साल 2018 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. ताजा मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके समलैंगिक शादी का विरोध किया है. सरकार का ये कहना था कि समलैंगिक संबंध साफ तौर से अलग हैं, जिन्हें एक पति-पत्नी के रिश्ते की तरह नहीं माना जा सकता है. केन्द्र सरकार का ये तर्क था कि समान लिंग वाले साथी का एक साथ रहना अपराध नहीं है, लेकिन इसे पति-पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार की तरह दर्जा नहीं दिया जा सकता. 


याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिक जोड़ों के बीच रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. इस फैसले के आने तक भारतीय कानून ऐसे रिश्ते को आपराधिक कृत्य मानता था. 



2018 का फैसला क्या था


सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को लेकर साल 2018 में एक बड़ा फैसला सुनाया था. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान बेंच ने कहा था कि देश में दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नही हैं. 

नवतेज सिंह जौहर की ओर से दी गई याचिका में हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन-5 का जिक्र किया गया था जिसके मुताबिक शादी दो हिंदुओं के बीच होनी चाहिए. नवतेज सिंह जौहर ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि हिंदू मैरिज एक्ट का सेक्शन-5 होमोसेक्शुअल और हेट्रोसेक्शुअल जोड़ों के बीच भेदभाव नहीं करता है. ऐसे में समलैंगिक जोड़ों को उनके अधिकार मिलने चाहिए.




बता दें कि 'नाज फाउंडेशन' ने पहली बार धारा 377 का मुद्दा उठाया था. इस संगठन ने 2001 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के दो वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को 'गैरकानूनी' बताया था.


इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल 2016 में धारा 377 के खिलाफ नवतेज सिंह जौहर, अंजली गोपाल , सुनील मेहरा, रितू डालमिया और आयशा कपूर ने याचिका दाखिल की थी. 

कोर्ट ने 2018 में हुई सुनवाई में इस तरह के संबध को अपराध की श्रेणी से बाहर रखे रखने का फैसला सुनाया था. लेकिन शादी के लिए केंद्र सरकार से निर्देश लेने की बात कही गई थी. कानूनी रुख ये था कि शादी के लिए इसकी इजाजत नहीं दी सकती है. 


कोर्ट का कहना था कि देश में शादी को पवित्र बंधन माना गया है. ऐसे में हमारा कानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते हैं. हां वो एक साथ रह जरूर सकते हैं.


कोर्ट के इस फैसले के बाद आज कई समलैंगिक जोड़े एक साथ रह जरूर रहे हैं, लेकिन इन सभी को कुछ बुनियादी सहूलियतें भी ढंग से नहीं मिल पाती हैं.जैसे इन जोड़ों को एक साथ घर खरीदने से लेकर मेडिकल इंश्योरेंस ,या ज्वाइंट अकाउंट, वीजा के एप्लिकेशन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. 


सिर्फ साथ रहना नहीं शादी को जायज बनाना है जरूरी



सुप्रीम कोर्ट के एक वरीष्ठ वकील और कानूनी कार्यकर्ता आनंद ग्रोवर ने द हिंदू को बताया कि समलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिये जाने के बाद ये उम्मीद थी कि ऐसे जोड़ों को शादी का अधिकार भी दे दिया जाएगा. 


आनंद ग्रोवर ने ये तर्क दिया कि समलैंगिक जोड़ों को शादी के अधिकार से वंचित रखना हमारे संवैधानिक मूल्यों का अपमान है. ऐसे समुदाय के सदस्यों का अपनी मांग को लेकर कोर्ट तक जाना पूरी तरह से जायज है. 


दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता कोयल घोष कोलकाता में अपने पैतृक घर में अपनी साथी अंकना डे के साथ रहती हैं. शादी के चार साल बाद पहली बार कोयल घोष को अपनी साथी से अलग होने की चिंता सताने लगी है.


द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक कोयल घोष का कहना है कि अब मुझे ये डर सता रहा है कि सरकार के इस फैसले के बाद अगर मुझे कुछ होता है तो मेरा परिवार मेरी साथी अंकना को घर से बाहर निकाल देगा. 


ये दोनों समलैंगिक कपल चार साल पहले से एक-दूसरे के साथ रह रही हैं. कोयल ने इस बात पर ऐतराज जताया कि अंकना घर के खर्च में बराबर की जिम्मेदारी उठाती आई हैं, लेकिन घर पर उनका कानूनी रूप से अभी तक कोई हक नहीं मिल पाया है. 


इस जोड़े ने इसी सप्ताह अपनी चौथी सालगिरह मनाई थी. दोनों ही उन समलैंगिक जोड़ों में से एक हैं जिन्होंने सेम सेक्स में शादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. ये दोनों ही लड़कियां पूरी जिंदगी एक -दूसरे के साथ गुजारना चाहती हैं.


मुंबई के आईटी पेशेवर इंदर वटवार और उनके  साथी आशीष श्रीवास्तव ने कोविड-19 महामारी से ठीक पहले एक साथ एक घर खरीदा था. दोनों ने मिलकर होम लोन लेने के लिए आवेदन किया. लेकिन किसी भी तरह का प्रोविडेंट फंड, हेल्थ इंश्योरेंश इस कपल को नहीं दिया गया . इसके लिए दोनों की शादी होनी जरूरी शर्त बताई गई. 


बेंगलुरु के रहने वाले सिंधुर कश्यप अपने साथी स्पूर्ति जी के साथ रहते हैं, स्पूर्ति जी सिंधुर कश्यप से आठ साल छोटे हैं. सिंधुर कश्यप  ने द हिंदू को बताया कि चीजें तब और मुश्किल हो जाती हैं जब एक पार्टनर को फाइनेंशियली दूसरे पार्टनर पर निर्भर पड़ता है. मेरे साथ इसी तरह की दिक्कत है. 


