नई दिल्ली:  बिहार के चर्चित चारा घोटाले से जुड़े 3 मामलों में रांची की विशेष अदालत लालू यादव पर कल अपना फैसला सुनाएगी. कल का दिन लालू यादव के जीवन के लिए या तो सुनहरा रास्ता दिखाएगा या उन्हें एक और दागदार इतिहास का हिस्सा बनाएगा. रांची की विशेष सीबीआई अदालत चारा घोटाले से जुड़े एक और केस में कल लालू यादव और उनके करीबी रहे जगन्नाथ मिश्र पर फैसला सुनाएगी. कल चारा घोटाले पर आएगा फैसला, 2 जी के बाद अब लालू 'जी' का क्या होगा?


23 दिसंबर के दिन लालू परिवार को क्रिसमस से पहले खुशियों की गिफ्ट मिलेगी कि घोटाले के काले बादल एक बार फिर लालू परिवार पर जमकर बरसेंगे, यह तय होना है. सियासत के सफेद चकचक कुर्ते में घोटाले का दाग लग जाने के बावजूद इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि लालू यादव ने सूबे से लेकर केंद्र तक में अपनी एक गहरी छाप छोड़ी है. ऐसे कई सियासी मास्टर स्ट्रोक मारें हैं जिन्हें इतिहास में दर्ज तवारीख की तरह याद किया जाएगा. चारा घोटाला: लालू यादव के लिए 'कयामत की रात', कल सीबीआई कोर्ट सुनाएगी फैसला


11 जून 1948 को अति साधारण परिवार में पैदा हुए लालू प्रसाद यादव का देश की राष्ट्रीय राजनीति में उभरना किसी चमत्कारी कहानी से कम नहीं है. एक ऐसा शख्स जिसका बचपन कठनाईयों में गुजरा हों, वह आगे चलकर सियासत का ऐसा शहंशाह बनकर उभरे, जिसकी चाल के सामने विरोधी नतमस्तक हो जाएं, इसे कहानी नहीं तो और क्या कहा जाए. राजनीति को बड़ी-बड़ी कोठियों के चंगुल से आजाद कराकर खेत में बैल चराने वाले किसान और समाज में हाशिए पर पड़े पिछड़े और दलितों के बीच खड़ा कर लालू यादव ने भारतीय सियासत में नया अध्याय जोड़ दिया. झोपड़पट्टी से लेकर राज्य के सीएम की कुर्सी और केंद्रीय मंत्री बनने तक का सफर तय करने वाले लालू यादव के हाजिर-जवाबी का तोड़ किसी के पास नहीं है. 


अपने अब तक के पॉलिटकल पारी में लालू यादव ने कई ऐसे सियासी मास्टर स्ट्रोक लगाए, जिसने राजनीति के विश्लेषकों को चौंका दिया. ठेठ भाषा और अपने बड़बोले अंदाज के बूते लालू यादव ने अपनी छवि एक जननेता के रूप में बनाई. संवाद स्थापित करने की कला में माहिर लालू यादव ने कभी भी अपनी भाषा शैली को लोगों से कटने नहीं दिया. अपनी हाजिर जवाबी की काबिलियत के बूते लालू यादव ने एक बार में ही विरोधी और समर्थकों तक अपना संदेश पहुंचाया. लेकिन राजनीतिक के चरम पर पहुंचने वाले बिहार के इस कद्दावर नेता के दामन पर भ्रष्टाचार का ऐसा दाग भी लगा, जिससे वो अभी तक उबर नहीं पाए हैं. राजनीति में लालू यादव ने जो कुछ भी हासिल किया, उस पर ये दाग हावी होता चला गया.


जब चर्चा लालू यादव की करेंगे तो उनके सियासी दांव का जिक्र करना लाजमी है. चलिए वक्त का पहिया पीछे करते हैं और आपको कुछ ऐसी घटनाओं को बताते हैं जिसने पूरे देश को चौंकाया.


