BRS on BJP: भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता और तेलंगाना के मंत्री केटी रामा राव ने मंगलवार (30 मई) को कहा कि साल 2026 के बाद अगर आबादी के आधार पर लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाता है, तो यह दक्षिणी राज्यों के साथ ‘घोर अन्याय’ होगा. बीआरएस नेता की यह टिप्पणी उन खबरों के मद्देनजर आई है, जिनमें दावा किया गया है कि अगर बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनावों में सत्ता में आती है, तो उसके नेतृत्व वाली सरकार संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करेगी.


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार (28 मई) को नए संसद भवन का उद्घाटन किया था. इसके लोकसभा कक्ष में 888 सदस्यों के लिए पर्याप्त जगह के साथ सीटों की संख्या तीन गुना है. नई राज्यसभा में 384 सदस्यों के बैठने की जगह है. इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा था कि संसद के पुराने भवन में बैठने की जगह से जुड़ी चुनौती थी और आने वाले समय में सीटों की संख्या बढ़ेगी और सांसदों की संख्या बढ़ेगी. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा सीटों का परिसीमन हो सकता है.


संविधान के 84वें संशोधन के अनुसार, निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं में 2026 के बाद पहली जनगणना तक या कम से कम 2031 कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा, वर्तमान लोकसभा सीटों का आधार 1971 की जनगणना है. वर्तमान में संसद के निचले सदन में 543 सीटें हैं.


बीआरएस के नेता ने कही ये बात


रामा राव ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि दक्षिण के राज्यों ने केंद्र की नीतियों का पालन करते हुए प्रगतिशील मानसिकता के साथ आबादी को नियंत्रित किया. यदि जनसंख्या आधारित परिसीमन होता है, तो यह उन राज्यों के साथ 'गंभीर अन्याय' होगा. उन्होंने आशंका जताई कि परिसीमन के कारण दक्षिणी राज्यों को कम लोकसभा सीटें मिल सकती हैं और दूसरी ओर विशेष रूप से उत्तरी क्षेत्र के राज्यों को लोकसभा सीटों में वृद्धि से लाभ हो सकता है.


बीआरएस नेता ने दावा किया कि इसका लाभ उत्तरी राज्यों को मिलेगा जो केंद्र सरकार की अपील के बावजूद जनसंख्या को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं. राव ने आरोप लगाया कि जनसंख्या को नियंत्रित करने वाले केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना को आज उनकी प्रगतिशील नीतियों के लिए कड़ी सजा दी जा रही है.


उनके अनुसार, दक्षिणी राज्य न केवल जनसंख्या नियंत्रण में बल्कि सभी प्रकार के मानव विकास सूचकांकों में भी सबसे आगे हैं. रामा राव ने दावा किया कि केवल 18 प्रतिशत आबादी वाले दक्षिणी राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 35 प्रतिशत का योगदान करते हैं और राष्ट्रीय आर्थिक विकास और पूरे देश में बहुत योगदान दे रहे हैं. उन्होंने दक्षिणी राज्यों के नेताओं और लोगों से अपील की, कि वे राजनीति से परे जाकर ‘अन्याय’ के खिलाफ आवाज उठाएं.


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