Karnataka Election Results 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है तो कमल मुरझा गया है. कांग्रेस की ऐसी हवा चली कि 224 सदस्यीय विधानसभा में 135 सीटें मिलीं. वहीं बीजेपी को महज 66 सीटों से संतोष करना पड़ा. कर्नाटक में कांग्रेस के अभियान के कई चेहरे रहे, इनमें सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी रहे तो बीजेपी की तरफ से सिर्फ एक चेहरा पीएम नरेंद्र मोदी का रहा. आइए समझते हैं कि चुनाव नतीजों का इन नेताओं के लिए क्या संदेश रहा है.


कर्नाटक में बीजेपी की करारी हार इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पीएम मोदी हर जगह जीत नहीं दिला सकते. यह पीएम मोदी की मास अपील की सीमाएं भी बताता है. ये बात पार्टी को भी समझनी होगी. पीएम मोदी के जिस तरह का सघन प्रचार करने के बावजूद पार्टी हार गई, ऐसा इसके पहले 2021 में पश्चिम बंगाल में हुआ है. हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि संसदीय चुनाव और राज्य के चुनाव में अंतर होता है और साथ ही यह भी कि अगर पीएम मोदी ने अभियान का नेतृत्व न किया होता तो पार्टी की और बुरी स्थिति होती. फिर भी नतीजे ये संदेश हैं कि नरेंद्र मोदी के लिए भी देश के गैर हिंदी भाषी हिस्से एक चुनौती बने हुए हैं, खासतौर पर उन राज्यों में जहां विपक्ष के पास एक मजबूत स्थानीय नेतृत्व है.


सिद्धारमैया


इस चुनाव में शायद कोई सबसे बड़ा विजेता है तो वह सिद्धारमैया हैं. अपने लंबे राजनीतिक जीवन में वह कई बार ऊंचाई तक पहुंच चुके हैं, लेकिन हर बार जीत में कुछ और कारण होते थे. इससे पहले उनकी सबसे बड़ी जीत 2013 में थी, जब कांग्रेस ने विधानसभा में 122 सीट जीती थी. तब इसकी वजह येदिुरप्पा की नाराजगी को माना गया था, जिसके चलते बीजेपी के वोटों में बंटवारा हो गया था.


2018 में जब एक बार फिर कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बनी तो प्रमुख दावेदार होने के बाद भी उन्हें एचडी कुमारस्वामी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. बावजूद इसके कि जेडीएस के पास कांग्रेस के आधे से भी कम सीटें थीं. 2005 में सिद्धारमैया ने इन्हीं कुमारस्वामी से मतभेदों के चलते जेडीएस छोड़ दी थी. 


बीएस येदियुरप्पा 


पिछले तीन साल येदियुरप्पा के लिए उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. चुनाव में पार्टी भले ही हार गई है लेकिन येदियुरप्पा की स्थिति मजबूत हुई होगी. इन नतीजों ने यह भी बता दिया है कि दक्षिण के तट पर स्थित इस दुर्ग में बीजेपी का राज स्थापित करने वाले येदियुरप्पा ही थे, जो न सिर्फ लिंगायतों के सबसे बड़े नेता थे बल्कि उनकी अपील दूसरे समुदायों में भी थी. हालांकि, लगता है पार्टी ये बात भूल गई थी. 2021 में जब येदियुरप्पा ने बोम्मई के लिए सीएम की कुर्सी छोड़ी, तब से ही राज्य में उसकी स्थिति कमजोर होने लगी थी. हालांकि, पीएम मोदी और अमित शाह जैसे दिग्गज येदियुरप्पा के पास पहुंचे और ये संदेश दिया कि वह कितने महत्वपूर्ण हैं लेकिन जनता तक ये मैसेज नहीं पहुंच पाया और नुकसान हो चुका था. येदियुरप्पा ने पार्टी के लिए प्रचार किया लेकिन उनका दिल इसमें नहीं था.


मल्लिकार्जुन खरगे


80 साल के मल्लिकार्जुन खरगे ने हंगामे के बीच अक्टूबर 2022 में कांग्रेस की कमान संभाली. उस समय उनके ऊपर कई सवाल उठे, रबर स्टैंप अध्यक्ष कहा गया. यह भी कहा गया कि पार्टी को जिस जोश की जरूरत है, उसके लिए अब उनकी उम्र नहीं है. दो महीने बाद, उनके नेतृत्व में पार्टी ने पहला चुनाव लड़ा. इसमें हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने बीजेपी के जबड़े से जीत छीन ली लेकिन साथ ही गुजरात में करारी हार का सामना करना पड़ा. 


अगली कठिन परीक्षा उनके गृह राज्य में कर्नाटक में थी. खरगे ने राज्य भर में प्रचार किया, कन्नड़ में लोगों से बात की और सबसे बड़ी बात डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच बढ़ रहे तनाव को बांधा. अब नतीजों के साथ ही खरगे ने अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है.


एचडी देवेगौड़ा


कर्नाटक के चुनाव नतीजे अगर किसी के लिए सबसे बड़ा झटका है तो वह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और उनकी पार्टी जेडीएस के लिए है. ये नतीजे इस बात का भी संकेत हैं कि जेडीएस अब अप्रासंगित हो रही है. दो बार जिस मजबूत आधार के भरोसे से देवगौड़ा ने अपने बेटे एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया, पार्टी ने दक्षिणी कर्नाटक का अपना वो गढ़ खो दिया है. जेडीएस का गढ़ और परिवार की सीट रामनगरम से ही उनके पोते निखिल कुमारस्वामी चुनाव हार गए. देवगौड़ा ने मतदाताओं से भावनात्मक अपील में इसे अपना आखिरी चुनाव बताया था, ऐसा लगता है वोटरों ने भी इसे ठीक इसी तरह से लिया है.


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