NDA Vs I.N.D.I.A.: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं. बीजेपी जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद के साथ 400 (सीटों) पार का लक्ष्य लेकर चल रही है तो इंडिया गठबंधन उसे सत्ता से बाहर करने के लिए ताल ठोक रहा है. दोनों को गेमचेंजर दांव की तलाश है लेकिन एनडीए बनाम 'इंडिया' की लड़ाई के बीच तीसरे मोर्चे को लेकर भी चर्चा है.


आखिर कैसे होंगा गेम चेंज? 303 सीट वाली बीजेपी 97 सीट कहां से जुटाएगी और जहां तक इंडिया गठबंधन का सवाल है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को गेम में पीछे कैसे छोड़ेगा? सवाल बड़े हैं लेकिन देश के दो राज्य ऐसे हैं जिनकी लोकसभा सीटें किसी भी पार्टी या गठबंधन के लिए गेमचेंजर हो सकती हैं.


दो राज्यों की सीटें हो सकती है गेमचेंजर


ये दोनों राज्य उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र हैं. दोनों देश के बड़े राज्य हैं और लोकसभा सीटों के मामले में नंबर वन और नंबर टू है. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं और महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं. दोनों को मिलाकर आंकड़ा 128 सीटों का होता है. यानी 543 सीटों का 24 परसेंट इन्हीं दो राज्यों में है. इसका मतलब साफ है कि इन दो राज्यों में जीत लोकसभा चुनाव जीतने में अहम भूमिका निभा सकती है.


पिछले दो लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी बहुत भारी दिखी है. 2014 में बीजेपी ने यहां 71 सीट जीती थीं और 2019 में 62 सीटें जीतकर विरोधियों के सारे मंसूबे ध्वस्त कर दिए थे, इसलिए इस बार पीएम मोदी के खिलाफ लामबंद हुए इंडिया अलायंस का सबसे बड़ा फोकस उत्तर प्रदेश पर है लेकिन उसकी तमन्ना पर मायावती के मंसूबे भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं. 


इंडिया अलायंस की तमन्ना पर मायावती के मंसूबे भारी!


इस पूरे पॉलिटिकल गेम को समझने के लिए कुछ सवालों से गुजरना होगा. पहला सवाल- मोदी विरोधी स्टैंड के बावजूद इंडिया अलायंस से दूर बैठीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती का प्लान क्या है? दूसरा- मायावती के प्लान में आखिर ऐसा क्या है जो इंडिया अलायंस में शामिल पार्टियों की परेशानी बढ़ा सकता है? तीसरा- इंडिया अलायंस की कुछ पार्टियों को उम्मीद है कि मायावती गठबंधन का हिस्सा बन सकती हैं. क्या उनकी उम्मीद पूरी होगी?


सबसे पहले बात पहले सवाल की क्योंकि मायावती की भविष्य की राजनीति और उत्तर प्रदेश में इंडिया अलायंस की तकदीर इसी सवाल के जवाब में छिपी है. बीएसपी वर्तमान में किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है लेकिन सवाल यह है कि क्या यही स्थिति आगे भी रहने वाली है या इसमें बदलाव होगा?


मायावती 15 जनवरी को कर सकती हैं बड़ा ऐलान


मायावती 15 जनवरी को एकदम सरप्राइज कर देने वाला ऐलान कर सकती हैं. एबीपी न्यूज से बीएसपी के कुछ बड़े नेताओं से बात हुई. उन्होंने मायावती के सामने मौजूद राजनीतिक विकल्प और उनके फ्यूचर प्लान को लेकर काफी कुछ बताया. उन्होंने सीधे तौर पर तो कोई बात नहीं कही लेकिन लेकिन उनकी बातों से अंदाजा हो गया कि मायावती कुछ बड़ा करने वाली हैं.