समानाधिकार कार्यकर्ता हरीश अय्यर ने बीबीसी की एक खबर में समलैंगिक शादी को लेकर कहा, 'जिस तरह विवाह कानून में किसी तरह का बदलाव दूसरे कानूनों को प्रभावित करेगा. ठीक उसी तरह समलैंगिक जोड़ों को शादी का अधिकार नहीं मिलना इनके भी अधिकारों को  प्रभावित करता है.


 कानूनी तौर पर शादी नहीं होने की वजह से ऐसे कपल कई बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रह जाते हैं. जैसे परिवार के किसी सदस्य को किडनी देने की होती है. अगर समलैंगिक कपल में किसी को किडनी की ज़रूरत पड़ी तो दूसरा व्यक्ति सक्षम और इच्छुक होने के बाद भी किडनी नहीं दे सकता क्योंकि वो कानूनी तौर पर शादीशुदा नहीं हैं.


क्या समलैंगिक जोड़े बिना शादी के बच्चे गोद ले सकते हैं


घर, फाइनेंस के अलावा समलैंगिक जोड़ों के लिए बिना शादी के बच्चा गोद लेने, सरोगेसी,  यहां तक कि आईवीएफ भी कराना कानूनी रूप से लगभग नामुमकिन है. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो समलैंगिक विवाह या लिव-इन संबंधों में बच्चे को गोद लेने की इजाजत देता हो. 


एलजीबीटीक्यू समुदाय से ताल्लुक रखने वाला कोई भी व्यक्ति सिंगल पैरेंट के रूप में केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के मुताबिक बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन कर सकता है. ये बच्चों को गोद लेने की सबसे आसान कानूनी प्रक्रिया है. 


ऐसे में वकीलों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का ये मानना है कि अगर भारत में समलैंगिक जोड़ों को विवाह की कानूनी इजाजत मिल जाती है, तो एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों के खिलाफ भेदभाव तो खत्म होगा ही, ऐसे जोड़े मैरिड कपल के रूप में बच्चा गोद ले सकेंगे. 


द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मिस्टर शर्मा और मिस्टर भटनागर लगभग एक दशक से बच्चा गोद लेना चाहते हैं. दोनों ने बच्चा पाने के लिए सारे कानूनी तौर-तरीकों की आजमाइश भी कर ली. लेकिन उन्हें अभी तक बच्चा नहीं मिल पाया है.


दोनों को अब 18 अप्रैल का इंतजार है. जब सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच इस मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. अगर पक्ष में फैसला आता है तो भारत ताइवान के बाद एशिया का दूसरा देश होगा. जहां समलैंगिक शादियों को मान्यता दे दी जाएगी.  वर्तमान में, दुनिया में 32 देशों में समलैंगिक शादी कानूनी रूप से मान्य है. 


भारत में 3% लोग अपने आप को गे या लेस्बियन मानते हैं 


साल 2021 में LGBT+ Pride 2021 ग्लोबल सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक भारत की 3 प्रतिशत आबादी खुद को गे (पुरुष समलैंगिक) या लेस्बियन (महिला समलैंगिक) मानती है. वहीं 9 प्रतिशत आबादी अपने आप को बाय-सेक्सुअल मानती है और 2 प्रतिशत लोग खुद को असेक्सुअल समझते हैं.


इंग्लैंड के अखबार डेली मेल के एक खबर के मुताबिक पिछले कुछ सालों में इंग्लैंड में स्ट्र्रेट लोगों की संख्या में कमी आई है. यहां स्ट्रेट एडल्ट की संख्या में 1% से ज्यादा की गिरावट पाई गई.


इसी खबर के मुताबिक इंग्लैंड में अब पहले से कहीं ज्यादा लोग अपनी पहचान लेस्बियन, गे और बाईसेक्सुअल लोगों के तौर पर कर रहे हैं. यहां 16 से 24 साल के उम्र वर्ग में अब हर बारहवां व्यस्क LGB समूह का हिस्सा है. 


इन देशों में वैध हैं समलैंगिक शादियां


समलैंगिक शादी को कानूनी बनाने के लिए नीदरलैंड में साल 2000, बेल्जियम में साल 2003, कनाडा में साल 2005, स्पेन में 2005, साउथ अफ्रीका में 2006, नार्वे में 2008, स्वीडन में 2009, अर्जेंटीना में 2010, पुर्तगाल में 2010, आइसलैंड में 2010, डेनमार्क में साल 2012, उरुग्वे में साल 2013, ब्राजील में 2012, में कानून लाया गया. 


न्यूजीलैंड में साल 2013,  इंग्लैंड और वेल्स में 2013, फ्रांस में 2013, लक्जमबर्ग में 2014, स्कॉटलैंड में 2014, अमेरिका में 2015, आयरलैंड में 2015, फिनलैंड-2015, ग्रीनलैंड-2015, कोलंबिया-2016, माल्टा-2017, ऑस्ट्रेलिया-2017, जर्मनी-2017, ऑस्ट्रिया-2019 ताइवान-2019, इक्वाडोर-2019, नार्दन आयरलैंड-2019, कोस्टा रिका में साल 2020 में कानून लाया गया था.


समलैंगिक विवाह को लेकर सबसे पहला कानून नीदरलैंड ने बनाया था. इस देश में साल 2000 में सेम सेक्स मैरिज को लेकर कानून लाया गया था.