पिछले कुछ दिनों से देश में भाषा को लेकर बहस जारी है. इसी बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये पढ़ाई-लिखाई का भगवाकरण कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार हिन्दी समेत सभी भारतीय जुबानों को पूरे आदर के साथ ‘‘राष्ट्रीय भाषाएं’’ मानती है और उन्हें बराबर महत्व देती है.


शिक्षा मंत्री ने पूछे सवाल
प्रधान ने इंदौर में मीडिया के एक सवाल पर कहा,‘‘अपनी जिन मातृभाषाओं में देश के नागरिक बोलते-सुनते हैं, उन भाषाओं पढ़ाई-लिखाई को बढ़ावा देना क्या भगवाकरण है? क्या भारतीय शिक्षा नीति को रोजगार के लिए उपयोगी बनाना भगवाकरण है?’’ उन्होंने किसी का नाम लिए बगैर कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर कुछ लोगों का "अपना दृष्टिकोण" है और वह उन्हें शुभेच्छाएं देते हैं. प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देश के सभी तबकों के लोगों के सुझावों के आधार पर बनाया गया है और सब इस नीति को लेकर सहमत हैं.


भाषाओं को लेकर फैलाया जा रहा भ्रम - प्रधान
शिक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि भारतीय भाषाओं को लेकर लोगों में "राजनीतिक कारणों से" भ्रम फैलाया जाता है. उन्होंने कहा, ‘‘हम भारत की सभी भाषाओं को पूरे आदर के साथ राष्ट्रीय भाषाएं मानते हैं. हिंदी हमारी राजभाषा (सरकारी काम-काज की भाषा) और एक महत्वपूर्ण जुबान है. लेकिन मराठी, गुजराती, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, तमिल, पंजाबी, उड़िया, बंगाली, असमी और अन्य भारतीय भाषाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं. सभी भाषाएं देश को जोड़कर रखती हैं.’’


रूसी हमले के बाद यूक्रेन से स्वदेश लौटने को बाध्य भारतीय मेडिकल विद्यार्थियों की पढ़ाई अधर में अटकने के बारे में पूछे जाने पर शिक्षा मंत्री ने कहा,‘‘हम लोग भी इस विषय में चिंतित हैं और इन विद्यार्थियों के लिए जरूर कोई रास्ता निकाला जाएगा.’’


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