मायावती के तीन प्लान


मायावती बड़ी तेजी से एक साथ तीन प्लान पर काम कर रही हैं. वो तीन प्लान क्या हैं? प्लान A- मायावती अभी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बेशक नहीं हैं लेकिन वो इसमें शामिल हो सकती हैं. बशर्ते उनकी दो मांग पूरी हो जाएं, पहली- बीएसपी यूपी में सबसे सीनियर पार्टनर का दर्जा चाहती हैं यानी समाजवादी पार्टी से ज्यादा सीटें और दूसरी- बीएसपी का मानना है कि अगर वो इंडिया अलायंस में शामिल होती है तो मायावती से बेहतर पीएम फेस नहीं हो सकता है. 


प्लान B- प्लान A फेल हो जाए तो मायावती के पास प्लान B भी है. वह यूपी में कांग्रेस और आरएलडी को अलायंस का प्रस्ताव दे सकती हैं. इससे मुस्लिम और दलित वोट हासिल हो सकते हैं. कांग्रेस भी बीएसपी से गठजोड़ चाहती है लेकिन इसके लिए उसे समाजवादी पार्टी को राजी करना होगा. 


प्लान C- प्लान B भी अगर फेल हो जाए तो मायावती के पास प्लान C भी है. इसके तहत वह इंडिया अलायंस और एनडीए से अलग एक नया गठबंधन खड़ा कर सकती हैं यानी तीसरा मोर्चा. राजनीति में वैसे तो कुछ भी हो सकता है लेकिन मायावती के शुरुआती दोनों प्लान में कुछ ऐसी बातें हैं जिनका पूरा होना मुश्किल लगता है, जिसमें सबसे बड़ा पेंच प्रधानमंत्री पद की दावेदारी है. खबर है कि मायावती तीसरा मोर्चा बनाने की पहल शुरू कर चुकी हैं. इसके लिए उनकी पार्टी के नेता कई राजनीतिक दलों से संपर्क साध रहे हैं. 


मायावती का फ्यूचर प्लान क्या है?


बीएसपी सुप्रीमो मायावती 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बड़े राजनीतिक उलट फेर की तैयारी में हैं और यह ऐसा होगा जो पूरे देश में चर्चा का विषय होगा, जो एबीपी न्यूज के सूत्र बताते हैं.


सूत्रों के मुताबिक, मायावती एक तीसरा मोर्चा भी बना सकती हैं और इसमें वो तमाम पार्टियां शामिल हो सकती हैं. बीआरएस, टीडीपी, बीजेडी, एआईएमआईएम अलायंस का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए मायावती तीसरे मोर्चे में इनको जोड़ सकती हैं लेकिन इसी साथ दूसरा विकल्प यूपी स्पेसिफिक है, जिसके तहत अगर आरएलडी,कांग्रेस और बीएसपी एक साथ आती हैं तो एक बड़ी पॉलिटिकस फोर्स बनकर उभरेगी.


तीसरे मोर्चे का मतलब क्या है?


तीसरे मोर्चे का मतलब है कि राजनीतिक दलों का एक ऐसा गुट जो न कांग्रेस के साथ है, न बीजेपी के साथ. मायावती अगर तीसरा मोर्चा बनाती हैं तो ऐसी ही पार्टियों को अपने साथ जोड़ेंगी. ये पार्टियां कौन-कौन सी हो सकती हैं और ये कहां और कितनी सीटों पर असर डाल सकती हैं, यह समझना जरूरी है.


पहली तो खुद बीएसपी है, जिसका असर उत्तर प्रदेश करीब-करीब सभी 80 सीटों पर हैं. दूसरी पार्टी है बीजू जनता दल है जो किसी गठबंधन में नहीं है. अगर बीजेडी मायावती के तीसरे मोर्चे से जुड़ी तो ओडिशा की सभी 21 सीटों पर असर डाल सकती है. तीसरी पार्टी अकाली दल है, जिसका पंजाब की सभी 13 सीटों पर असर है. यह भी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है.


चौथी पार्टी है जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी है, जिसका असर आंध्र प्रदेश की सभी 25 सीटों पर दिखाई देता है. आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी भी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. राज्य की सभी 25 सीटों पर  इसका भी असर है. तेलंगाना की BRS किसी गठबंधन में नहीं है. यह राज्य की सत्ता से भले ही आउट हो गई है लेकिन राज्य की सभी 17 सीटों पर इसका असर बताया जाता है.


ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी किसी गठबंधन में नहीं है और इसे तेलंगाना, महाराष्ट्र और यूपी-बिहार में 8 से 10 सीटों पर प्रभावी माना जाता है. बदरुद्दीन अजमल की AIUDF असम की सभी 14 सीटों पर कुछ न कुछ असर डाल सकती है.


इन पार्टियों का भी असर


इसके अलावा राजस्थान में आरएलपी है, जिसके वोटर 4-5 सीटों पर प्रभावी माने जाते हैं और त्रिपुरा में टिपरा मोथा पार्टी भी है, जिसका राज्य की दो सीटों पर असर माना जाता है.


इसी तरह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कुछ छोटी पार्टियां हैं जो न एनडीए का हिस्सा हैं और न इंडिया अलायंस में शामिल हुई हैं. अगर मायावती के कहने पर 10 राज्यों में फैली ये क्षेत्रीय पार्टियां एक मंच पर आईं तो बहुत बड़ी ताकत बन सकती हैं क्योंकि ये करीब-करीब 180 सीटों पर असर डाल सकती हैं.






क्षेत्रीय पार्टियों का तीसरा मोर्चा बनने से हो सकता है I.N.D.I.A. गठबंधन को नुकसान


ये ऐसी पार्टियां हैं जो बीजेपी विरोधी वोट में ही सेंध लगाएंगी. इसका मतलब है इंडिया अलायंस को इसका सीधा नुकसान हो सकता है और मायावती अगर तीसरे मोर्चे की तरफ बढ़ रही हैं तो राजनीतिक नफा नुकसान का हिसाब-किताब भी जरूर लगाया होगा.


मायावती ने अगर थर्ड फ्रंट बनाया तो किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, ये इंडिया अलायंस के पार्टनर भी समझ रहे हैं, इसलिए पहले कांग्रेस की यूपी यूनिट ने मायावती को गठबंधन का हिस्सा बनाने की बात की और समाजवादी पार्टी के विरोध के बावजूद उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी वही बात कह रही है.


बहन जी के बारे में चर्चा भी हो रही है- संजय राउत


शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा है, ''बहन जी के बारे में चर्चा भी हो रही है, बहन जी और समाजवादी पार्टी में जरूर कुछ मतभेद है लेकिन उत्तर प्रदेश में हम लोग एक साथ लड़ सकते हैं तो यह सबसे बड़ी बात रहेगी और अगर यह होता है तो देश में परिवर्तन सौ परसेंट हो जाएगा.''


मतलब साफ है कि इंडिया अलायंस के पार्टनर्स को पता है कि मायावती अगर अलग लड़ीं या उन्होंने तीसरा मोर्चा बना लिया तो नुकसान इंडिया अलायंस का ही है. तीसरा मोर्चा बनाकर लड़ना मायावती और उनके संभावित साथियों के लिए कितना फायदेमंद रहेगा, ये अलग बात है, इसलिए एक सवाल यह भी उठ रहा है कि बीएसपी तीसरे मोर्चे की बात को हवा देकर कहीं इंडिया अलायंस पर प्रेशर डालने की कोशिश तो नहीं कर रहीं?


वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी का कहना है, ''मायावती के पास थर्ड फ्रंट बनाने के लिए बहुत कुछ बचा नहीं... हम सब जानते वो कैसा लाभ चाहती हैं और कैसा लाभ मिल सकता है, वो उनको मिल जाएगा थोड़ा बहुत लेकिन उससे ज्यादा उसकी कोई अहमियत होगी, मुझे नहीं लगता. थर्ड फ्रंट में कौन आएगा, सवाल यह है. जो भी ताकतवर ताकतें हैं वो इस फ्रंट में नहीं आएंगी, जिनको किनारे कर दिया जाएगा. पहली बात तो यह कि अभी फ्रंट की मुझे कोई संभावना नहीं नजर आती.''


राजनीति में असंभव कुछ नहीं होता. दांव मौके और समय देखकर चले जाते हैं. मायावती भी सही समय का इंतजार कर रही हैं, जो 15 जनवरी को आ सकता है. 


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