Bharat Jodo Yatra: राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली जा रही कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को कश्मीर में खत्म होने वाली है. यूं तो भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत से लेकर अब तक कांग्रेस कहती चली आ रही है कि इसका लोकसभा चुनाव 2024 से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन यात्रा के सियासी निहितार्थों को नकारा नहीं जा सकता है.


इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में शामिल होने के लिए 21 सियासी दलों को न्योता भेजा है. मल्लिकार्जुन खरगे की लिखी चिट्ठी से पता चलता है कि समान विचारधारा वाले इन राजनीतिक दलों को उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर आमंत्रित किया है. आसान शब्दों में कहें, तो खरगे भी इस यात्रा को सियासी रंग देने से बच रहे हैं.


हालांकि, मल्लिकार्जुन खरगे की ये पहल मिशन 2024 के लिए विपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन के लिए की जा रही एक्सरसाइज के तौर पर ही देखी जा रही है. संभव भी है कि कांग्रेस को विपक्षी दलों के अध्यक्षों का साथ भी मिल जाए, लेकिन हर राज्य में लोकसभा सीटों पर विपक्ष का सहयोग मिलना पार्टी के लिए मुश्किल है.


किन दलों भेजा खरगे ने न्योता?


मल्लिकार्जुन खरगे ने बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी, बिहार के सीए नीतीश कुमार की जेडीयू, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस, महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी, चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बसपा, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की जेएमएम, लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी और वामपंथी दलों समेत कुल 21 सियासी दलों को भारत जोड़ो यात्रा के समापन कार्यक्रम का न्योता दिया है.


मिशन 2024 से पहले विपक्षी एकता में मुश्किल क्या है?


जिस राज्य को लेकर कहा जाता हो कि देश की सत्ता का रास्ता इस सूबे से होकर गुजरता है. उस 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के बड़े सियासी दलों यानी सपा, बसपा, आरएलडी ने भारत जोड़ो यात्रा से दूरी बना रखी थी. इतना ही नहीं, व्यस्तताओं का हवाला देकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, आरएलडी नेत जयंत चौधरी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने बस शुभकामनाएं प्रेषित कर दी थीं. 48 लोकसभा सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को शिवसेना और एनसीपी के नेताओं का साथ मिला, लेकिन ये लोकसभा चुनाव 2024 से पहले गठबंधन के तौर पर फलीभूत होगा, इसकी संभावना नहीं जताई जा सकती है.


42 लोकसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी शायद ही राज्य में कांग्रेस को कोई तवज्जो देंगी. वहीं, पश्चिम बंगाल की तरह ही भारत जोड़ो यात्रा का रूट बिहार से होकर नहीं गुजरा. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और यहां आरजेडी, जेडीयू समेत कई छोटे सियासी दल मौजूद हैं. केवल इन चार राज्यों में ही लोकसभा की 543 सीटों में से 210 सीटें हैं और इन राज्यों में कांग्रेस का जनाधार तकरीबन शून्य ही माना जा सकता है. यूपी में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ही सांसद हैं और 2019 में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए थे. महाराष्ट्र में भी कांग्रेस एक लोकसभा सीट पर सिमट चुकी है. वहीं, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के दो सांसद हैं और बिहार में उसके खाते में शून्य है.


विधानसभा चुनाव के नतीजों पर भी टिकी है विपक्षी एकता


गुजरात में कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाने वाले अरविंद केजरीवाल पंजाब में पहले ही उससे सत्ता छीन चुके हैं. वहीं, गुजरात की 26 लोकसभा सीटों में बंटवारे के लिए न कांग्रेस तैयार होगी और न ही आम आदमी पार्टी. वैसे, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 'एकला चलो' की नीति पर आगे बढ़ रही है. संभावना जताई जा रही है कि आम आदमी पार्टी 2023 में होने वाले राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी जोर-आजमाइश करने उतरेगी. अगर ऐसा होता है, तो कांग्रेस को नुकसान होना तय है. इन राज्यों में कुल 65 लोकसभा सीटें हैं. वहीं, पंजाब में लोकसभा सीटों की संख्या 13 है, लेकिन यहां सत्ता में न होने का नुकसान कांग्रेस को हो सकता है. पंजाब में आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के साथ पंथिक राजनीति वाली पार्टियां भी कांग्रेस से दूरी बनाए रखेंगी.


पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के राज्यों में भी कांग्रेस महज सहयोगी दल


किसी जमाने में पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस के नाम का डंका बजता था, लेकिन अब इन राज्यों में पार्टी की पकड़ कमजोर हो चुकी है. वैसे भी पूर्वोत्तर के राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीटें ही हैं और यहां क्षेत्रीय दलों की स्थिति कांग्रेस से ज्यादा मजबूत है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना में कांग्रेस सहयोगी दलों की भूमिका में ही है. यहां भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस की तुलना में काफी मजबूत हैं. वहीं, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली, गोवा, ओडिशा में भी कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा जगह नहीं बचती है. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आई है, लेकिन यहां महज 4 लोकसभा सीटें हैं. आसान शब्दों में कहें, तो कांग्रेस को मिशन 2024 के लिए विपक्ष का साथ मिल सकता है, लेकिन हर राज्य में लोकसभा सीटें पर सहयोग मिलना मुश्किल है.


राहुल गांधी का तुर्रा- बीजेपी को सिर्फ कांग्रेस हरा सकती है


कांग्रेस विपक्षी दलों को अगुआ बनने की लगातार कोशिश कर रही है, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी के बयान इसमें बड़ी रुकावट हैं. कुछ दिनों पहले ही राहुल गांधी ने तुर्रा छोड़ दिया था कि बीजेपी को सिर्फ कांग्रेस ही हरा सकती है और ये किसी क्षेत्रीय दल के वश की बात नहीं है. राहुल गांधी के ऐसे बयानों से लगता है कि राज्यों में लगातार सत्ता खोने के बावजूद कांग्रेस का रवैया बदला नहीं है. अगर इसी तेवर पर कांग्रेस आगे बढ़ती रही, तो विपक्षी एकता की बातें पानी का बुलबुला ही साबित होंगी.


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