नई दिल्ली: जिस का नाम कहीं चर्चा में नहीं था वही शख्स अब देश का अगला राष्ट्रपति होने जा रहा है. पीएम मोदी की चौंकाने वाली राजनीति जारी है. सवाल उठता है कि आखिर बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद में मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने क्या देखा कि उन्हें एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया.


विपक्ष के कुछ दल यही कहते रहे हैं कि बीजेपी को ऐसे शख्स का नाम प्रस्तावित करना चाहिए जो राजनीतिक व्यक्ति हो. इस हिसाब से कोविंद सटीक बैठते हैं. विपक्ष को आशंका थी कि बीजेपी संग के दबाव में संघ से गहराई से जुड़े किसी आदमी को आगे बढ़ा सकती है. हालांकि कोविंद के बिहार का राज्यपाल चुने जाने पर आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने उन्हें संघ का बताकर आलोचना की थी लेकिन कोरी-कोली समाज की सेवा कर चुके कोविंद की घेरेबंदी करने में लालू सफल नहीं हो सके थे.

खैर, कोविंद राजनीतक व्यक्ति है. वह दो बार राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं. वह मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में उनके निजी सचिव भी रह चुके हैं. राज्यसभा में रहते हुए जाहिर है कि वह बहुत सी समितियों कमेटियों की अध्यक्षता भी कर चुके होंगे. अब उनके राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनने से कुछ विपक्षी दलों की मांग पूरी हो जाती है.

दो, कोविंद अनुसूचित जाति से आते हैं. कोरी कोली समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. पिछले कुछ समय से बीजेपी दलित समाज में सेंध लगाने की कोशिश कर चुकी है. यूपी में संघ भी ऐसे ही प्रयास करता रहा है. वह यूपी के कानपुर से है और बिहार के राज्यपाल है. जाहिर है कि उनके नाम को आगे कर के मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए यूपी और बिहार दोनों को ही साधने की कोशिश की है. इसके साथ ही देश भर के दलित समाज को भी संदेश दिया है.

तीन , पिछले लोक सभा चुनावों में यूपी और बिहार की कुल 120 सीटों में से बीजेपी और उनके साथियों ने 104 सीटें जीती थी. मोदी और अमित शाह अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर उन्हें 2019 में फिर से सत्ता में आना है तो उसे यूपी बिहार के प्रदर्शन को दोहराना होगा. ऐसे में कोविंद का राष्ट्रपति बनना एक बड़ा कारक साबित हो सकता है.

चार , बीजेपी अपने उम्मीदवार को भारी मतों से जिताना चाहती है. वैसे तो राष्ट्रपति बनने के लिए करीब साढ़े पांच लाख वोटों की जरुरत होती है और पिछले चुनावों में प्रणव मुखर्जी को साढे सात लाख वोट मिले थे. इस बार बीजेपी अपने उम्मीदवार को आठ लाख के आसपास वोट दिलाना चाहती है. उसे लगता है कोविंद के दलित होने के कारण उनका विरोध करना कुछ विपक्षी दलों के लिए मुमकिम नहीं हो सकेगा.

पांच , दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश में कोविंद का नाम न सिर्फ बीजेपी को वोट दिला सकता है बल्कि उसकी छवि को भी चमका सकता है. सियासी कमजोरी के दौर से गुजर रही मायावती को और ज्यादा कमजोर कर सकता है. इसमें भी बीजेपी की ही सियासी सेहत और ज्यादा सुधरती है.

छह , कोविंद यूपी से हैं तो क्या मुलायम और मायावती उनका विरोध कर पाएंगे. कोविंद बिहार के राज्यपाल हैं और कोरी कोली समाज के हैं तो क्या नीतीश कुमार उनका विरोध कर पाएंगे....क्या बीजेडी को इस नाम पर एतराज होगा....शायद नहीं.