मुस्लिमों के एक से अधिक विवाह करने पर केरल हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कुरान की आयतों का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया है. केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक से अधिक शादियों की अनुमति देता है.
हाई कोर्ट ने कुरान की आयतों के हवाले से कहा कि जो व्यक्ति दूसरी या तीसरी पत्नी का भरण-पोषण करने के काबिल नहीं है, उसे फिर से निकाह करने का अधिकार नहीं है.
जस्टिस पी. वी. कुन्हीकृष्णन ने ये फैसला देते हुए समाज कल्याण विभाग को निर्देश दिया कि वह पलक्कड़ के एक अंधे व्यक्ति, जो भीख मांगकर अपनी आजीविका कमाता है, को धार्मिक नेताओं सहित सक्षम परामर्शदाताओं के माध्यम से परामर्श प्रदान करें, ताकि उसे तीसरी शादी करने से रोका जा सके.
क्या है पूरा मामला?
मलप्पुरम निवासी उस व्यक्ति की दूसरी पत्नी ने पारिवारिक अदालत द्वारा उसके भरण-पोषण के दावे को खारिज किए जाने को चुनौती दी थी. उसने आरोप लगाया था कि वह शुक्रवार को मस्जिदों के बाहर भीख मांगकर लगभग 25,000 रुपये प्रति माह कमाता है, लेकिन पारिवारिक अदालत ने यह कहते हुए उसका दावा खारिज कर दिया कि एक भिखारी को भरण-पोषण देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
पीड़िता ने क्या बताया?
अपनी अपील में पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसके अंधे शोहर ने उसे तलाक देने की धमकी दी और फिर से शादी का प्लान बना रहा था. अदालत ने शारीरिक हमले के आरोप को स्वीकार नहीं किया, यह तर्क देते हुए कि जब तक वह इसके लिए तैयार नहीं होती, तब तक ऐसा होने की संभावना नहीं है, और भरण-पोषण के दावे पर पारिवारिक अदालत के फैसले को बरकरार रखा. हालांकि अदालत ने कहा कि जिस व्यक्ति के पास दो और पत्नियों का भरण-पोषण करने के साधन नहीं हैं, वह दोबारा शादी नहीं कर सकता.
कोर्ट ने सरकार को दिए निर्देश
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वयं उससे विवाह किया था जबकि उसकी पहली शादी चल रही थी. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी शादियां अक्सर मुस्लिम पर्सनल लॉ के बारे में शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण होती हैं. जब पति अपनी पत्नियों का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं होता, तो अदालतें लगातार शादियों को मान्यता नहीं दे सकतीं.
पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह आजीविका के लिए भीख मांगने को मजबूर एक अंधे व्यक्ति की रक्षा करे और जब ऐसा व्यक्ति बार-बार विवाह करता है तो हस्तक्षेप करे.
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