साल 1999 ... पाकिस्तान की संयुक्त मुख्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा बैठक हो रही थी. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का चेहरा एकदम अवाक था. वो कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थे. वहां पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो भी मौजूद थीं.  मुख्यालय में नवाज के साथ जनरल मुशर्रफ और नौसेना प्रमुख एडमिरल फसीह बुखारी के साथ गंभीर बहस हुई. फसीह बुखारी ने बहस के अंत में जनरल मुशर्रफ के खिलाफ कोर्ट मार्शल का आह्वान कर दिया. लेकिन इसकी वजह क्या थी, और भारत का इससे क्या नाता था? 


दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कश्मीर के करगिल शहर के पास संघर्ष हुआ. ये संघर्ष 1969 के चीन-सोवियत युद्ध के बाद से दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच पहला सैन्य संघर्ष था. ये जंग 1999 में भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों की घुसपैठ की वजह से हुई थी.


युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान ने लड़ाई के लिए पूरी तरह से कश्मीरी विद्रोहियों को दोषी ठहराया, लेकिन हताहतों के बाद मिले दस्तावेजों और बाद में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री और सेना प्रमुख के बयानों से जनरल अशरफ राशिद के नेतृत्व में पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों की भागीदारी का पता चला. 


एक पूरे प्लान के तहत पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में अधिकांश स्थानों पर फिर से कब्जा कर लिया था. युद्ध इसी को लेकर हुआ.  बाद में अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव बढ़ने के साथ ही पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा पर भारतीय ठिकानों से पीछे हट गई. 


सियाचीन में घुसपैठ पाकिस्तान का टॉप सीक्रेट था. इसमें पाकिस्तान की सेना के टॉप कमांडर शामिल थे. पाकिस्तान को ये लग रहा था कि इस घुसपैठ से पाकिस्तान भारतीय सरकार को कश्मीर देने की बात मनवा लेगी. 


आक्रमण के लिए वही समय क्यों चुना गया 


पाकिस्तान ने हमले के लिए जो समय चुना था वो अपने आप में सवालों के घेरे में है. पाकिस्तानी सेना को लगा कि भारत को इस समय हमले की उम्मीद नहीं होगी. इसी समय पाकिस्तानी सेना की इच्छा के विरुद्ध दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्वों के बीच राजनीतिक वार्ता चल रही थी. पाक की सेना में ये गुस्सा था कि इस बातचीत में पाकिस्तान की ओर से कश्मीर मुद्दे पर ज्यादा ध्यान क्यों नहीं दिया गया.


आक्रमण का फैसला किसका था


पाकिस्तानी सेना हमेशा से कश्मीर को हड़पना चाहती है. ये आक्रमण भी कश्मीर को फिर से हासिल करने की एक कोशिश थी. सेना के एक शीर्ष सूत्र के मुताबिक कारगिल ऑपरेशन की योजना महीनों पहले बनाई गई थी और एक टॉप सीक्रेट रखा गया था. पाकिस्तानी सेना प्रमुख (सीओएएस), चीफ ऑफ जनरल स्टाफ (सीजीएस), डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ), जीओसी 10 कोर और जीओसी फोर्स कमांडर नॉर्दर्न एरिया (एफसीएनए) को इस ऑपरेशन के बारे में जानकारी थी. 


पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों की ये कायराना सोच थी कि इस तरह से वे भारत को कश्मीर विवाद पर पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर कर लेंगे.


आक्रमण का नतीजा क्या हुआ
कारगिल युद्ध बहुत बड़े पैमाने पर लड़ा गया था, लेकिन यह पूरी तरह से फ्लॉप था. दरअसल भारतीय नेतृत्व को मामले की गंभीरता का पता नहीं था. जब पता चला तो उनके पैरों तले जमीन निकल गई. भारतीय प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन किया. नवाज शरीफ उस समय सकते में आ गए. पाकिस्तानी स्कॉलरों का ये भी कहना है कि नवाज शरीफ को इस आक्रमण की जानकारी नहीं थी, लेकिन इसे लेकर विवाद है. 


इस आक्रमण की सबसे पहले खबर तब के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को हुई. वे अगले दिन रूस जाने वाले थे. उन्होंने अपनी यात्रा रद्द की और इस तरह सरकार को घुसपैठ के बारे में पहली बार पता चला. उस समय भारतीय सेना के प्रमुख जनरल वेदप्रकाश मलिक भी पोलैंड और चेक गणराज्य की यात्रा पर गए हुए थे. उनको वहीं पर ये खबर  भारतीय राजदूत के जरिए मिली थी. 


पाकिस्तानियों ने कारगिल में बहुत जबरदस्त प्लान किया था. उन्होंने आगे बढ़कर खाली पड़े बहुत बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया. वो लेह कारगिल सड़क पर पूरी तरह से हावी हो गए. ये उनकी बहुत बड़ी कामयाबी थी.


