सर्दियों के महीनों में 80 फीसदी से अधिक बारिश और बर्फबारी की कमी के साथ कश्मीर में अभूतपूर्व सूखा जारी है, जिससे बड़े पैमाने पर सूखे का खतरा मंडरा रहा है. एक बार हुई बड़ी बर्फबारी और 45 दिनों में कम बारिश के कारण कश्मीर घाटी के मैदानी इलाकों में 4 जनवरी 2025 से बर्फबारी का इंतज़ार है. आलम ये है कि नदियां और झरने सूख रहे हैं, जंगल में आग लगी हुई है और दिन का तापमान बहुत ज़्यादा है. बारिश और बर्फबारी ना होने के कारण आशंका है कि कश्मीर 2025 में सूखे की ओर बढ़ रहा है.

अचबल में 17वीं सदी का प्रसिद्ध मुगल गार्डन जो 20 से ज़्यादा गांवों को पीने का पानी देता था, सूख गया है. बगीचे के बगल में रहने वाली 90 वर्षीय फातिमा बीबी कहती हैं, 'मैंने अपने जीवनकाल में कभी भी इतने कम जलस्तर वाला झरना नहीं देखा. इस झरने से पानी के छोटे-छोटे आउटलेट सूख चुके हैं और इस समय केवल एक ही आउटलेट काम कर रहा है.' 

'बारिश का पानी संग्रहित करने के लिए लोगों को दी जी रही ट्रेनिंग'

कुपवाड़ा की जिला विकास आयुक्त आयुषी सुदान ने कहा, 'हम नहरों और झरनों की सफाई कर रहे हैं. किसानों को गर्मी के महीनों में पानी की कमी से निपटने के लिए जितना संभव हो सके उतना बारिश का पानी संग्रहित करने के लिए शिक्षित कर रहे हैं. खतरनाक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अनंतनाग में वेरीनाग झरने में पानी का बहाव बहुत कम हो गया है जो झेलम नदी का स्रोत है. ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं और नदियां सूख रही हैं और बर्फबारी कम होने से हमारी कृषि और बागवानी बर्बाद हो जाएगी.' 

माइनस में पहुंचा झेलम का जल स्तर 

झेलम नदी अपने उद्गम से अनंतनाग, पुलवामा, श्रीनगर, गंदेरबल, बांदीपोरा और बारामुला जिलों से होते हुए घाटी के बीच से होकर गुजरती है और अंत में नियंत्रण रेखा (एलओसी) को पार करके पाकिस्तान के मिथनकोट में सिंधु नदी में मिल जाती है, लेकिन झेलम और उसकी सहायक नदियां जैसे वेशो नाला, रामबियाराह, फिरोजपोरा नाला और पोहरू नाला भी बर्फ रहित सर्दियों के कारण न्यूनतम जल स्तर से नीचे बह रहा है, जिससे स्थिति अच्छी नहीं है. सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण (आई एंड एफ सी) विभाग के 'कश्मीर बाढ़ निगरानी' के आंकड़ों के अनुसार, पुलवामा के संगम में झेलम का जल स्तर माइनस 1.01 फीट तक पहुंच गया है, जो शून्य गेज के कम स्तर (आरएल) से नीचे है और अनंतनाग, श्रीनगर, गंदेरबल, बांदीपोरा और बारामुला जिलों के कुछ हिस्सों में संपूर्ण कृषि और बागवानी झेलम नदी पर निर्भर है, इसका मतलब है कि आपदा की घंटी बज रही है.

स्थानीय निवासी अब्दुल कयूम खान ने अपने सेब के बगीचे का दौरा करते हुए कहा, 'मैं 50 वर्ष से अधिक का हूं और मुझे याद नहीं है कि मुझे पानी के मामले में ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा है. आने वाले गर्मियों के महीनों में पानी की कमी हमें और भी अधिक प्रभावित करेगी, चाहे वह खेती के लिए हो या पीने के लिए. 

'इस बार किसानों को बड़ा नुकसान होगा'श्रीनगर में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय की कृषि मौसम विज्ञानी डॉ. समीरा कयूम कहती हैं, "इस बार हम मार्च के तापमान का सामना कर रहे हैं और इसने पौधों और पेड़ों में बदलाव ला दिया है, जो आमतौर पर मार्च में होता है. अगर तापमान में कमी नहीं आती है, तो समय से पहले फूल खिलेंगे और इस तरह फलों की पैदावार में भारी गिरावट आएगी, जिससे किसानों को बहुत नुकसान होगा.' लगातार उच्च तापमान के कारण, पहाड़ों में बारहमासी जल भंडार भी पिघलने लगे हैं.'

'बिजली उत्पादन भी होगा प्रभावित'श्रीनगर में मौसम कार्यालय जो 120 से अधिक वर्षों से रिकॉर्ड रख रहा है का कहना है कि पिछले 3 महीनों के दौरान वर्षा में 80 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है. मौसम विज्ञान के निदेशक डॉ. मुख्तार ने कहा, 'सितंबर से नवंबर तक शरद ऋतु में वर्षा की कमी होती है और अब दिसंबर से भी हमें इसी कमी का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, इस कमी को पूरा करने के लिए अगले दो सप्ताह में और बर्फबारी हो सकती है, लेकिन सर्दियों के चरम पर बर्फबारी नहीं होने का मतलब है कि बर्फबारी लंबे समय तक नहीं रहेगी. हमें कृषि, बागवानी और यहां तक कि बिजली उत्पादन में भी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.'

'बर्फ की कमी के कारण खेल बंद'22 फरवरी से गुलमर्ग के स्की रिसॉर्ट में आयोजित होने वाले ‘खेलो इंडिया गुलमर्ग 2025’ खेलों को स्थगित करना पड़ा क्योंकि रिसॉर्ट में शीतकालीन खेलों को बनाए रखने के लिए बहुत कम बर्फ है. सोनमर्ग और पहलगाम जैसे अन्य पर्यटन स्थल भी इस मौसम में कम बर्फबारी के कारण पीड़ित हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है.

पर्यावरणविद ऐजाज रसूल ने कहा, 'हम मौसम में भारी बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं और यह मौसम ग्लोबल वार्मिंग के असर का संकेत है.' 

ऐतिहासिक रूप से, बाढ़ कश्मीर में सबसे बड़ा खतरा रही है और इसने पहले भी तबाही मचाई है, लेकिन वैश्विक मौसम के बदलते पैटर्न के साथ सूखा अब नया कहर बरपाने वाला हो सकता है. 

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