नई दिल्लीः नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने ऐसी ऐतिहासिक जीत हासिल की है कि हर कोई पूछ रहा है कि हुआ कैसे. उत्तर प्रदेश के चुनाव में विजय के कीर्तिमान का जो गुलाल अबीर बीजेपी के लिए राम लहर में नहीं उड़ पाया तो वो मोदी के काम और नाम पर जनता ने उड़वा दिया.


यूपी चुनाव में पीएम मोदी के करिश्मे की बात की जाए तो 14 साल बाद बीजेपी उत्तर प्रदेश की सत्ता मिल गई है. राम लहर में जो बीजेपी 1991 में 221 सीट जीत पाई थी. उस बीजेपी ने मोदी लहर में यूपी में 300 से ज्यादा सीटें जीत इतिहास रच दिया. इसीलिए पूरी पार्टी नरेंद्र भाई और अमित शाह के नाम जीत का सेहरा बांधने में जुट गई. विरोधियों के सारे समीकरणों-चक्रव्यूहों को अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश में तोड़ पाई तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति है.

पीएम मोदी ने गरीबों को नोटबंदी से जोड़ा

माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के बहाने गरीबों से कनेक्शन जोड़ा जबकि अखिलेश-राहुल-मायावती नोटबंदी पर मोदी को जितना घेर रहे थे, मोदी उतना ही डटकर जवाब दे रहे थे. मोदी जनता को ये बताने में कामयाब रहे कि नोटबंदी से गरीबों का ही फायदा है. हर दौर में मोदी ने अपनी रणनीति बदली. जैसे बिजली का मुद्दा यूपी में उठाया तो नए अंदाज में. जिसका फल ऐतिहासिक चुनाव परिणाम में मिला.

यूपी में बीजेपी का चेहरा मोदी थे. चाल अमित शाह चल रहे थे और चरित्र केंद्र सरकार की विकास योजनाओं का दिखाया गया. मोदी ने ऐसी ताबड़तोड़ रैलियां और आखिर में रोड शो किया कि विरोधी हांफने लग गए. यूपी में मोदी ने 22 रैलियां की जिनमें उत्तर प्रदेश की 132 सीटें कवर की गई थीं. इनमें से 113 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की. अमित शाह की परिवर्तन रैली सभी 403 सीटों पर हुई. अमित शाह ने 8 हजार किलोमीटर की यात्रा यूपी में की और 50 लाख लोगों से बात की. किसानों के लिए अलाव सभा की. माटी तिलक प्रतिज्ञा रैलियां कीं.

बीजेपी कार्यकर्ताओं की फौज बनी चुनावी रणनीति के लिए सहारा

यूपी के मोदीमय होने की अगली वजह है मोदी के नाम पर अमित शाह का कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करना. कैसे ये देखिए. उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने एक करोड़ 80 लाख कार्यकर्ता बनाए जिनमें 67 हजार बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे. 90 हजार कार्यकर्ताओं को बीजेपी ने ट्रेनिंग दी. एक लाख 47 हजार बूथों के लिए 13 लाख 50 हजार कार्यकर्ता तैनात किए. चुनाव के दौरान बीजेपी उत्तर प्रदेश में 328 सीटों पर आगे थी. उसी के बाद से अमित शाह ने उन 60 सीटों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जहां बीजेपी कमजोर थी. इन सीटों के लिए खास रणनीति बनाकर पार्टी उतरी.

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी विश्वनाथ का दर्शन करने पहुंचे तो उन्होंनें नाराज चल रहे पुराने नेता श्यामदेव नारायण का खुद हाथ पकड़कर आगे बढ़ाया. बताते हैं कि टिकट बंटवारे के बाद से ही पार्टी में इस बात ध्यान रखा जा रहा था कि जो नाराज हैं, उन्हें कैसे मनाना है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी कुर्मी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखने वाली अपना दल और पिछड़ों में पैठ बना रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया.

