नई दिल्लीः रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले आयुध कारखानों के निगमीकरण को लेकर मोदी सरकार का फ़ैसला धीरे धीरे बड़े विवाद की शक्ल अख्तियार कर रहा है. इसे लेकर रक्षा उत्पादन से जुड़े मजदूर और कर्मचारी संघों ने जहां हड़ताल का ऐलान कर दिया है तो वहीं सरकार ने इसे रोकने के लिए अध्यादेश के ज़रिए एक क़ानून ही बना दिया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंज़ूरी के बाद अध्यादेश लागू हो गया है. वैसे मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर नया सियासी बवाल खड़ा हो सकता है. 


मोदी सरकार ने Essential Defence Services Ordinance नाम से एक अध्यादेश लागू किया है. इस अध्यादेश में रक्षा उत्पादन से जुड़े संस्थानों को आवश्यक रक्षा सेवा ( Essential Defence Services ) की श्रेणी में लाया गया है. अध्यादेश में आवश्यक रक्षा सेवा के अंतर्गत आने वाले संस्थानों को परिभाषित किया गया है. अध्यादेश के मुताबिक़ अगर ऐसे संस्थानों में हड़ताल करने की कोशिश की जाती है तो उसे ग़ैर क़ानूनी माना जाएगा. 


अध्यादेश के प्रावधानों में इस 'ग़ैर क़ानूनी' काम में शामिल होने वाले व्यक्तियों के लिए जेल की सज़ा का प्रावधान किया गया है. ऐसा करने वाले व्यक्ति के लिए अध्यादेश में एक साल की सज़ा और दस हज़ार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. इतना ही नहीं , अगर कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति को हड़ताल करने के लिए उकसाता है तो उसके लिए दो साल की सज़ा और पंद्रह हज़ार रुपए के ज़ुर्माने का प्रावधान है. 


पिछले महीने की 16 तारीख को हुई कैबिनेट की बैठक में मोदी सरकार ने इन सभी कारखानों को 7 निगमों में बांटने का फ़ैसला लिया है. सरकार का दावा है कि इस फ़ैसले से इन कारखानों को आधुनिक बनाने में मदद मिलेगी ताकि विश्व स्तर का आधुनिक हथियार तैयार हो सके. उधर रक्षा क्षेत्र में काम कर रहे मजदूर संगठनों का दावा है कि मोदी सरकार इस क़दम के बहाने इन कारखानों का निजीकरण कर रही है. इन संगठनों ने 26 जुलाई से सभी कारखानों में हड़ताल करने का ऐलान किया है. इन कारखानों में क़रीब 80000 मजदूर और कर्मचारी काम करते हैं.


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