Hindi National Language Row: उत्तर और दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेताओं में हिंदी के दर्जे पर हुए ट्वीट विवाद ने एक बार फिर उत्तर और दक्षिण के बीच भाषा की बहस को खड़ा कर दिया है. हालांकि इस बहस के बहाने फिर यह संदश देने की सियासी कोशिश भी उत्तर और दक्षिण के बीच भाषा की बहस को पाटने की सियासी कवायदें भी चल रही हैं.


दरअसल, भारत कई भाषाओं का मुल्क है. जहां भाषाएं संपर्क का साधन और सांस्कृतिक विविधता का रंग ही नहीं भरती हैं बल्कि राजनीति का कलेवर भी तय करती हैं. इसीलिए भाषणों से चलने वाली देश की राजनीति में भाषा की सियासत से सत्ता के रास्ते बनते और बिगड़ते रहे हैं.


भाषा के आधार पर बने कई सूबे
आज़ाद भारत में देश के कई सूबे भाषा के आधार पर ही बने हैं. वहीं कई राजनीतिक पार्टियां और नेता भाषा की राजनीति के सहारे ही सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे हैं. साथ ही यह बहस भी कोई नई नहीं है कि भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए या राजभाषा ही रहने दिया जाए. क्योंकि संविधान की आठवीं अनुसूची में आधिकारिक कामकाज की भाषा के तौर पर हिंदी समेत कुल 22 भारतीय भाषाएं हैं.


गृह मंत्रालय ने कई बार कहा- हिंदी राजभाषा है राष्ट्रभाषा नहीं
जहां तक सरकार का सवाल है, तो गृह मंत्रालय कई आरटीआई जवाबों में यह साफ़ करता आया है कि हिंदी राजभाषा है लेकिन राष्ट्र भाषा नहीं है. यानि सरकारी काम में आने वाली भाषा तो है लेकिन भारत की राष्ट्रीय भाषा नहीं है. इतना ही नहीं बीते एक दशक के दौरान कई बार भारत सरकार का गृहमंत्रालय और उसके तहत काम करने वाला राजभाषा विभाग यह साफ़ कर चुका है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का कोई प्रावधान ही संविधान में नहीं है. हालांकि यह भी सच है कि 32 लाख वर्ग किमी में फैले भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है. लिहाज़ा सरकार पर हिंदी को अधिक प्रोत्साहन देने और संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं


भाषा के इस विवाद की बड़ी वजह उत्तर और दक्षिण के बीच का बंटवारा भी है. साथ ही देश के सत्ता सिंहासन पर बैठे नेताओं में उत्तर का भारी पलड़ा दक्षिण भारत की शिकायतों का कारण भी रहा है. भारत में अब तक हुई 15 प्रधानमंत्रियों में से 13 उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले थे. देश की संसद को 80 सीटें देने वाले सूबे उत्तर प्रदेश का दबदबा सबसे ज़्यादा है.


बीजेपी का सियासी गणित दक्षिण भारत में कमजोर
लोकसभा चुनाव 2014 के सहारे सत्ता में लौटी बीजेपी के पास भी सदन में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी उत्तर भारत से ही है. लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी का सियासी गणित दक्षिण भारत में अब भी कमजोर ही है. आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल जैसे सूबों में एक भी सांसद नहीं है जहां से लोकसभा में 84 सीटें हैं. वहीं उड़ीसा, पश्चिम बंगाल जैसे सूबों में भी बीजेपी की कोशिश अपनी पैठ बढ़ाने की है.


लोकसभा में मौजूदा वितरण देखें तो मुख्यतः हिंदी भाषी 9 राज्यों की सदन में हिस्सेदारी क़रीब 40 फ़ीसदीहै. वहीं तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, प. बंगाल आदि सूबों की हिस्सेदारी क़रीब 45 फ़ीसदी है जहां क्षेत्रीय भाषा आम बोलचाल और सरकारी कामकाज में ख़ास अहमियत रखती है.


सत्तारूढ़ बीजेपी चुनावी संग्राम 2024 की तैयारियों में दक्षिण भारत पर ख़ास फ़ोकस दे रही है. इस चुनावी इंजीनियरिंग में भाषाई फ़ार्मूले पर ख़ासा ध्यान दिया जा रहा है. साथ ही बीजेपी की उत्तर भारतीय और हिंदी भाषी पार्टी की छवि को बदलने का काम भी जारी है. इस परियोजना के ही कारण ही पीएम मोदी लगातार तमिल के भाषाई गौरव का ज़िक्र करना नहीं भूलते.


पीएम मोदी तमिल को बताया दुनिया की सबसे पुरानी भाषा
फरवरी 27, 2022 को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मातृभाषा की अहमियत का उल्लेख करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि जैसे हम अपनी मां को नहीं छोड़ सकते उसी तरह अपनी मातृभाषा को भी नहीं छोड़ सकते. उन्होंने रेडियो कार्यक्रम में इस बात पर भी ख़ासा ज़ोर दिया था कि भारत को इस बात पर गर्व करना चाहिए कि दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल उनके देश में है. साथ ही इस बात पर भी गर्व करना चाहिए कि दुनिया की तीसरी सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी है.


पीएम मोदी यूएन के अपने भाषण में तमिल के मुहावरों का उल्लेख कर चुके हैं. वहीं 2017 में 30 राज्यों के पर्यटन और संस्कृति सचिवों की बैठक के दौरान पीएम ने इस बात पर भी ज़ोर दिया था कि भारत 100 से अधिक भाषाओं और 1700 बोलियों का देश है. लिहाज़ा तेलंगाना के युवा हरियाणवी सीखें और हरियाणा के बच्चे तेलगु सीखें. इतना ही नहीं रायसीना डायलॉग जैसे कार्यक्रम के मंच से केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर दक्षिण भारत में बनी बहुबली, RRR और KGF जैसी फ़िल्मों की गुणवत्ता की कई बार तारीफ़ करते नज़र आए.


बीते दिनों गृहमंत्री अमित शाह के उस बयान पर भी विवाद खड़ा हुआ था जिसमें हिंदी में भाषणों का आग्रह किया था. जाहिर है बीजेपी उत्तर और हिंदी भाषी राज्यों के मैदान को खाली नहीं छोड़ना चाहती. हालांकि संसद की राजभाषा समिति सिफारिशों को स्वीकार करने के बाद सरकार ने लोकसभा को यह कहा भी है कि हिंदी में भाषणों का आग्रह है मगर अनिवार्यता नहीं है. ज़ाहिर तौर पर बीजेपी की कोशिश उत्तर और दक्षिण के बीच की खाई को पाट कर एकता की बात बढ़ाने की है. वहीं उसकी कोशिश दक्षिण में सियासी विस्तार के दरवाज़े खोलने की भी है. भाषाई समीकरणों को आसान बनाने में जहां बीते दो दशकों के दौरान टैलेंट माइग्रेशन ने अहम भूमिका निभाई है. वहीं तमिलनाडु जैसे राज्य में जयललिता जैसी क़द्दावर नेता के जाने से बदले सियासी समीकरणों में भी बीजेपी अपने लिए रास्ता बनाने की कोशिश कर रही है.


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