कैसे पलटी बाजी


जून का दूसरा हफ़्ता खत्म होने को था. तीसरे हफ्ते की शुरुआत से पहले चीजें भारतीय सेना के नियंत्रण में आने लगी थीं.  भारतीय सेना ने तोलोलिंग पर जीत हासिल कर ली थी. वो पहला हमला था जिसे भारतीय सैनिकों ने को-ऑरडिनेट किया था. ये भारतीय सेना की बहुत बड़ी कामयाबी थी. ये लड़ाई चार-पाँच दिन तक चली थी. भारत को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. बड़े पैमाने पर कैजुएल्टीज हुईं. 


ये लड़ाई करीब 100 किलोमीटर के दायरे में लड़ी जा रही थी. यहा पर करीब 1700 पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सीमा के करीब 8 या 9 किलोमीटर अंदर घुस आए थे. इस पूरे ऑपरेशन में भारत के 527 सैनिक मारे गए और 1363 जवान आहत हुए.


कारगिल में पहाड़ों पर बैठे एक पाकिस्तानी फौजी पर भारत की तरफ से कम से कम 27 सैनिक चाहिए थे. भारत ने पहले उन्हें हटाने के लिए पूरी डिवीजन लगाई और फिर अतिरिक्त बटालियंस को बहुत कम नोटिस पर इस अभियान में झोंका गया. इस जंग में भारत ने अपनी वायु सेना को शामिल किया. वायु सेना की कार्रवाई मुजाहिदीनों के ठिकानों तक ही सीमित नहीं रही, उन्होंने सीमा पार कर पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर भी बम गिराने शुरू कर दिए. इस हमले में पाकिस्तानी जमीन पर भारत का एक हेलिकॉप्टर और दो जेट विमान मार गिराया गया.


लेकिन भारतीय आर्मी के हमले इतने सटीक थे कि उन्होंने पाकिस्तानी चौकियों को पूरी तरह से नीस्त-ओ-नाबूद बना दिया. पाकिस्तानी सैनिक बिना किसी रसद के लड़ रहे थे. कारगिल लड़ाई में कमांडर रहे लेफ़्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कारगिल में वायु सेना की सबसे बड़ी भूमिका मनोवैज्ञानिक थी. जैसे ही ऊपर से भारतीय जेटों की आवाज सुनाई पड़ती, पाकिस्तानी सैनिक दहल जाते और इधर-उधर भागने लगते. नतीजा ये हुआ कि जून के दूसरे सप्ताह से जारी जंग जुलाई के अंत तक जारी रहा. आखिरकार नवाज शरीफ को युद्ध विराम के लिए अमेरीका की शरण में जाना पड़ा.


हार के बाद कैसा था पाक के लीडरों में गुस्सा


इसी जंग में मिली हार के बाद पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी की बैठक हुई थी. जहां पर नवाज शरीफ, जनरल परवेज मुशर्रफ की नौसेना के चीफ फासिह बोखारी शामिल थे. और दोनों के बीच जम कर बहस हुई थी. बेनजीर भुट्टो जो उस वक्त पाकिस्तान में विपक्ष की नेता थी,  उन्होंने पाकिस्तान की संसद में कारगिल युद्ध को सबसे बड़ी गलती करार दिया. पाक की इंटर सर्विस इंटेलिजेंस ने भी कारगिल युद्ध को समय की बर्बादी करार दिया. उनका कहना था कि इस जंग से कश्मीर मुद्दे पर कोई भी फायदा नहीं होने वाला था.  


कारगिल युद्ध से क्या सीखने की जरूरत है?


मशहूर रिसर्चर और पत्रकार प्रवीण स्वामी ने एक रिसर्च पेपर में इस युद्ध में कुछ महत्वपूर्ण और निराशाजनक फैक्ट का जिक्र किया है. इस पेपर में ये समझाया गया कि इस जंग से क्या सीखने की जरूरत है. उन्होंने इस युद्ध को एक महत्वपूर्ण चेतावनी बताया है. 


उन्होंने एक सवाल खड़ा किया कि क्या ये भारत की खुफिया और सैन्य विफलताओं की निशानी नहीं है. आखिर कैसे पाकिस्तान लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने में कामयाब हुआ और इसकी भनक तक नहीं लगी.


उनके मुताबिक इस जंग में भारत की जीत का सारा श्रेय केवल सशस्त्र बलों के जवानों को जाता है, जिन्होंने भारी बाधाओं के बावजूद बहादुरी से जंग लड़ी. उन्होंने ये भी लिखा है कि  वी.के. कृष्ण मेनन ने 7 नवंबर, 1962 को भारत चीन युद्ध के बाद रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. 


करगिल युद्ध पर लेखक एजाज अहमद ने लिखा था, 'हम जिस पाकिस्तान से निपट रहे हैं, वो पूरी तरह से कुछ इलाकों में इस्लाम को पुनर्जीवित करना चाहता है, जिसे पश्चिम एशियाई देश आकर्षित कर रहे हैं.  पाकिस्तानी राज्य और अपने विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को अपने आत्मविश्वास में लेने की कोशिश में है जो हमेशा जारी रहेगा. पाकिस्तान अपनी रूढ़िवादी विचारधारा को कभी बदल नहीं सकता'.