Kanyaman: नई मोहे एड फिल्म में एक नए दृष्टिकोण की बात की गई है, बाकी सब कुछ वही रहता है- “क्यूं सिर्फ कन्यादान... नया विचार- कन्यामान!” इस एड फिल्म में किसी भी तरह से रीति-रिवाजों को चुनौती नहीं दी गई है, बल्कि इसी रिवाज को आधुनिक संदर्भों में दिखाया गया है, जहां पर दूल्हा और दुल्हन दोनों की समान भागीदारी है और वे एक दूसरे की जिम्मेदारी का वहन करते हैं.


इस एड फिल्म में दुल्हन के भीतर के मानसिक उहापोह को दिखाया गया है, जो हर लड़की के लिए ऐसे मौके पर स्वाभाविक है. उसके मन में अनेक तरह के सवाल हैं, जो वे एकाकी संवाद के जरिए दर्शकों के सामने रहती है. कन्यामान आधुनिक युग की दुल्हन का प्रतिनिधित्व करता है, जो वैवाहिक जीवन में भी और अन्य क्षेत्रों की तरह पूर्ण रूप से समानता की आशा रखती है और उसका प्रयास करती है.


कन्यादान का वास्तव में अर्थ कन्यामान ही है- यानी 'नारी को सम्मान और समानता का अधिकार!' ‘कन्यामान’- यह परंपरा का निर्वाह करते हुए उसी परंपरा को नई सम-सामयिक वैचारिक पृष्ठभूमिक प्रदान करता है. यह संदेश समाज के सभी वर्गों में प्रभावशाली तरीके से सम्प्रेषित किया जा रहा है.


कन्यामान के समर्थन में श्री-श्री रविशंकर ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि कि श्रुतियों में विशेष रूप से कन्यादान जैसा कुछ नहीं है. स्मृतियों में बाद में केवल पणिग्रह है- यानी हाथ पकड़ना. यह वैदिक संस्कृति का शब्द है, जिसका आशय है- आप मेरी पत्नी या मेरे पति के रूप में हाथ पकड़ते हैं. लेकिन, समय के साथ इसमें विकृतियां आ गई और फिर कन्यादान को पाणिग्रहण का अंग बना दिया गया.


इस नए अर्थ को बड़े ही खूबसूरत और सृजनात्मक तरीके से इस एड में संबोधित किया गया है. यह विज्ञापन- ‘कन्यामान’ का जश्न है, जो आजकर काफी चर्चा में है. समाज के कई वर्गों जैसे युवाओं, महिलाओं, माता-पिताओं ने खूब सराहा और कन्यामान के उत्तम विचार को कन्यादान से सर्वोपरि माना है. लड़कियां खुलकर इसके समर्थन में आ रही हैं क्योंकि वे अपने व्यक्तित अनुभवों से इसे जोड़ पा रही हैं. 


नोट: यह आर्टिकल मान्यवर के सहयोग के साथ लिखा गया है.