Law Commission On e-FIR: लॉ कमीशन ने चरणबद्ध तरीके से ई-एफआईआर का रजिस्ट्रेशन शुरू करने की सिफारिश की है. लॉ कमिशन ने अपनी सिफारिश में कहा है कि इसकी शुरुआत तीन साल तक की जेल की सजा वाले अपराधों से की जा सकती है.

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इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में लॉ कमिशन ने ई-एफआईआर के रजिस्ट्रेशन की सुविधा के लिए एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल बनाने का भी प्रस्ताव दिया. यह रिपोर्ट शुक्रवार (29 सितंबर) को सार्वजनिक की गई. इसमें कहा गया है कि ई-एफआईआर से एफआईआर के पंजीकरण में देरी की समस्या से भी निपटा जा सकेगा और नागरिक रियल टाइम में अपराध की सूचना दे सकेंगे.

लॉ कमिशन ने दिए ये सुझावकानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने पत्र में लॉ कमिशन के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने कहा, ‘‘ टेक्नोलॉजी के विकास के कारण संचार के साधनों में बहुत प्रगति हुई है. ऐसी स्थिति में एफआईआर दर्ज करने की पुरानी प्रणाली पर ही टिके रहना आपराधिक सुधारों के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं."

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रिपोर्ईट में शिकायत या ई-एफआईआर दर्ज कराने वाले व्यक्ति द्वारा ई-वेरिफिकेशन और अनिवार्य घोषणा का सुझाव भी दिया गया, ताकि इसका दुरुपयोग न हो.

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ई-शिकायतों या ई-एफआईआर के गलत पंजीकरण के लिए कारावास और जुर्माने की न्यूनतम सजा दी जानी चाहिए, जिसके लिए आईपीसी की धाराओं में संशोधन किया जा सकता है.

सही समय पर हो सकेगी अपराधों की रिपोर्टएफआईआर के ऑनलाइन पंजीकरण को एनेबल करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 में संशोधन रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-एफआईआर एफआईआर के रजिस्ट्रेशन में देरी के कारण लंबे समय से जारी मुद्दे से निपटेंगे और नागरिकों को रियल टाइम अपराधों की रिपोर्ट करने की अनुमति मिलेगी.

आयोग ने आगाह किया कि इससे पुलिस पर अत्यधिक जांच का बोझ पड़ सकता है. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 155 के अनुसार सभी गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए ई-शिकायत के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए.  

रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-शिकायतों या ई-एफआईआर के गलत पंजीकरण से बचने के लिए शिकायतकर्ता का वेरिफिकेशन ई-प्रमाणीकरण तकनीकों का उपयोग करके किया जाए.  

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