Reasons Why Lal Bahadur Shastri’s death was suspicious: 2 अक्टूबर, 1904, वही तारीख है जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था. लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर जाने गए जिनका बेहद साधारण लाइफस्टाइल रहा. कहा जाता है कि प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कभी उन्होंने किसी गलत कार्य से नहीं किया. वो तो ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपने वेतन में से ही गरीबों को भी एक हिस्सा दिया. वो अपने जीवन काल में बतौर प्रधानमंत्री तो चर्चा में रहे ही लेकिन उससे भी ज्यादा चर्चा में वो मृत्यु के इतने सालों बाद भी बने हुए हैं और इसकी वजह है लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थियों में हुई मौत जिसकी जांच कराने को लेकर वक्त-वक्त पर आवाज उठती रहती है.


इससे पहले कि हम लाल बहादुर शास्त्री की मौत से जुड़ी संदिग्ध परिस्थियों पर बात करें, आइए जानते हैं कि ताशकंद में उस रात आखिर हुआ क्या था.


क्या हुआ था उस रात


साल 1965 की भारत-पाक लड़ाई के बाद ताशकंद में समझौता हो रहा था. हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के बीच सात दिन तक चले लंबी-थकाऊ बैठक का सिलसिला 10 जनवरी की उस सर्द सुबह एक ऐतिहासिक मुकाम तक जा पहुंचा. भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा उस वक्त रहे सीपी श्रीवास्तव की मानें तो उस दिन लाल बहादुर शास्त्री का चेहरा दमकता हुआ नजर आ रहा था और शायद ही कोई व्यक्ति उत्साह से लबरेज उस शख्स को देखकर कह सकता था कि उन्हें पहले भी दो बार दिल का दौरा (गंभीर नहीं) आ चुका होगा.




अनुज धर की किताब ' शास्त्री के साथ क्या हुआ था'' में उस रात की घटना का जिक्र है. साथ ही ये किताब लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु को लेकर कई सवाल भी उठाती है. किताब में उस शाम का जिक्र कुछ इस तरह है...


भारत-पाकिस्तान के बीच उस दिन शाम चार बजे मीडिया की चमकधमक के बीच ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर हुए. सिर्फ पांच फीट की कद-काठी वाले विनम्र शास्त्री जी ने अपने से बिल्कुल उलट लंबे चौड़े रौबदार शख्सियत के मालिक जनरल अयुब पर एक मुस्कुराती नजर डाली. दोनों ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच एक इतिहास रच दिया गया. मशहूर ताशकंद समझौता हो चुका था.


इसके बाद रात 8 बजे रुसी प्रधानमंत्री कसीगिन द्वारा उनके सम्मान में दिए गए एक रिसेप्शन में प्रधानमंत्री ने हिस्सा लिया. उस शाम शास्त्री पहले जैसे ही ठीक लग रहे थे. वो सहज अंदाज में नजर आ रहे थे. नौ बजे के बाद शास्त्री जी, विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह और रक्षा मंत्री वाइबी चौव्हाण वहां से रवाना हो गए.''


किताब में आगे लिखा है,'' रात 11 बजे लाल बहादुर शास्त्री डाचा पहुंचे, जहां वो ठहरे थे. उनके निजी फिजिशियन डॉ आर एन चुग, उनके सुरक्षा अधिकारी आर कपूर, निजी सचिव जएन सहाय, निजी सहायक एमएम शर्मा और उनका अटेंडेंट रामनाथ भी उनके साथ डाचा में ठहरे थे. यहां पहुंचकर वो निचले तल में बने अपने सुईट में आ गए. दूसरी तरफ के बेडरूम में डॉ चुग और आर कपूर ठहरे थे. जबकि पहली मंजिल के दो कमरों में शर्मा और रामनाथ रुके थे. रामनाथ के साथ मास्को में भारत के तत्कालीन राजदूत का रसोइया मोहम्मद जान भी रुका था.




दरअसल उस रात जैसे ही लाल बहादुर शास्त्री ने अपने कपड़े बदले उनसे खाने के लिए पूछा गया. पहले उन्होंने मना किया फिर कुछ हल्का-फुल्का लाने के लिए कहा. रामनाथ उनके लिए आलू-पालक की सब्जी और एक करी ले आया. ये खाना मोहम्मद जान ने रूसी रसोइयों की मदद से पकाया था.


इसके बाद डाचा की स्टडी रूम में सहाय अगले दिन के कार्यक्रम पर बात करने के लिए लाल बहादुर शास्त्री का इतंजार कर रहे थे. प्रधानमंत्री वहां पहुंचे. सहाय को इसी बीच पीएम के निजी सचिव वीएस वेंकेटरमन का फोन आया. शास्त्री ने सहाय को पूछने के लिए कहा कि ताशकंद समझौते पर भारत में क्या प्रतिक्रिया आ रही है? वेंकेटरमन ने फोन पर बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी और एसएन द्विवेदी की आलोचनाओं को छोड़ ताशकंद ऐलान का लगभग सभी ने स्वागत किया है. इस पर शास्त्री जी ने कहा कि वो विपक्ष में हैं और सरकार के फैसलों की आलोचना करना उनका अधिकार है.


