मध्य प्रदेश के खरगोन में 10 अप्रैल को सुलगी हिंसा की आग के निशान लोगों को अभी भी डरा रहे हैं. एबीपी न्यूज की टीम खरगोन में हिंसा पीड़ितों के बीच पहुंची. जहां पीड़ितों ने आपबीती सुनाई. खरगोन के काजीपुरा में पैंसठ साल की बुजुर्ग कांता का मकान इस हिंसा में बर्बाद हो गया. पूरी उम्र इस दो कमरे के मकान में रहते गुजर गई मगर ये नहीं सोचा था कि इस घर से कभी उनको जान बचाकर भागना पडेगा. पूरा घर अंदर बाहर जला हुआ है. दरवाजे खिड़कियों की चौखटें कोयला बन गयीं है. कांता अम्मा के पास शरीर के कपड़ों के अलावा कुछ नहीं बचा. वो भतीजी के घर पांच दिनों से रह रही हैं. 




उधर, खरगोन के संजय नगर में कुछ मकान एक लाइन से जले हैं. ऐसे ही एक मकान के सामने अपने जली हुई ऑटो के सामने खडे मिले अमित बंडोले. उनका आशियाना और आबोदाना दोनों जल गये. लोन लेकर ऑटो चलाते थे जिससे घर चलता था मगर अब जला घर और ऑटो देखकर रोते हैं. अंदर उनकी मां कांता बाई हैं जो आंखों में आंसू भरकर सफेद दीवारों पर जलने से लगी कालिख को मिटाने की असफल कोशिश में जुटी हैं.




कई बस्तियों में बिखरे पड़े हैं हिंसा के निशान


संजय नगर के कुछ दीवारों पर ये मकान बेचना है कि इबारत कोयले से लिखी है. दरवाजे पर आंखों में आंसू भरकर खडी हैं संतोषी चौहान. थोडी देर पहले ही कलेक्टर अनुग्रहा पी घर आकर कंधे पर हाथ रखकर भरोसा दिलाकर गयीं हैं. मगर घबराहट और बैचेनी कम नहीं हो रही. घर के पीछे की दीवार तोड़कर उपद्रवी सब कुछ ले गये. बस रह गया है तो गहरा दुख दर्द. खरगोन के जिला अस्पताल के टामा वार्ड के बेड नंबर दस पर महरू बी लेटी हैं जिनके चेहरे पर उपद्रवियों ने तलवार से मारकर घाव किया है गाल से लेकर जबडा तक कट गया है. बोलना मुश्किल हो रहा है. डॉक्टर कहते हैं इंदौर जाओ इलाज कराने मगर पैसा नहीं है तो उनके बाजू वाले बेड नंबर ग्यारह पर गौशाला के सुरेंद्र ठाकुर जिनके सर पर चार टांके लगे हैं. गर्दन पर पत्थरों के घाव हैं. चार दिन बाद घर से निकल कर अस्पताल आये हैं. दोनों कहते हैं जाने कौन लोग हमला करने आए थे. 




पथराव और आगजनी से कई घर बर्बाद


निमाड के सबसे संपन्न इलाके खरगोन में रामनवमी की शाम जो उपद्रव पथराव और आगजनी हुई उसके निशान शहर की छह से आठ बस्तियों में बिखरे पडे हैं. ये बस्तियां वहीं हैं जहां पर हिन्दू मुस्लिम आबादी मिल जुलकर सालों से रह रहीं थीं. मगर न जाने क्यों और कब से ऐसी नफरत पल रही थी जो इस तरह सामने आई कि एक दूसरे की आबादी से घिरे लोग और कही बसने की सोचने लगे हैं. ये तात्कालिक दौर भी हो सकता है. बाद में लोग वहीं भले रह जाये, मगर ऐसा हुआ क्यों. क्यों प्रशासन ये नहीं समझ पाया कि खरगोन बारूद के ढेर पर बैठा है.


घटना की शुरुआत तालाब चौक से होती है जहां पर मस्जिद के सामने के मैदान पर कई डीजे इकट्ठे होकर रामनवमी के जुलूस का माहौल बनाते है. तीन बजे निकलने वाला जुलूस दो तीन घंटे देरी से शुरू होता है. और कुछ दूर जाने के बाद ही पथराव के बाद तो शहर की कई गलियों में पथराव और आगजनी शुरू हो जाती हैं. उपद्रवियों को काबू करने की कोशिश में एसपी और थानेदार घायल होते हैं और इसके बाद शहर की संवेदनशील गलियां दो से तीन घंटे तक पत्थरबाजों ओर उपद्रवियों के कब्जे में आ जाती है. 




प्रशासन से हुई बड़ी चूक


खरगोन के किसी भी मोहल्ले में निकलने पर पता चलता है कि लोगों के मोबाइल उस दिन की हिंसा के वीडियो से भरे पडे हैं और उन वीडियो पर उनकी अपनी कहानी. कोई कहता है पडोसी थे तो कोई बताता है बाहर से लोग शहर में बवाल करने आए थे. मगर किसी बड़े जिले के मुख्यालय में ही इतना बड़ा बवाल बताता है कि प्रशासन से बड़ी चूक हुई. सांप्रदायिक हिंसा में शहर के जलने के बाद अतिक्रमण के नाम पर आप चाहे पत्थरबाजों के मकान गिरा लो या दुकान मगर विश्वास भरोसे की वो दीवार तो गिर ही गयी जो सालों में दो संप्रदाय के लोगों के बीच बन पायी थी. जिला प्रशासन की गंभीर चूक को भोपाल में बैठे नेता और मंत्री अब कितनी भी ताल ठोंक कर बताये कि हम पत्थरबाजों को मिटा देंगे, नेस्तनाबूद कर देंगे, तबाह कर देंगे मगर इन फिल्मी डॉयलाग से बहुत कुछ हासिल नहीं होगा. 




खरगोन हिंसा को लेकर बड़े पैमाने पर की गई गिरफ्तारियों में भी पुलिस प्रशासन की ज्यादतियों की कहानियां सुनने को मिल रहीं है. जो पहले से जेल में बंद हैं उनको भी आरोपी बनाया जा रहा है तो चार मकानों के बीच का मकान अतिक्रमण के नाम पर ढहाया जा रहा है. ये सब प्रशासन की जल्दबाजी बता रहा है. 
सरकार के सामने उपद्रवियों पर सख्ती से ज्यादा खतरनाक चुनौती मोबाइल के सहारे सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा जहर है. इससे वक्त रहते नहीं निपटा गया तो हर शहर में भारत पाकिस्तान बनाने की तैयारी दोनों तरफ से हो रही है. ये खरगोन की गलियों में घूमने से समझ में आ गया है.