स्टेट मास्टर्स मीट में एक ऐसा नजारा देखने को मिला, जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी- सिस्टर्स सबीना, अपने धार्मिक वेशभूषा में, हर्डल इवेंट की शुरुआत लाइन पर खड़ी थीं. जैसे ही हॉर्न बजे, भीड़ ने अपनी सांस रोकी. कुछ ही सेकंड में, सबीना हर्डल्स पार करती हुई और युवा खिलाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए पहले स्थान पर पहुंच गईं और गोल्ड मेडल जीत लिया.
बचपन से खेलों में रही दिलचस्पीसिस्टर्स सबीना का खेलों के प्रति जुनून बचपन से ही रहा. उन्होंने नौवीं कक्षा में स्कूल का प्रतिनिधित्व किया और हर्डल में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची. कॉलेज के दौरान उन्होंने इंटर-यूनिवर्सिटी प्रतियोगिताओं में भी अपनी प्रतिभा दिखाई.
पढ़ाई और नौकरी के बीच खेलसमय के साथ शिक्षण का काम उनकी प्राथमिकता बन गया और प्रतियोगिताओं में कम भाग लिया, लेकिन इस साल, रिटायरमेंट से कुछ महीने पहले उन्होंने तय किया कि वह एक बार फिर ट्रैक पर लौटेंगी. इस फैसले ने उनकी झोली में गोल्ड मेडल डाल दिया.
उम्र और पोशाक कोई बाधा नहीं55 से अधिक की उम्र में अपनी नन की वेशभूषा में जीत हासिल करने के बाद सबीना ने कहा, 'मैं बस रिटायर होने से पहले एक बार फिर कोशिश करना चाहती थी.' आज वह हैमर थ्रो में भी हिस्सा ले रही हैं, यह साबित करते हुए कि उम्र और पहनावा जुनून के रास्ते में बाधा नहीं बन सकते. उनकी असाधारण वापसी ने स्टेडियम के बाहर भी लोगों का ध्यान खींचा. यह दौड़ उनकी रिटायरमेंट से पहले उनकी आखिरी दौड़ थी. उन्होंने कहा, 'अगले मार्च में, मैं शारीरिक शिक्षा शिक्षिका के रूप में अपनी भूमिका से रिटायर हो रही हूं. मैं रिटायर होने से पहले एक आखिरी बार प्रतिस्पर्धा करना चाहती थी, इसलिए मैं स्टेट मास्टर्स मीट में आई.' शिक्षा मंत्री वी. शिवंकुट्टी ने सबीना को बधाई दी और कहा कि यह पूरे शिक्षा विभाग के लिए गर्व की बात है. उन्होंने कहा, 'अपनी नन की वेशभूषा में खेलकर गोल्ड जीतना यह संदेश देता है कि सच्ची इच्छाशक्ति रखने वाला व्यक्ति किसी भी उम्र या परिस्थिति में आगे बढ़ सकता है.'