म्यूनिख सिक्योरिटी इनडेक्स (MSI) की रिपोर्ट में बताया गया कि भारतीय सबसे ज्यादा पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और साइबर अटैक को लेकर चिंतित हैं. जी7 और ब्रिक्स देशों के लोगों से बात करके यह जानने की कोशिश की गई कि वह अपने देश में किसे सबसे बड़ा जोखिम या खतरा मानते हैं. सर्वे में रूस को शामिल नहीं किया गया है.


म्यूनिख सुरक्षा सूचकांक की रिपोर्ट ने संकेत दिए हैं कि दुनिया ऐसे युग में प्रवेश कर चुकी है, जहां देश वैश्विक लाभ पर नहीं सापेक्ष लाभ पर ध्यान दे रहे हैं.  रिपोर्ट बताती है कि आने वाले 10 सालों में राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक दृष्टिकोण को लेकर पश्चिमी देशों में निराशावाद की भावना है, जबकि दुनियाभर में पर्यावरणीय खतरों के बारे में सबसे ज्यादा चिंता है. 


G-7 और ब्रिक्स देशों को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट
'लूज-लूज?' टाइटल से जारी रिपोर्ट म्यूनिख सुरक्षा सूचकांक (MSI) 2024 पर आधारित है. इसमें जी7 देशों- संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ और ब्रिक्स के देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के लोगों से बात करके तैयार की गई है. 


रिपोर्ट में भारतीय सबसे ज्यादा पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और प्रौद्योगिकी को लेकर चिंतित हैं. एमएसआई रिपोर्ट में अत्यधिक गर्मी और जंगल में आग की घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें बढ़ोतरी हुई है और यह भारत में चौथी सबसे बड़ी चिंता है. घातक बाढ़ से लेकर जंगल की आग तक भारत में 2023 में कई प्राकृतिक आपदाएं देखी गईं, जिन्हें मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन हो जा सकता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 122 सालों में 2023 दूसरा सबसे गर्म साल रहा.


साइबर हमलों को लेकर चिंतित भारतीय
रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के अधिकांश देशों की तरह भारत भी साइबर हमलों को लेकर चिंतित है. भारतीयों ने इसे दूसरा सबसे बड़ा खतरा माना है. अमेरिकी-इजरायली साइबर खतरा खुफिया विश्लेषक, चेक प्वाइंट सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजीज की 2023 की रिपोर्ट से  पता चला है कि भारत में पिछले छह महीनों में एक संगठन में हर हफ्ते औसतन 1,787 साइबर हमले देखे गए, जबकि वैश्विक औसत 983 था.


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दूसरी ओर भारत ने कथित तौर पर चीन को छोड़कर सर्वेक्षण में शामिल सभी अन्य देशों की तुलना में ऑटोनोमस रोबोट या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर कम चिंता व्यक्त की है. यह बात ऐसे समय में सामने आई है जब विशेषज्ञों की ओर से विश्व नेताओं से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खतरे की चेतावनी को देखते हुए बड़े पैमाने पर विकास को विनियमित करने के लिए कानून लाने का आह्वान किया जा रहा है.