मुंबई: सभी सियासी समीकरणों को ध्वस्त करते हुए शनिवार की सुबह जैसे ही देवेंद्र फडणवीस के साथ बतौर डिप्टी सीएम अजित पवार ने शपथ ली तो कयास यही लगाए गए कि एनसीपी ने अचानक अपना फैसला बदल लिया है और बीजेपी सत्ता की इस लड़ाई में बाजी मार चुकी है. लेकिन शरद पवार की गैर मौजूदगी को ये कहकर दरकिनार किया गया कि शायद ये उनकी सियासी चाल है. इस दौरान घटनाक्रम इस तेजी से बदल रहे थे कि चंद मिनट में पता चल गया कि सियासत का जो भी खेल हुआ, इसमें शरद पवार की मर्जी शामिल नहीं है.

शपथग्रहण के चंद घंटे के बाद शरद पवार मीडिया के सामने आए. उन्होंने साफ किया कि अजित पवार को एनसीपी का समर्थन नहीं है और बीजेपी की गठबंधन सरकार विधानसभा में बहुमत नहीं साबित कर पाएगी. शरद पवार के साथ वो विधायक भी देखे गए जो शपथग्रहण के दौरान अजित पवार के साथ थे.

शरद पवार के इस दावे से साफ है कि अगर अजित पवार अड़े रहे तो पार्टी में टूट तय है. अब सवाल उठता है कि अगर पार्टी टूटती है तो कितने विधायक अपना पाला बदलते हैं. ऐसे में सवाल ये भी होगा कि फडणवीस सरकार कैसे बचेगी.

समीकरण समझिए

इस बार विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. 288 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी जबकि शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली. अन्य के खाते में 73 सीटें गईं.

बहुमत के लिए 145 सीटों की दरकार है और बीजेपी के पास 105 सीटें हैं यानी सरकार बनाने के लिए उसे 40 सीटों की जरूरत है. बीजेपी का दावा है कि उनके साथ अनेक छोटे दल और निर्दलीय विधायक हैं और पार्टी के पास फिलहाल 120 विधायकों का समर्थन है. इस हिसाब से बीजेपी को 25 और सीटें मिल जाए तो उनकी सरकार बच जाएगी.

एनसीपी के पास 54 सीटें. अगर पार्टी में टूट होती है और अगर अजित पवार 36 विधायकों का समर्थन लेने में कामयाब हो जाते हैं तो फिर बीजेपी की सरकार बच जाएगी. क्योंकि दलबदल कानून के तहत दो तिहाई विधायकों का एक साथ आना जरूरी है और एनसीपी विधायकों की कुल संख्या का दो तिहाई 36 है. लेकिन अगर अजित पवार को 36 से कम विधायकों का समर्थन मिलता है तो बीजेपी की सरकार मुश्किल में फंस जाएगी.

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