Maharashtra Assembly Speaker: महाराष्ट्र (Maharashtra) में महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार गिरने और एनडीए (NDA) की सरकार बनने के बाद अब विधानसभा स्पीकर पद को लेकर घमासान मच गया है. NDA के साथ-साथ महाविकास अघाड़ी ने भी विधानसभा स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारकर मामले को दिलचस्प बना दिया है. अब आज होने वाले इस चुनाव पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं. उधर उद्धव की सेना के सचेतक सुनील प्रभु (Sunil Prabhu) ने विधायकों को व्हिप जारी कर दिया है और कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव 3 और 4 जुलाई को होना है, ऐसे में शिवसेना के सभी विधायक पूरे चुनाव के दौरान सदन में मौजूद रहें.


शिवसेना के दोनों गुटों ने विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए व्हिप जारी किए हैं ऐसे में अब सवाल ये है कि इन दोनों में से किसका व्हिप वैध माना जाएगा. जिस व्हिप की इतनी चर्चा हो रही है वो होता क्या है और जब व्हिप जारी हो जाता है तो किन शर्तों को पूरा किया जाता है...आइए पहले वो समझ लेते हैं फिर आगे की बात करते हैं.


व्हिप क्या होता है?


यह शब्द पार्टी लाइन का पालन करने के लिए पुरानी ब्रिटिश प्रथा ”whipping” से लिया गया है. व्हिप की अगर बात करें तो ये किसी भी राजनीतिक दल का अधिकारी होती है जिसका काम विधायिका में पार्टी अनुशासन को बनाए रखना होता है. इसे सचेतक भी कहते हैं. कहने का मतलब ये है कि व्हिप संगठन के विधायकों या सांसदों को अपनी इच्छा के बजाए पार्टी के तय किए गए नियमों या फैसलों का पालन करना होगा. उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं कि कई बार फ्लोर टेस्ट होता है तो सभी विधायकों को व्हिप जारी किया जाता है कि वो सदन में उपस्थित रहें. व्हिप एक पार्टी के आदेश की तरह होता है जो विधायकों या सांसदों को मानना ही होता है. ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ पार्टी के नियमों के तहत कार्रवाई का सामना करना होता है.


व्हिप को लेकर उद्धव सेना और शिंदे सेना में लड़ाई


दरअसल, एकनाथ शिंदे गुट के चीफ व्हिप भरत गोगावले जो फरमान जारी करेंगे, उसे शिवसेना के सभी 55 विधायकों को मानना पड़ेगा. इस दौरान अगर उद्धव ठाकरे गुट के 16 विधायक व्हिप का विरोध करते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है. हालांकि, उद्धव ठाकरे के गुट का कहना है कि असली शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु हैं और वह जो भी व्हिप जारी करेंगे उसे बागियों समेत सभी शिवसेना विधायकों को मानना पड़ेगा. सुनील का व्हिप न मानने पर एकनाथ शिंदे के पक्ष के 39 विधायकों की सदस्यता जा सकती है.


क्या है कानून?


इस बारे में संवैधानिक कानून है कि अगर किसी दल में फूट पड़ जाए और दो तिहाई विधायक बागी हो जाएं, तब भी उनको एक अलग दल के रूप में मान्यता नहीं मिलती. वैधता के लिए उन्हें किसी अन्य दल में अपना विलय करना पड़ता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो बागी विधायकों की सदस्यता रद्द की जा सकती है. एक रास्ता यह है कि जिस पार्टी से विधायक बागी हुए हैं, उस पार्टी को दो धड़ों में बांट दिया जाए. यह बंटवारा जमीनी स्तर से लेकर उच्च स्तर तक हो. शिवसेना में अब तक ये हुआ नहीं है. विधायकों के अलावा शिवसेना के सांसदों और नगर निकाय के प्रतिनिधि अभी भी उद्धव गुट के साथ हैं. ऐसे में केवल 39 विधायकों वाले शिंदे गुट को ठाकरे के चीफ व्हिप के फरमान के खिलाफ जाना भारी पड़ सकता है.


कहां फंसेगा पेंच?


रविवार को स्पेशल सेशन के दौरान जब स्पीकर का चुनाव होगा तब दोनों गुट अपने-अपने व्हिप जारी करेंगे. ऐसे में संभावना है कि अगर एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुट के विधायक उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के चीफ व्हिप का उल्लंघन करते हैं तो उद्धव ठाकरे बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करवाने के लिए कोर्ट (Court) का दरवाजा खटखटा सकते हैं. इसी तरह शिंदे गुट भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. मतलब कि अगर उद्धव गुट के विधायक शिंदे गुट का व्हिप नहीं मानते तो 16 विधायकों की सदस्यता रद्द कराने के लिए एकनाथ शिंदे कोर्ट जा सकते हैं. कुल मिलाकर अब कोर्ट तय करेगा कि किसकी सेना का व्हिप योग्य है.


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