भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एन वी रमणा 26 अगस्त को रिटायर्र होंगे वाले हैं. उन्होंने आज अपने उत्तराधिकारी के रूप में अगले CJI के लिए जस्टिस उदय उमेश ललित (Justice Uday Umesh Lalit) के नाम की सिफारिश की है. अगर जस्टिस रमणा की सिफारिश मान ली जाती है तो जस्टिस उदय उमेश ललित देश के 49वें CJI बन जाएंगे.


जस्टिस यूयू ललित इस समय सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज हैं. उनका जन्म 9 नवंबर, 1957 को हुआ था. जस्टिस उदय उमेश ललित महाराष्ट्र के जाने-माने वकील रह चुके हैं. उन्होंने जून 1983 में वकालत की शुरुआत की थी. उन्होंने दिसंबर 1985 तक बंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की और एक साल बाद यानी 1986 में दिल्ली पहुंच गए और राजधानी में वकालत शुरू की. वह पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ भी काम कर चुके हैं. 


जस्टिस ललित अप्रैल, 2004 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने. इसके बाद वह कई पदों पर रहे. 13 अगस्त 2014 को उन्हें सबसे सुप्रीम कोर्ट के जज के पद पर नियुक्त किया गया. 


3 तलाक की व्यवस्था रद्द की


सुप्रीम कोर्ट में अपने अब तक के कार्यकाल में जस्टिस ललित कई बड़े फैसलों के हिस्सा रहे हैं. 22 अगस्त 2017 को तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ 3 तलाक बोलने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार देने वाली 5 जजों की बेंच के वह सदस्य थे. इस मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ लिखे साझा फैसले में उन्होंने कहा था कि इस्लाम में भी एक साथ 3 तलाक को गलत माना गया है. पुरुषों को हासिल एक साथ 3 तलाक बोलने का हक महिलाओं को गैर बराबरी की स्थिति में लाता है. ये महिलाओं के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.


राजद्रोह कानून पर नोटिस जारी किया


30 अप्रैल 2021 को जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A की वैधता पर केंद्र को नोटिस जारी किया. इस मामले में कोर्ट ने मणिपुर के पत्रकार किशोरचन्द्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ला की याचिका सुनने पर सहमति दी.


विजय माल्या को दी सज़ा


हाल ही में जस्टिस ललित ने अवमानना के मामले भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को 4 महीने की सज़ा दी। कोर्ट ने माल्या पर 2 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया यह भी कहा कि जुर्माना न चुकाने पर 2 महीने की अतिरिक्त जेल काटनी होगी.


पॉक्सो एक्ट पर अहम फैसला


बच्चों को यौन शोषण से बचाने पर भी जस्टिस ललित ने अहम आदेश दिया। उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने माना कि सेक्सुअल मंशा से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श पॉक्सो एक्ट का मामला है। यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है.


आम्रपाली के फ्लैट खरीदारों को राहत


जस्टिस ललित उस बेंच में भी रहे जिसने 2019 में आम्रपाली के करीब 42,000 फ्लैट खरीदारों को बड़ी राहत दी थी. तब कोर्ट ने आदेश दिया था कि आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट को अब नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन यानी NBCC पूरा करेगा. कोर्ट ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले आम्रपाली ग्रुप की सभी बिल्डिंग कंपनियों का RERA रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया. साथ ही, निवेशकों के पैसे के गबन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का भी आदेश दिया.


SC/ST एक्ट पर फैसला


अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी न करने का आदेश भी जस्टिस ललित की सदस्यता वाली बेंच ने दिया था. कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज करने का भी आदेश दिया था. हालांकि, बाद में केंद्र सरकार ने कानून में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को दोबारा बहाल कर दिया था.


अयोध्या केस से खुद को किया था अलग


10 जनवरी 2019 को जस्टिस यु यु ललित ने खुद को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की बेंच से खुद को अलग किया था. उन्होंने इस बात को आधार बनाया था कि करीब 2 दशक पहले वह अयोध्या विवाद से जुड़े एक आपराधिक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए वकील के रूप में पेश हो चुके हैं.


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