सहयोगी पार्टियों को बीजेपी ने 19 सीट दी थी. जिनमें 70 फीसदी सीटों पर सहयोगियों ने भी जीत दिला दी. केशव प्रसाद मौर्य को पहले ही यूपी में अध्यक्ष बनाकर ओबीसी वोट पर नजर गड़ाई. स्वामी प्रसाद मौर्य से पिछड़े वर्ग के नेताओं को पार्टी में लाकर जाति समीकरण दुरुस्त किया. उत्तर प्रदेश के नतीजों ने तय कर दिया है कि ये दौर मोदी-शाह का है. और इतिहास में अब जब इसे याद किया जाएगा तो मोदी-शाह युग के तौर पर याद करेंगे.

क्या हैं बीजेपी की इस एतिहासिक जीत के मायने?
पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने देश की राजनीति का भविष्य बदल दिया है और आने वाले समय की राजनीति ने सबके लिए नए रास्ते तय कर दिए हैं. अब से आगे क्या होगा. जीत से पहले बीजेपी नेता पीयूष गोयल के घर में लगा एक पोस्टर बीजेपी की चुनावी तैयारियों के बारे में सबकुछ कहता है. नतीजों से आने वाले कल की राजनीति बदल जाएगी. संसद से सड़क तक इस जीत के मतलब कुछ इस तरह समझे जा सकते हैं.

  • देश में 2014 लोकसभा चुनाव वाली मोदी लहर अब भी बरकरार है

  • नोटबंदी से नाराजगी की बात जड़ से खत्म हो गयी है

  • बीजेपी ने अपने परंपरागत वोट बैंक में दलित-पिछड़ों के बड़े हिस्से को मजबूती से जोड़ लिया है

  • इस जीत के बाद बीजेपी राज्यसभा में मजबूत हो जाएगी

  • राष्ट्रपति चुनाव में भी मोदी की ताकत बढ़ जाएगी

  • और सबसे बड़ी बात ये कि 2019 के लिए मोदी मजबूत होकर उभरे हैं

  • मोदी सरकार के कामकाज के खिलाफ अबतक कोई नाराजगी नहीं दिख रही है

  • समाजवादी पार्टी और बीएसपी को ये जीत बहुत ज्यादा कमजोर कर देगी इतना की 2019 में भी उन्हें 2014 का डर सताता रहेगा

  • कांग्रेसमुक्त भारत के अपने एजेंडे में मोदी ने बड़ी कामयाबी पायी है.यूपी जैसे बड़े प्रदेश से कांग्रेस को साफ करके

  • भविष्य में 2019 के लिए गैरबीजेपी दलों का का एक बड़ा गठबंधन देश में सामने आ सकता है

  • 2017 के अंत में होने जा रहे गुजरात चुनाव में भी यूपी की जीत का बड़ा असर पड़ेगा

  • संसद में सरकार को बिल पास करवाने और बड़े नीतिगत फैसले लेने में भी कोई संकोच नहीं करना होगा.


उधर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व पर यूपी की जीत ने बड़ा सवाल लगा दिया है.कांग्रेस को अपने अखिल भारतीय पार्टी वाले रुतबे से नीचे उतरना होगा और राष्ट्रीय राजनीति के लिए दूसरे राजनीतिक क्षेत्रीय दलों के साथ नीचे आकर राजनीतिक समझौते करने होंगे जिसकी शुरूआत यूपी के गठबंधन से हो चुकी है.साथ ही कांग्रेस को अपनी संसदीय राजनीति के तेवर भी ढीले करने पड़ेंगे और राजनीति की नयी योजना तैयार करनी होगी. चुनावी नतीजों का अंजाम देखने पर पता चलता है कि यूपी की 16.5 फीसदी आबादी पर कब्जे के साथ ही अब देश की 58 फीसदी आबादी पर बीजेपी और उसकी सहयोगियों का राज हो गया है .

यहां गौर करने वाली बात है वो ये कि प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकारों के व्यावसायिक हितों को भी यूपी की जीत ने काफी चोट पहुंचा दी है. ऐसे में प्रशांत किशोर को भी मोदी के खिलाफ अपनी रणनीति और सोच को बदलना होगा.