8 Years Of Modi Government: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Modi Government) को आज आठ साल पूरे हो गए हैं. बीते आठ सालों में देश की राजनीति में काफी बदलाव देखने को मिले. इन आठ सालों में देश की जिन दो प्रमुख पार्टियों में सबसे अधिक बदलाव हुआ उनमें बीजेपी और कांग्रेस (Congress) का नाम शामिल है. जहां एक तरफ 2014 के बाद से बीजेपी केंद्र समेत राज्यों में सबसे मजबूत दल बनकर उभरी, वहीं कांग्रेस के लिए ये आठ साल उसके संघर्षपूर्ण रहे.


कांग्रेस मौजूदा समय में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इन बीते आठ सालों में बीजेपी ने ना केवल अपने वोट बैंक को मजबूत किया है, बल्कि कांग्रेस समेत कई क्षेत्रिय दलों के नेताओं को भी अपने दल में शामिल किया है. आइए आपको बताते हैं कि इन आठ सालों में बीजेपी ने किन वंशवादी नेताओं को अपनी तरफ खींचने में सफलता हासिल की है. 


1. सिंधिया वंश


कभी कांग्रेस और राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया 2020 में पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए. ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया के पुत्र हैं जो कांग्रेस में रहे. लेकिन ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से अपना नाता तोड़  बीजेपी का दामन थाम लिया. बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गई थी. विजयाराजे सिंधिया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत कांग्रेस से ही की थी. उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर 1957 में गुना से चुनाव भी लड़ा था. लेकिन बाद में वह कांग्रेस से अलग होकर जनसंघ में शामिल हो गई.


2. जाखड़ वंश


पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी से नाराजगी के बाद इस्तीफा दे दिया. जाखड़ बीजेपी में शामिल हो गए. बता दें कि सुनील जाखड़ के पिता चौधरी बलराम जाखड़ कांग्रेस के बड़े नेता थे. उन्होंने केंद्र सरकार में की बड़े मंत्रालयों का नेतृत्व भी किया. जाखड़ परिवार को पंजाब में कांग्रेस के हिंदू वोट बैंक का सबसे बड़ा आधार माना जाता था. 


3. बीरेंद्र सिंह परिवार


चार दशक से अधिक समय तक कांग्रेस में रहने के बाद बीरेंद्र सिंह 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए. बीरेंद्र सिंह हरियाणा के बड़े किसान नेता सर छोटू राम के पोते हैं. बीरेंद्र सिंह के पिता नेकी राम भी हरियाणा की राजनीति में काफी समय तक सक्रिय रहे. वह कांग्रेस की टिकट पर दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे. लेकिन 2014 में बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. यही नहीं कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने अपने बेटे की भी बीजेपी में एंट्री करा दी. बतादें की बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता उचाना से बीजेपी की विधायक हैं.


4. अधिकारी परिवार


पश्चिम बंगाल में राजनीति की धुरी समझे जाने वाले सुवेंदु अधिकार कभी तृणमूल कांग्रेस छोड़ देंगे इस बात की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी. लेकिन 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले सुवेंदु अधिकारी टीएमसी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. इससे पहले सुवेंदु और उनके पिता शिशिर अधिकारी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी. सुवेंदु के पिता शिशिर अधिकारी तत्कालीन यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन सुवेंदु कांग्रेस से मोह भंग होने के बाद सुवेंदु टीएमसी में शामिल हो गए. धीरे-धीरे वह ममता सरकार में नंबर दो की हैस्यित तक पहुंच गए. उन्हें बंगाल की राजनीती में किंग-मेकर के रूप में देखा जाने लगा. वह ममता सरकार में परिवहन मंत्री रहे थे. लेकिन 2021 में उन्होंने टीएमसी छोड़ बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया. वहीं सुवेंदु के छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी तीन बार विधायक चुने गए. बाद में सुवेंदु की खाली पड़ी सीट पर उपचुनाव जीत कर वो संसद पहुंच गए. दिव्येंदु अभी भी टीएमसी का हिस्सा हैं. 


5. बहुगुणा परिवार


बुहुगुणा परिवार का कांग्रेस से बहुत पुराना रिश्ता था. हेमवती नंदन बुहुगुणा को इंदिरा गांधी का बेहद करीबा माना जाता था. वहीं उनके बेटे विजय बहुगुणा और रीता बहुगुणा काफी सालों तक कांग्रेस में रहे. लेकिन अब ये दोनों ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा भी उत्तराखंड से भाजपा के विधायक हैं. लेकिन रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया है. मयंक यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो गए थे.   


6. यादव परिवार


उत्तर प्रदेश की राजनीति में यादव परिवार की धमक से हर कोई वाकिफ है. मुलायम सिंह के नेतृत्व में पूरा यादव परिवार एकजुट होकर पार्टी को मजबूत करता रहा. लेकिन जैसे ही सपा की कमान अखिलेश के हाथों में गई. यादव परिवार में बिखराव होने लगा. चाचा शिवपाल यादव ने सपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली. वहीं यूपी चुनाव से पहले यादव परिवार की बहू अपर्णा यादव ने समाजवादी पार्टी से अपना दामन छुड़ाकर बीजेपी को अपना लिया. हांलाकि, बीजेपी ने चुनाव में अपर्णा को टिकट नहीं दिया. लेकिन बावजूद इसके उन्होंने बीजेपी के झंडे तले ही अपना राजनीतिक करियर आगे बढ़ाने का फैसला किया. 


7. प्रसाद परिवार


दो दशक तक कांग्रेस में रहने के बाद जितिन प्रसाद ने साल 2021 में बीजेपी का दामन थाम लिया. बता दें कि प्रसाद परिवार की तीन पीढ़िया कांग्रेस में रही हैं, लेकिन अब जितिन बीजेपी का हिस्सा है. प्रसाद परिवार में सबसे पहले जितिन के दादा ज्योति प्रसाद कांग्रेस में शामिल हुए, वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे. वहीं जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी बने. इसके अलावा वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार भी रहे. 


8. सिंह वंश


कभी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की टीम का एक अहम हिस्सा रहे आरपीएन सिंह (RPN Singh) जनवरी 2022 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. बता दें की आरपीएन सिंह के पिता सीपीएन सिंह कांग्रेस के एक बड़े नेता थे. जिन्हें इंदिरा गांधी राजनीति में लेकर आई थी. सीपीएन सिंह 1980 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार (Indira Gandhi Government) में रक्षा राज्यमंत्री भी रहे थे. 


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