नई दिल्ली: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के पद की शपथ ले चुके हैं. उनकी पार्टी शिव सेना श्रीमंत छत्रपति शिवाजी के आर्दशों पर चलनी वाली पार्टी मानी जाती है. भारतीय इतिहास में छत्रपति शिवाजी को एक महान यौद्धा के तौर पर देखा जाता है लेकिन महान योद्धा के साथ साथ वे एक कुशल रणनीतिकार भी थे, जिन्होंने युद्ध की एक खास कला गोरिल्ला युद्ध को इजाद किया जिसे वियतनाम जैसे बेहद छोटे से देश ने अपनाकर दुनिया के शक्तिशाली देश अमेरिका को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. वे जबरन धर्मांतरण के खिलाफ थे. महाराष्ट्र की पल पल बदलती सियासत में जिस तरह से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जिस गंभीरता और धैर्य का परिचय दिया है उसी का परिणाम है मुख्यमंत्री बनना. इस पूरे परिदृश्य में जिस तरह से उद्धव ठाकरे ने गंभीरता और धैर्य का परिचय दिया है उससे कहा जा सकता है कि उद्धव ठाकरे ने छत्रपति शिवाजी की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए लक्ष्य की प्राप्ति की है. आईए जानते हैं छत्रपति शिवाजी से जुड़ी कुछ खास बातें--


मराठी परिवार में जन्मे
19 फरवरी 1630 में छत्रपति शिवाजी का जन्म पुणे के पास स्थित शिवनेरी दुर्ग में एक मराठा परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम छत्रपति शिवाजी भोंसले था. छत्रपति शिवाजी की तरह उनकी माता जीजाबाई भी एक निडर महिला थीं. मां की शिक्षाओं का छत्रपति शिवाजी पर गहरा प्रभाव पड़ा और बचपन से ही युद्ध कलाओं में पारंगत हो गए. छत्रपति शिवाजी का एक ही सपना था भारत को विदेशी और आततायी राज्य सत्ता से मुक्त करा कर पूरे भारतवर्ष में एक सार्वभौम स्वतंत्र शासन व्यवस्था को स्थापित करना. छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीयता के प्रतीक माने जाते हैं.


बचपन से ही होशियार थे
छत्रपति शिवाजी बचपन से होशियार थे. वे हर चीज को बहुत जल्दी समझ लेते थे. युद्ध कौशल से जुड़े खेल वे बचपन से खेला करते थे. किसी किले को कैसे भेदा जाता है उसमें छत्रपति शिवाजी को महाराज हासिल थी. इस विद्या में वे इतने पारंगत हो गए थे कि उन्होंने अपने जीवन में कई किले जीते.



कुशल शासक और प्रशासक थे
छत्रपति शिवाजी एक कुशल राजा, प्रशासक और राजनीतिज्ञ थे. वे दूरदर्शी थे. आने वाले समय को पहले ही भांप लेते थे और अपनी रणनीति को बदल देते थे. उनकी इस विलक्षण प्रतिभा से कई विदेशी शासक घबराते थे. मुगल शासक औंरगजेब भी उनके नाम से खौफ खाता था.


धर्मनिरपेक्ष राजा थे
छत्रपति शिवाजी धर्मनिरपेक्ष राजा थे,उनके दरबार और सेना में हर जाति और धर्म के लोगों को उनकी काबलियत के हिसाब से पद और सम्मान प्राप्त था. सेना और प्रशासनिक सेवा में उन्होंने कई मुसलमानों को अहम जिम्मेदारी दे रखी थी. इब्राहिम खान और दौलत खान उनकी नौसेना में अहम पदों पर थे वहीं सिद्दी इब्राहिम को उन्होने तोपखाना का मुखिया नियुक्त किया था.


औरंगजेब से नहीं मानी हार
औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी के लिए कई साजिशें रचीं लेकिन छत्रपति शिवाजी ने हर साजिश को नाकाम कर दिया. छत्रपति शिवाजी का जिनसे संघर्ष था उन्हें औरंगजेब ने पनाह दी, लेकिन छत्रपति शिवाजी की बहादुरी और सैन्य कौशल के आगे वे कामयाब नहीं हो सके.


गरीब और कमजोरों के बने सहारा
छत्रपति शिवाजी ने हमेशा मजबूर और मजलूम लोगों की मदद की, हिंदू धर्म जब खतरे में आ गया तो वे पहले ऐसे राजा थे जिन्होंने लोगों को भयमुक्त किया, उनके सम्मान को बचाने का काम किया और शोषण करने वालों पर कार्रवाई की.


मंत्रीपरिषद में थे सिर्फ 8 मंत्री
बता दें कि छत्रपति शिवाजी के मंत्रीपरिषद में सिर्फ आठ ही मंत्री थे जो पूरी शासन व्यवस्था को देखा करते थे.


योग्य शिष्य थे छत्रपति शिवाजी
छत्रपति शिवाजी योग्य शिष्य भी थे. धर्म की शिक्षा लेने के दौरान उनकी मुलाकात उस समय के परम संत रामदेवी से हुई. उनके मार्गदर्शन से छत्रपति शिवाजी ने जीवन में कई सफलताएं प्राप्त की. शिवाजी इनकी प्रेरणा से ही राष्ट्रप्रेमी और एक सफल योद्धा बने.


पुत्र संभाजी थे पहले बालसाहित्यकार
छत्रपति शिवाजी का विवाह सन 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ हुआ था. उनके पुत्र का नाम सम्भाजी था जिन्हें विश्व का प्रथम बाल साहित्यकार माना जाता है.


तानाजी पर करते थे अटूट विश्वास
छत्रपति शिवाजी की सेना में तानाजी को महत्वपूर्ण पद प्राप्त था. सिंहगढ़ का दुर्ग जीतने के लिए छत्रपति शिवाजी ने तानाजी को भेजा था. इस दुर्ग को जीतने के दौरान ही तानाजी शहीद हो गए. इनके बारे में कहा कि गढ़ आला पण सिंह गेला,यानि गढ़ तो जीत लिया लेकिन शेर हमे छोड़कर चला गया.