उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे एवं लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को जमानत देने के इलाहबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब सुनवाई अभी शुरू नहीं हुयी थी उस समय पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट घावों की प्रकृति जैसे “अनावश्यक” विवरण पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था.


आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ किसानों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय की विशेष पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. पीठ में प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं.


राज्य सरकार के फैसले पर भी जताई आपत्ति


पीठ ने इस तथ्य पर भी आपत्ति जतायी कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर नहीं की जबकि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दन (एसआईटी) ने यह सुझाव दिया था. पीठ ने कहा कि यह ऐसी बात नहीं है जहां आप वर्षों प्रतीक्षा करते हैं.


पीठ ने कहा, ‘‘ न्यायाधीश कैसे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आदि पर गौर कर सकते हैं? हम जमानत से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहे हैं, हम इसे लटकाना नहीं चाहते. इसके गुण-दोष आदि पर बात करना जमानत के लिए अनावश्यक है....’’


पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नहीं था गोली लगने का संकेत


पीठ ने किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण की इन दलीलों पर गौर किया कि उच्च न्यायालय ने विस्तृत आरोप पत्र पर विचार नहीं किया और उस प्राथमिकी पर भरोसा किया जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक व्यक्ति को गोली लगी. उच्च न्यायालय द्वारा पोस्टमार्टम रिपोर्ट सहित अन्य तथ्यों पर गौर करने के बाद जमानत दी गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पीड़ित को गोली लगने का संकेत नहीं था.


प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हम इस प्रकार की बकवास को स्वीकार नहीं करते. इस शब्द का उपयोग करने के लिए क्षमा करें... जमानत पर गौर करने के लिए ये बातें अप्रासंगिक थीं. देखें उसे गोली लगी थी. उसे एक कार ने टक्कर मारी... यह क्या है. पीठ ने कहा कि सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है और सबूत अब भी एकत्र किए जा रहे हैं.


दवे ने कहा कि मार्च में भी एक गवाह को धमकी दी गयी थी और प्राथमिकी के अनुसार उसे यह कहते हुए पीटा गया था कि अब बीजेपी सत्ता में है देख तेरा क्या हाल होगा. आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि मामला आरोप तय करने के लिए सूचीबद्ध है और जांच पूरी होने के बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया है.


सुनवाई में ही तय की जा सकती है अपराध की प्रकृति


सुनवाई की शुरुआत में, राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि जमानत के खिलाफ अपील दायर करने पर एसआईटी की रिपोर्ट शुक्रवार को अधिकारियों से साझा की गई थी. जेठमलानी ने कहा कि यह एक "गंभीर अपराध" है और अपराध की प्रकृति केवल सुनवाई में ही तय की जा सकती है और इसके अलावा, आरोपी के ‘भागने का जोखिम’ नहीं था और कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था.


राज्य सरकार के वकील ने कहा, "एसआईटी ने हमसे अपील करने के लिए कहा क्योंकि वह एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते है लेकिन इससे हमें प्रभावित नहीं हुए." इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत ने 16 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया था.


अदालत ने गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का दिया था निर्देश


उसने 10 मार्च को राज्य सरकार को गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश दिया था. उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 10 फरवरी को मिश्रा को मामले में जमानत दे दी थी. गौरतलब है कि किसानों का एक समूह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता केशव प्रसाद मौर्य के दौरे के खिलाफ पिछले साल तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहा था.


तभी लखीमपुर खीरी में एक एसयूवी (कार) ने चार किसानों को कथित तौर पर कुचल दिया था. इससे गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक को कथित तौर पर पीट-पीट कर मार डाला था जबकि हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई थी.


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