क्या थी भारतीय एजेंट की कहानी

दावा किया जाता है कि सिर्फ एक भारतीय एजेंट ने पूरे ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाई थी. उसने हथियार तस्करों के बीच सेंध लगाकर अपनी जगह बना ली थी, जहां उसकी जान पर हर पल खतरा था. उसने हथियारों की तस्करी से जुड़ी खुफिया जानकारियां सेना तक पहुंचाई और सेना ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास 73 लोगों की गिरफ्तारी की. हालांकि इस ऑपरेशन को लेकर किसी भी तरह की आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. 'द डिप्लोमेट' की रिपोर्ट के मुताबिक ऑपरेशन लीच के दौरान 6 लोगों की मौत भी हुई थी. अहम बात यह भी है कि ऑपरेशन लीच काफी विवादों में रहा. 

ऑपरेशन लीच के दौरान सेना को क्या-क्या बरामद हुआ

सेना ने ऑपरेशन लीच के दौरान भारी मात्रा में गोला-बारूद बरामद किया था. इसके साथ ही एके-47 राइफलें, विस्फोटक और अन्य सैन्य सामग्री को जब्त किया था. इस ऑपरेशन के जरिए हथियारों की तस्करी के बड़े चैनल को भी तबाह कर दिया.