Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर विपक्षी एकता को लेकर तमाम कोशिशें जारी हैं. हालांकि इन प्रयासों के बावजूद सबसे अहम सवाल ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे विपक्षी एकता कितनी मजबूत साबित होगी. भारतीय राजनीति के बीते कुछ हफ्तों को देखें और आने वाले कुछ महीनों को देखें तो हम पाएंगे कि देश की एक समान विचारधारा की पार्टियां केंद्र की सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के खिलाफ एक गठबंधन को लेकर लामबंद हो रही हैं.


इस साल अप्रैल के आखिरी हफ्ते में टाइम्स नाऊ-ईटीजी के सर्वे में किए गये एक सर्वे में पूछा गया था कि क्या विपक्षी एकता पीएम मोदी को 2024 के चुनावों में रोक सकेगी? इस सवाल के जवाब में 49 प्रतिशत लोगों ने माना था कि संयुक्त विपक्ष भी पीएम मोदी को हराने में कामयाब नहीं हो पाएगा. तो वहीं 19 प्रतिशत लोगों का मानना था कि शायद संयुक्त विपक्ष बीजेपी को कुछ हद तक टक्कर दे पाएगा. तो वहीं 17 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि यह सही है कि संयुक्त विपक्ष बीजेपी को एक हद तक चुनौती दे सकेगा. वहीं, 15 प्रतिशत लोगों ने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया था.


क्या पटना में मीटिंग के बाद कमजोर हुआ है विपक्ष?
लेकिन अब राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तब से लेकर अब तक की परिस्थितियां बदल चुकी हैं. हालांकि अब की परिस्थितियों के मुताबिक अगले सर्वे तक कुछ भी कहना सही नहीं होगा. क्योंकि तब से लेकर विपक्ष में काफी टूट-फूट हो चुकी है. इसका एक अंदाजा विपक्ष की बिहार में हुई मीटिंग से चलता है. बिहार की राजधानी पटना में हाल के दिनों में ही समान विचार धारा वाले दलों की मीटिंग हुई थी, जिसमें देश के कई राज्यों की विपक्षी पार्टियों ने हिस्सा लिया था लेकिन दो हफ्ते बीतते-बीतते इनमें से कई पार्टियां बिखरती गई हैं. 


अगर हम पहली शुरूआत इस बैठक में शामिल हुई एनसीपी से करें तो हम पाएंगे कि एनसीपी बीते दो दिनों से दो गुटों में बट चुकी है. एनसीपी अध्यक्ष के तीन वरिष्ठ और महत्वपूर्ण सिपहसलारों ने उनसे सियासी बगावत करते हुए पार्टी पर अपना दावा ठोंक दिया है और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ बीजेपी-शिवसेना की सरकार के साथ हाथ मिला लिया है. जिन लोगों ने शरद पवार से बगावत की है उनमें एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल, विश्वस्त छगन भुजबल और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार भी शामिल हैं. 


बीआरएस के भी बदले हुए हैं सुर
कभी नीतीश कुमार के साथ मिलकर विपक्षी एकता की कल्पना को धार देने वाले बीआरएस पार्टी के प्रमुख और तेलंगाना के सीएम केसीआर के सुर बदले हुए हैं. जिस दिन पटना में विपक्ष की मीटिंग हो रही थी ठीक उसी दिन केसीआर के बेटे देश के गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर रहे थे. तो वहीं पटना मीटिंग में शामिल हुई आम आदमी पार्टी के सुर भी कुछ ठीक नहीं है और वह यूसीसी के मुद्दे पर वह नीतीश कुमार और कांग्रेस के साथ सुर-लय-ताल में नहीं दिख रही है.


ऐसे में हर दिन बदलती हुई तात्कालिक परिस्थितियों में विपक्ष 2024 के चुनाव में बीजेपी को कितनी चुनौती दे पाएगा यह कहना बहुत कठिन है. लेकिन कांग्रेस कर्नाटक को जीतने के बाद से काफी उत्साह में है और उनके नेतृत्व का मानना है कि वह बीजेपी के अंदर की कमजोरियों का मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में लाभ उठा सकेगी.


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