जब अपने बेड रूम में पहुंचे लाल बहादुर शास्त्री


आधी रात हो चुकी थी और शास्त्री अपने बेड रूम में पहुंचे. उन्होंने रामनाथ से इसबगोल के साथ थोड़ा दूध देने को कहा. इसके बाद उन्होंने पानी मांगा और फिर कुछ देर बाद उन्होंने रामनाथ से सुईट की बत्ती बंद कर देने को कहा.


इसी बीच सहाय, शर्मा और कपूर भी सोने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक उन्होंने आहट सुनी. खुद प्रधानमंत्री उनके दरवाजे के पास खड़े थे. उन्होंने बेहद हल्की आवाज में कहा 'डॉक्टर'. सहाय डॉ चुग को जगाने के लिए दौरे. इधर बाकी लोगों की मदद से शास्त्री जी अपने रूम में पहुंचे. इस बीच वो सांस लेने में जूझने लगे. डॉ चुग उनके पास पहुंचे. उन्होंने देखा शास्त्री जी की नब्ज बेहद कमजोर चल रही थी. शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा था. तुरंत डॉ चुग ने उनका इलाज शुरू किया लेकिन वो बेहोश हो गए. कुछ देर में उनकी नब्ज बंद हो गई और सांसे भी रुक गई.


डॉ चुग ने हर उपाय आजमाया मगर हर कोशिश बेनतीजा रही. तभी डॉ चुग बिलखते हुए बोले- ''आपने मुझे मौका नहीं दिया''. शास्त्री की मौत हो चुकी थी. अब तक रूस के डॉक्टरों की टीम भी पहुंच गई थी. अयूब खान भी दौड़े आए. शास्त्री की मौत से वो दुखी थे क्योंकि उनको लगता था कि शास्त्री ही वो आदमी हैं जिनकी मदद से भारत-पाक झगड़ा सुलझाया जा सकता है.


तत्कालीन गृह सचिव एलपी सिंह ने दी थी जानकारी


प्रोटोकॉल के मुताबिक किसी ऊंचे पद पर तैनात व्यक्ति के निधन की जानकारी गृह सचिव को ही दूसरे लोगों तक पहुंचानी होती है. तत्कालीन गृह सचिव एलपी सिंह के जिम्मे ये काम आया. उन्होंने राष्ट्रपति भवन फोन किया लेकिन देर रात होने की वजह से किसी ने फोन नहीं उठाया. इसके बाद उन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा को फोन किया और इस दुखद खबर के बारे में जानकारी दी. फिर धीरे-धीरे खबर जंगल में आग की तरफ फैल गई.


परिवार ने जता चुका है 'हत्या का शक'


लाल बहादुर शास्त्री की मौत को लेकर कई सवाल आज भी अनसुलझे हैं. उनका परिवार वक्त वक्त पर इसकी जांच की मांग करता रहा. उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने तो उनकी मौत को लेकर कई सवाल उठाए थे. 14 अक्टूबर 1970 में 'धर्मयुग' में उनका एक इंटरव्यू छपा था. जिसमें उन्होंने संदिग्ध मौत को लेकर कई दावे किए थे.


दरअसल जब लाल बहादुर शास्त्री का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो शास्त्री के नीले पड़ चुके शरीर को लेकर अफवाहें उड़ने लगीं कि जहर दिया गया है. उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इस बात पर बहुत जोर दिया. सवाल इसलिए भी उठे क्योंकि पता चला कि उस रात खाना रामनाथ ने नहीं बल्कि कौल के घर पर उनके नौकर जान मोहम्मद ने बनाया था. रूस के अफसरों ने उस पर संदेह जताया. उसे पकड़ लिया गया और उससे पूछताछ भी की गई, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.




आज भी हैं कई अनसुलझे सवाल


लाल बहादुर शास्त्री की मौत को लेकर आज भी कई सवाल अनसुलझे हैं, जैसे पहला, ताशकंद के लिए रवाना होने से पहले उनके नाम से लिखे गए कथित जाली पत्र मामले की जांच क्यों नहीं हुई. दूसरा, मोहम्मद जान की संदेहास्पद भूमिका पर बात क्यों नहीं की गई. तीसरा, उस वक्त प्रधानमंत्री के कमरे में टेलीफोन था या नहीं, इसकी जांच क्यों नहीं हुई. चौथा, लाल बहादुर शास्त्री का पार्थिव शरीर भारत लाए जाने पर उसकी स्थिति को लेकर जो भी सवाल उनके परिवार द्वारा उठाए गए उसको लेकर सही तरीके से जांच क्यों नहीं की गई. शास्त्री की बॉडी का पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ था. पर उनकी बॉडी पर कट के निशान थे. इसका कभी पता नहीं चला कि ये निशान क्यों थे.


इसके अलावा भी लाल बहादुर शास्त्री की संदेहास्पद मौत को लेकर कई सवाल जस के तस आज भी बने हुए हैं.


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