Karnataka Hijab Ban Case: कर्नाटक हिजाब मामले पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट जल्द ही 3 जजों की बेंच का गठन करेगा. सोमवार को वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने चीफ जस्टिस के सामने मामला रखते हुए जल्द सुनवाई का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि 6 फरवरी से स्कूलों में प्रैक्टिकल परीक्षा होनी है. सुप्रीम कोर्ट को अंतरिम आदेश जारी करना चाहिए कि इसमें किसी छात्रा को रोका नहीं जाएगा. चीफ जस्टिस ने सुनवाई की कोई तारीख तो नहीं दी, लेकिन अरोड़ा से कहा कि वह रजिस्ट्रार के पास मामला रखें. जल्द ही बेंच के गठन पर विचार किया जाएगा.


पिछले साल 13 अक्टूबर को इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था. इसके चलते मामला बड़ी बेंच को भेजा जाना है. फिलहाल कर्नाटक हाईकोर्ट का वह फैसला लागू है, जिसमें स्कूल-कॉलेज में ड्रेस कोड के पूरी तरह पालन को सही ठहराया गया था.


क्या है मामला


15 मार्च 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट फैसला दिया था कि महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा था कि स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म के पूरी तरह पालन का राज्य सरकार का आदेश सही है. साथ ही हाईकोर्ट ने हिजाब को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा बता रहे बता रहे छात्रों की याचिका खारिज कर दी थी.


सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला


हाईकोर्ट का फैसला आते ही कर्नाटक के उडुपी की रहने वाली 2 छात्राओं मनाल और निबा नाज ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इसके अलावा फातिमा सिफत समेत कई और छात्राओं ने भी उसी दिन अपील दाखिल कर दी. इन याचिकाओं में कहा गया कि हाईकोर्ट का फैसला संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर नागरिक को हासिल धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन करता है. इन छात्राओं के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा जैसी संस्थाओं ने भी याचिका दाखिल की.


2 जजों के अलग फैसले


मामले को 10 दिन तक सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धुलिया की बेंच ने सुना लेकिन दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला दिया. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने याचिकाओं को खारिज किया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 19 (व्यक्तिगत पसंद की स्वतंत्रता), 21 (सम्मान से जीवन का अधिकार) और 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) पर बहस की. लेकिन इनमें से किसी भी कसौटी पर वह ठोस तरीके से अपनी बात साबित नहीं कर पाए. इसलिए, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला बनाए रखा जाना चाहिए.


जबकि, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि हाईकोर्ट को धार्मिक अनिवार्यता के सवाल पर नहीं विचार करना चाहिए था. कुरान में लिखी बात की व्याख्या गैरज़रूरी थी. इस मामले को व्यक्तिगत पसंद के मामले की तरह देखा जाना चाहिए था. इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए था कि लड़कियां बहुत कठिनाइयों का सामना कर पढ़ाई कर पाती हैं. स्कूल-कॉलेज में हिजाब पर रोक से उनके सामने एक और बाधा खड़ी हो जाएगी. इसलिए, हाईकोर्ट का फैसला रद्द होना चाहिए.


आगे क्या होना है?


13 अक्टूबर को दोनों जजों ने मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया था. उन्हें बड़ी बेंच का गठन करना है. इस बात की संभावना है कि वह बेंच 3 जजों की बेंच की होगी. चूंकि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने कोई निर्णायक फैसला नहीं दिया है, इसलिए फिलहाल 15 मार्च 2022 को आया कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश लागू है.


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