Supreme Court Fine Advocate: देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) में एक मामले की सुनवाई के दौरान जजों की एक पीठ ने याचिकाकर्ता वकील पर कोर्ट का समय बर्बाद करने के एवज में उसपर जुर्माना लगाया. दरअसल, याचिकाकर्ता वकील (Advocate) ने कोर्ट से अपनी बात साबित करने के लिए आठ मिनट का समय मांगा था. वकीन ने दावा किया कि वह अपनी बात साबित कर देगा. बेंच ने वकील की बात मानते हुए शर्त रखी की अगर अदालत वकील की दलीलों से संतुष्ट नहीं हो पाई तो उन पर हर मिनट के हिसाब से एक लाख रूपए का जुर्माना लगाया जाएगा. 


दरअसल, दिल्ली में 10 साल से पुराने डीजल व 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध  लगाने के फैसले के खिलाफ वकील अनुराग सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस एलएन राव, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने ना केवल इसे खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता वकील पर जुर्माना भी लगा दिया. साथ ही पीठ ने रजिस्ट्री को हिदायत देते हुए कहा कि किसी भी वकील से प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना से कहा कि ये याचिका फालतू है. साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना से ये भी कहा कि जब नई गाड़ियों से कार्बन उत्सर्जन का खतरा बना हुआ है, तो ऐसे में पुराने वाहन तो और भी खतरनाक हैं.


जज ने याचिका को बताया दुर्भाग्यपूर्ण


अदालत ने वकील की याचिका को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए गैर-जरूरी अर्जी देने पर अनुराग सक्सेना पर जुर्माना भी लगाया. जिसपर याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना ने अदालत से अपनी बात साबित करने के लिए केवल आठ मिनट का समय मांगा. वकीन ने कहा कि वह 8 मिनट में अपनी बात साबित कर देंगे. जिसपर बेंच ने वकील की बात मानते हुए ये शर्त रखी की अगर वो अपनी दलील से अदालत को प्रभावित नहीं कर पाए तो कोर्ट हर मिनट के लिए एक लाख रुपए के हिसाब से उनपर जुर्मान लगाएगी. 


बेंच ने वकील पर लगाया जुर्माना


याचिकाकर्ता वकील ने पीठ द्वारा याचिका (Petition) खारिज होने के बावजूद बहस जारी रखी. जिसपर बेंच ने कहा कि हमने पहले ही कह दिया था कि हम 8 लाख रुपये जुर्माना लगा सकते हैं. लेकिन अदालत (Court) किसी के लिए भी कठोर नहीं होना चाहती, खासकर जो सौभाग्य या दुर्भाग्य से वकील हैं. इसलिए हम इस मामले में नरम रुख अपनाते हैं. अदालत ने वकील को ये हिदायत भी दी कि अगर भविष्य में वे आगे भी इसी प्रकार की गैर-जरूरी याचिका दायर करते हैं तो ऐसे में कोर्ट को कड़ा रुख अपनाना होगा. इसके बाद बेंच ने 8 लाख की जगह वकील को 50 हजार का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया. 


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