चंडीगढ़: हरियाणा के करनाल में किसानों के बवाल के चलते मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का 'किसान महापंचायत' का दौरा रद्द कर दिया गया. किसानों ने हंगामा किया और समारोह स्थल का पंडाल तोड़ दिया. मुख्यमंत्री हेलीपैड पर ही रहे. इस कार्यक्रम में खट्टर तीनों नए कृषि कानून का फायदा बताने वाले थे. इससे पहले पुलिस ने कैमला गांव की ओर किसानों के मार्च को रोकने लिए उन पर पानी की बौछारें कीं और आंसू गैस के गोले छोड़े.


किसानों ने अस्थायी हेलीपेड का नियंत्रण भी अपने हाथ में ले लिया जहां मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर उतरना था. बीजेपी नेता रमण मल्लिक ने बताया कि बीकेयू नेता गुरनाम सिंह चरूनी के कहने पर किसानों के हुड़दंगी व्यवहार की वजह से कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया है. पुलिस ने गांव में मुख्यमंत्री की यात्रा के मद्देनजर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए थे.


भारतीय किसान यूनियन (चरूनी) के तत्वावधान में किसानों ने पहले घोषणा की थी कि वे ‘किसान महापंचायत’ का विरोध करेंगे. वे तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. किसान काले झंडे लिए हुए थे और बीजेपी नीत सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए कैमला गांव की ओर मार्च करने की कोशिश कर रहे थे.


पुलिस ने गांव के प्रवेश स्थानों पर बैरीकेड लगा दिए ताकि वे कार्यक्रम स्थल तक नहीं पहुंच पाएं. स्थिति तब तनावपूर्ण हो गई जब किसान इस बात पर अड़ गए कि वे मुख्यमंत्री को कार्यक्रम नहीं करने देंगे. पुलिसकर्मी प्रदर्शनकारी किसानों को शांत करने की कोशिश करते दिखाई दिए लेकिन वे मंच पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ गए.


कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने किसानों पर पानी की बौछारें छोड़ने और आंसू गैस के गोले दगवाने के लिए मुख्यमंत्री खट्टर की आलोचना की. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पुलिस के बल प्रयोग की निंदा की. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, "हरियाणा के करनाल में किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस का बलप्रयोग निंदनीय है. यह हरियाणा पुलिस का निंदनीय कृत्य है. पूर्व में दिल्ली में किसान आंदोलन का समर्थन करने जा रहे राजस्थान के किसान भाइयों पर भी हरियाणा पुलिस ने इसी तरह बलप्रयोग किया था. भाजपा शासित राज्य में ऐसी दमनकारी कार्रवाई करने की जगह केंद्र सरकार को किसानों की बात सुनकर अविलंब उनकी मांगें मान लेनी चाहिए. आखिर ऐसा किसका दबाव है जिसके कारण 46 दिन से धरना दे रहे किसानों की मांगें नहीं मानी जा रही हैं?"


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