लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर 10 सितंबर, 2025 से पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने भूख हड़ताल शुरू की थी. बुधवार (24 सितंबर, 2025) को छात्रों और स्थानीय लोगों ने लेह में उनकी पिछले मांगें पूरी नहीं करने के विरोध में केंद्र के खिलाफ आवाज उठाई, जिसने हिंसा का रूप ले लिया. प्रदर्शनकारियों ने भाजपा ऑफिस और CRPF की गाड़ी में आग लगा दी. 

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बता दें कि लद्दाख की सियासत में बड़ा उलटफेर साल 2024 में हुआ, जब लोकसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद हनीफा जान ने जीत हासिल कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को चौंका दिया. लद्दाख की यह एकमात्र सीट अब भाजपा के हाथ से निकल चुकी है और इससे पार्टी के स्थानीय नेतृत्व पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

साल 2024 में भाजपा ने बदला उम्मीदवार

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लद्दाख में भारतीय जनता पार्टी की कमान फुंचोक स्तान्जिन के हाथों में है, जिन्हें 2022 में भाजपा लद्दाख यूनिट का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उन्हें एक रणनीतिक चेहरा माना जा रहा था, खासकर केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख में पार्टी को मजबूत करने के लिए उनकी दावेदारी को मजबूत बताया जा रहा था.

हालांकि, पार्टी ने साल 2024 में उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया, बल्कि ताशी ग्याल्सन को टिकट दिया. जनता ने भाजपा के इस फैसले को पूरी तरह नकार दिया और निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद हनीफा जान को भारी मतों से जीत दिलाई.

कहां हैं त्सेरिंग नामग्याल?

जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल, जो 2019 में भाजपा के टिकट पर सांसद बने थे और अपने उग्र भाषणों के चलते पार्टी के 'पोस्टर बॉय' बन गए थे, इस बार पूरी तरह चुनावी परिदृश्य से बाहर रहे. भाजपा ने उन्हें साल 2024 में टिकट नहीं दिया और उनके स्थान पर नया चेहरा उतारा, जिससे भाजपा को निराशा हाथ लगी. 

इसके बाद नामग्याल ने भाजपा का दामन छोड़ दिया और कांग्रेस का हाथ थामा और कांग्रेस ने साल 2024 में उन्हें चुनाव में उम्मीदवार के रूप में उतारा, लेकिन उनका राजनीतिक कद पहले जैसा प्रभावशाली नहीं रहा और वो चुनाव में दूसरे पायदान पर रहे. हालांकि उनके समर्थकों में भाजपा से टिकट कटने को लेकर नाराजगी भी देखी गई थी.

लद्दाख में भाजपा के हार की क्या रही वजह?

भाजपा के लिए लद्दाख में साल 2024 में हार सिर्फ एक सीट गंवाने से ज्यादा था. यह संकेत था कि साल 2019 के बाद जिस तरह से लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और विशेष राज्य का दर्जा छीना गया, उससे उपजे असंतोष को पार्टी ने गंभीरता से नहीं लिया. स्थानीय नेतृत्व में बदलाव (जैसे नामग्याल की जगह स्तान्जिन) भी मतदाताओं को भरोसा नहीं जीत सका.

मोहम्मद हनीफा जान, एक समाजसेवी और पहले से ही लद्दाख की स्थानीय राजनीति में सक्रिय चेहरा रहे हैं. उन्होंने लद्दाख के मतदाताओं के दिलों को जीतते हुए भाजपा और कांग्रेस दोनों को पीछे छोड़ दिया. उनकी जीत यह संकेत देती है कि लद्दाख के लोग अब राष्ट्रीय पार्टियों से हटकर स्थानीय नेतृत्व और मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे हैं.

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