आडवाणी की रथ यात्रा को रोक कर लालू यादव ने दिखाया अपना दम


पिछड़ों और अल्पसंख्यों के नेता की छवि वाले लालू यादव ने साल 1990 में एक ऐसा कदम उठाया जिसने उनकी शख्सियत  को एक नई पहचान दी. मालूम हो कि बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी देशभर में राम रथयात्रा की अगुवाई कर रहे थे. इसी दौरान बिहार के समस्तीपुर में अक्टूबर महीने में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. लालू यादव के इस कदम ने सियासी गलियारें में तूफान ला दिया. इस कदम के साथ ही लालू यादव ने खुद को सेक्युलर नेता के रूप में स्थापित किया.


लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी यादव को बनाया सीएम 


देश के सियासी मंच पर खुद को स्थापित कर चुके लालू यादव के जीवन में विवादों की एंट्री तब हुई जब उनपर चारा घोटाले का आरोप लगा. यह एक ऐसा दाग रहा जिसने लालू यादव की छवि को प्रभावित किया. यह घोटाला सन 1990 से लेकर सन 1997 के बीच हुआ था, तब लालू यादव बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज थे.  इस आरोप के बाद लालू यादव जनता पार्टी से अलग हो गए और साल 1997 में राष्ट्रीय जनता दल का निर्माण किया. इस केस में लालू यादव को जेल भी जाना पड़ा. लालू यादव के जेल जाने के बाद बिहार की राजनीति पर लोगों की नजरे टिक गईं. यहां एक बार फिर लालू यादव ने ऐसा फैसला लिया, जिससे सब दंग रह गए. 25 जुलाई 1997 को लालू यादव ने राज्य की कमान पत्नी राबड़ी यादव को सौंपी. राबड़ी देवी के सीएम बनने के साथ ही राज्य को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली.


बिहार में 'महागठबंधन' का निर्माण


2014 में पूरे देश में मोदी लहर बिहार अछूता नहीं रहा था. लालू यादव ने लोकसभा में चोट खाने के बाद मोदी लहर को विधानसभा में रोकने के लिए एक बार फिर सियासी मास्टर स्ट्रोक मारा. साल 2015 में बिहार की राजनीति में एक ऐसा मौका आया, जिसने राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश को हैरान कर दिया. यह घटना थी धुर विरोधी लालू यादव और जेडीयू के नीतीश कुमार का साथ में चुनाव लड़ने का फैसला करना. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव, नीतीश कुमार और कांग्रेस से मिलकर 'महागठबंधन' बनाया और चुनाव में जीत दर्ज की. इस बड़े सियासी घटनाक्रम के केंद्र में भी लालू यादव ही रहे. बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 'महागठबंधन' को 178 सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में खास बात ये रही कि मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार की पार्टी को 178 में से 71 सीटें मिलीं, जबकि सत्ता से दूर रहे लालू यादव की पार्टी आरजेडी को 80 सीटें मिली थीं. इस जीत के साथ ही नीतीश कुमार को सीएम तो बनाया गया लेकिन इसके साथ ही लालू यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव (तब के उपमुख्यमंत्री) और तेज प्रताप यादव (तब के स्वास्थ्य मंत्री) का बिहार की राजनीति में पदार्पण हुआ.


संसद से बिहार की सीएम की कुर्सी तक का सफर


छात्र जीवन में ही लालू यादव ने सियासत की हवा को पहचान लिया था. पटना यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए की पढ़ाई के दौरान ही लालू यादव कैंपस की राजनीति में अपना छाप छोड़ चुके थे. सन 1973 में छात्र संघ के अध्यक्ष बने लालू यादव कैंपस की राजनीति से कदम बाहर निकालते हुए 1974 में बिहार में जेपी आंदोलन में शामिल हुए. इसी दौरान उन्होंने जनता और उससे जुड़े मुद्दे को करीब से देखा और यह सिलसिला जारी रहा. जेपी आंदोलन की पाठशाला से निकलकर लालू यादव ने पहली बार साल 1977 में संसद में कदम रखा. बिहार के छपरा से 29 साल की उम्र में लालू यादव लोकसभा के सांसद चुने गए. राजनीति में खुद को स्थापित कर चुके लालू यादव 10 अप्रैल 1990 को सीएम की कुर्सी पर बैठे. जनता पार्टी की सरकार में सीएम बनने के बाद लालू यादव राजनीति में और ज्याद मजबूत हुए.