नई दिल्ली: अपने ग्राहकों के शेयरों को अवैध रूप से गिरवी रखकर 28 सौ करोड़ रुपए का कर्जा बैंकों से लेने और उस पैसे को ग्राहकों के खातों की जगह अपने खाते में जमा कर घोटाला करने वाले कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड (केएसबीएल) के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत कार्यवाही करते हुए प्रवर्तन निदेशालय ने 1984 करोड़ रुपए की चल और अचल संपत्तियों को अस्थाई रूप से जब्त किया है. इसमें कंपनी और उसके अध्यक्ष तथा अन्य लोगों की चल अचल संपत्तियां शामिल है. यह भी आरोप है कि घोटाले के पैसे से सट्टा शेयर व्यापार किया गया जिससे कंपनी को भारी नुकसान हुआ.

प्रवर्तन निदेशालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि निदेशालय ने इस मामले की जांच हैदराबाद पुलिस की सीसीएस पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के आधार पर शुरू की थी. इस मामले में उधार देने वाले बैंकों की शिकायतों तथा अन्य लोगों की शिकायतों के आधार पर आरोप था कि कार्वी समूह ने अपने ग्राहकों के शेयरों को अवैध रूप से गिरवी रखकर लगभग 2800 करोड़ रुपए का कर्जा बैंकों से लिया था. बाद में बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज का खाता एनपीए में बदल गया. प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक केएसबीएल लाखों ग्राहकों के साथ देश के अग्रणी स्टॉक ब्रोकरों में से एक था.

2019 में सामने आया था घोटाला साल 2019 में एनएसई यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा इस कंपनी के खातों की जांच के दौरान यह घोटाला सामने आया था. यह भी पता चला था कि केएसबीएल ग्राहक प्रतिभूतियों को गिरवी रख कर जुटाए गए धन को अपने स्वयं के 6 बैंक खातों (स्टॉक ब्रोकर स्वयं का खाता) में जमा किया था जबकि उसे यह रकम स्टॉक ब्रोकर क्लाइंट अकाउंट में जमा करना चाहिए था. निदेशालय ने इस मामले में 22 सितंबर 2021 को 9 जगहों पर छापेमारी की और बाद में कार्वी ग्रुप के सीएमडी सी पार्थ सारथी और जी हरि कृष्णा सीएफओ को प्रोडक्शन वारंट पर लाया गया और ईडी की विशेष कोर्ट के सामने पेश किया गया. इन दोनों को 20 जनवरी 2022 को मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया और इस समय भी यह लोग न्यायिक हिरासत में है.

ग्राहकों द्वारा दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी का दुरुपयोग निदेशालय के मुताबिक जांच के दौरान सीएमडी पार्थ सारथी पूरी तरह से टालमटोल और असहयोग वाला रवैया अपनाते रहे और केएसबीएल द्वारा किए गए कुछ गलत कामों को स्वीकार करते हुए सारा दोष अपने सीईओ, सीएफओ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर डालते रहे. ईडी को मामले की जांच के दौरान पता चला कि केएसबीएल द्वारा अपने ग्राहकों द्वारा दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी का दुरुपयोग किया गया था. केएसबीएल की टीम ने दावा किया था कि उन्होंने ग्राहकों के शेयर गिरवी रखने के लिए फोन या मौखिक रूप से ग्राहकों की मंजूरी ली थी लेकिन जांच के दौरान भी लोग ऐसा कोई भी दस्तावेज पेश नहीं कर पाए.

जांच के दौरान यह भी पता चला कि घोटाले का पैसा कंपनी की अन्य सिस्टर कंपनियों में ट्रांसफर किया गया था. साथ ही इसका एक बड़ा हिस्सा कागजी कंपनियों में डाला गया था. जांच में पता चला कि इस कंपनी ने बड़े पैमाने पर सट्टा शेयर व्यापार किया और उसमें उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. फिलहाल प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में 1984 करोड़ रुपए की चल अचल संपत्ति जब्त की है. मामले की जांच जारी है.

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