देश में कोरोना लॉकडाउन के चलते सभी कारोबारी और शिक्षण संस्थान पिछले कई महीने से बंद है और सीबीएसई बच्चों के लिए 12वी की परीक्षा पर 1 जून को फैसला लेने वाला है. ऐसे में भले ही शहरों और कस्बों में रहने वाले बच्चों के लिए ज्यादा परेशानी ना हो लेकिन देश के दूर दराज के इलाकों में रहने वाले बच्चे - इस सब में वंचित महसूस कर रहे हैं.


यह है लद्दाख के द्रास इलाके का शिम्शा  गांव जहां आज 21वीं सदी में जब देश डिजिटल क्रांति की बात कर रहा है. मोबाइल और इंटरनेट एक सपने जैसा है. इस गांव के बच्चे कोरोना लॉकडाउन से पहले स्कूल में जाकर शिक्षा हासिल कर रहे थे लेकिन लॉकडाउन के बाद ऑनलाइन क्लास शुरू होने के साथ ही उनकी शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई.


18 साल की फातिमा को परीक्षा में फेल होने का डर


कारण इन बच्चों के गांव में आज भी मोबाइल इंटरनेट सेवा नहीं है. इसलिए मजबूर होकर गांव के बच्चों को कई किलोमीटर पैदल चल कर गांव के बाहर एक पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है और यही पर खुले आसमान के नीचे पथरों और धूल मिटटी के बीच ऑनलाइन क्लास देनी पड़ रही है. गांव में मोबाइल टावर नहीं होने के कारण इंटरनेट नहीं आता और बिना इंटरनेट के क्लास नहीं हो पाती.


18 साल की फातिमा बानो के लिए मुसीबत दोहरी है. एक तो पढ़ाई के लिए उनको घर से बहार आना होता है तो वही दूसरी तरफ घर का काम भी होता है. इसलिए कई बार उनको घर के कामो के चलते क्लास छोड़ देनी पड़ती है जिससे शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हो रही है. फातिमा का कहना है कि अगर ऐसा हाल रहा तो उसको आशंका है कि वह परीक्षा में फेल ना हो जाए.


यह हाल केवल कारगिल और द्रास का नहीं- लेह क्षेत्र में भी हाल कुछ ठीक नहीं है. भले ही लेह टाउन और आस पास के गांव में इंटरनेट सेवाएं मजबूद होने से शिक्षा पर ज्यादा असर नहीं पड़ा लेकिन दूर पांगोंग झील के आस पास चीन से सट्टी सीमा पर बेस गांव का हाल बुरा है.


क्षेत्र के करीब 12 गांव में लोग मोबाइल सेवाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे लोग


इसी साल मार्च महीने में पांगोंग के पास बसे दो गांव मेराक और खाकटेत में मोबाइल सेवाएं पहुंचाई थी लेकिन इस के साथ-साथ पांगोंग के दुसरे किनारे पर बसे 12 गांव अभी भी मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं से वंचित हैं. इलाके के कौंसिल्लोर, कोंचक स्टैंजिन के अनुसार उनका चुनाव श्रेत्र चुशुल जैसे सम्वेदनशील इलाके में पड़ता है और अभी भी उनके क्षेत्र के करीब 12 गांव में लोग मोबाइल सेवाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. स्टैंजिन के अनुसार उनके गांव में बच्चे कोरोना महामारी में दोहरी मार झेल रहे हैं. पहले ना तो उनको ऑनलाइन शिक्षा ही मिल पा रही और ना ही वह कोरोना वैक्सीन लगा पा रहे हैं क्यूंकि दोनों ही काम के लिए मोबाइल और इंटरनेट सेवा जरूरी हैं.


ऐसा ही हाल लद्दाख क्षेत्र के दूर दराज के गांव का है जहां अभी तक मोबाइल सेवा नहीं पहुंची है. ऐसे में सरकार की तरफ से वक्सीनशन और शिक्षा के लिए इंटरनेट पर निर्भता को बढ़ावा देने और अभ 12वी कक्षा के लिए परीक्षा की घोषणा से यहां पर छात्र और अभिभावक दोनों ही परेशान है.


स्टैंजिन की मानी तो इस से शहर के रहने वाले बच्चों के मुकाबले में उनके इलाके के बच्चे आने वाले दनो में किसी भी हाल में मुकाबला नहीं कर सके हैं और नतीजा होगा कि यह इलाके और यहां के लोगों दोनों ही विकास और शिक्षा की दौड़ से बाहर हो जाएंगे.


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